पार्थसारथि थपलियाल
( हाल ही में 21 सितंबर से 24 सितंबर 2022 तक श्रीमंता शंकरदेव कलाक्षेत्र गोहाटी में प्रज्ञा प्रवाह द्वारा तीसरे लोकमंथन का आयोजन किया गया। इस दौरान बहुत महत्वपूर्ण सांस्कृतिक गतिविधियां आयोजित की गई। प्रस्तुत है लोकमंथन की उल्लेखनीय गतिविधियों पर सारपूर्ण श्रृंखलाबद्ध प्रस्तुति)
हमारी सोच लोक कल्याण पर चिंतन करती है- जे.नंदकुमार
22 सितंबर 2022 को गोहाटी (असम) में श्रीमंता शंकरदेव कलाक्षेत्र के प्रांगण में एक विशाल पांडाल के अंतर्गत लोकमंथन समारोह में देश के विभिन्न भागों से आमंत्रित संस्कृति चेताओं, लोक कलामर्मज्ञों, संस्कृति के प्रज्ञा पुरुषों और लोकव्यवहार में संस्कृति को जीनेवाले प्रदर्शक कलाकारों
की वेशभूषा स्वतः संज्ञान करा रही थी कि यहाँ भारतीय संस्कृति का महाकुंभ है। लगभग 3000 लोगों की बैठने की क्षमता वाले पांडाल के अंदर “तिल रखने की जगह नही” मुहावरे को साकार कर रही थी। विशालकाय मंच को लोक संस्कृति के अनुरूप सजाया गया था। मंच के ठीक सामने बोडो समुदाय के लोक कलाकार गायन बायन के अंतर्गत दीप मंत्र प्रस्तुत कर रहे थे। समारोह के मुख्य अतिथि भारत के माननीय उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़, अतिविशिष्ठ अतिथि थे असम और मेघालय के राज्यपाल प्रोफेसर जगदीश मुखी और विशिष्ठ अतिथि थे असम के मुख्यमंत्री डॉ. हिमंता बिस्वा सरमा। इन्ही के साथ मंच पर विराजमान थे प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय संयोजक श्री जे. नंदकुमार जी और असम क्षेत्र की प्रज्ञा प्रवाह, अध्यक्ष श्रीमती गार्गी सैकिया। समारोह में शोभायमान थे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले और डॉ. मनमोहन वैद्य।
माननीय उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने दीप प्रज्जलन कर लोकमंथन का शुभारंभ किया। माननीय राज्यपाल प्रोफेसर जगदीश मुखी और मुख्यमंत्री माननीय डॉ. हिमंता बिस्वा सरमा, श्रीमती गार्गी सैकिया और श्री जे.नंदकुमार जी ने दीप प्रज्ज्वलन में प्रज्ञा ज्योति को आगे बढ़ाया। पारंपरिक स्वागत सम्मान के बाद वाणी के माध्यम से अतिथियों का भावपूर्ण सम्मान किया प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय संयोजक श्री जे.नंदकुमार ने।
लोकमंथन के बीज वक्तव्य को आधारभूम देते हुए श्री जे.नंदकुमार ने बताया कि भारत की संस्कृति को हमारी लोक परम्पराओं, लोक विश्वासों, लोक आस्थाओं, लोक मान्यताओं, लोक गीतों, लोक आख्यानों, लोकनृत्यों, लोक नाट्यों, लोक भाषाओं आदि नें अब तक बचाये रखा है। धीरे धीरे आधुनिकता के दौर में हमारी लोक परम्पराएं लोक संरक्षण के अभाव में कमजोर होती अनुभव होती हैं।
हमारी देश व्यापी लोक परम्पराओं का प्रदर्शन हो, संरक्षण हो तो इन्हें संबल मिल सकता है। हमारी लोक परम्पराएं ऋषि मुनियों के तप से निकला ज्ञान प्रवाह है। प्रज्ञा प्रवाह ने लोकपरंपराओं पर मंथन करने के लिए एक योजना बनाई कि दो साल के अंतराल से सांस्कृतिक बुद्धिशील व्यक्तियों और व्यवहार में लाने वाले कलामर्मज्ञ लोगों के मध्य विराट लोकमंथन किय्या जाय। वर्ष 2016 में भोपाल में, वर्ष 2018 में रांची में लोकमंथन आयोजित किये गए। 2020 में कोविड 19 के कारण लोकमंथन के आयोजन को स्थगित किया गया। वर्ष 2022 में तीसरा लोकमंथन गोहाटी में आयोजित है।
इस लोकमंथन को उन्होंने देव-दानव युद्ध में समुद्र मंथन के साथ जोड़कर बताया कि जिस तरह समुद्र मंथन से निकले 14 रत्नों में से विष और अमृत थे उसी प्रकार लोकमंथन हमारी सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण का काम करता है। लोक के रिप में हमारी सोच लोक कल्याण पर चिंतन करती है। वैचारिक मंथन में जो विषय लोक कल्याणकारी हैं वे अमृत हैं। लोकमंथन लोक को जोड़ने का प्रयास भी है। उन्होंने भगवतगीता के तीसरे अध्याय के 20वें श्लोक को उद्धृत किया-
कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादय: ।
लोकसंग्रहमेवापि संपश्यन्कर्तुमर्हसि ।।
अर्थात- जनकादि ज्ञानीजन भी आसक्ति रहित कर्म द्वारा ही परम सिद्धि को प्राप्त हुए थे। इसलिये तथा लोक संग्रह को देखते हुए भी तू कर्म करने को ही योग्य है ।
श्री जे. नंदकुमार जी ने बताया कि सामान्यतः लोग “लोक” शब्द के लिए अंग्रेज़ी का folk शब्द उपयोग में लाते हैं, लेकिन यह भारतीय शब्द लोक की संस्कृति से भिन्न है। folk शब्द समाज को विभाजित करता है जबकि लोक शब्द समाज को जोड़ता है। लोक शब्द मानवजाति का सामुहिक प्रवाह है। सनातन संस्कृति में सृष्टि की उत्तपत्ति, मानव की उत्पत्ति और विकास के साथ साथ लोक परम्पराएं पल्लवित हुई हैं। लोक में व्याप्त जितनी भी गतिविधियां सनातन संस्कृति के अनुरूप हैं वे हमारे लोक उपहार हैं। ये हमारी विरासत हैं, जो हमे सिखाती हैं “माता भूमि पुत्रोहं पृथिव्या।”
क्रमशः…3….
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