पार्थसारथि थपलियाल।
( हाल ही में 21 सितंबर से 24 सितंबर 2022 तक श्रीमंता शंकरदेव कलाक्षेत्र गोहाटी में प्रज्ञा प्रवाह द्वारा तीसरे लोकमंथन का आयोजन किया गया। प्रस्तुत है लोकमंथन की उल्लेखनीय गतिविधियों पर सारपूर्ण श्रृंखलाबद्ध प्रस्तुति)
वंशावली लेखन भारत में एक लोक परंपरा रही है। यह सामाजिक व्यवस्था थी। राव, भाट, जागा, ब्रह्मभट्ट, बारोट, चारण, पंडे, यागिक आदि जातियों के लोग अपने अपने यजमानों की वंशावली गाँव गाँव घर घर जाकर लिखते थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमारे स्व पर अदृश्य शासकीय प्रहार हुए।
राजस्थान के बाड़मेर जिले में वंशावली लेखक भंवर सिंह राव रहते हैं। आजीविका के लिए वे अध्यापन कार्य करते हैं। घर मे बूढ़े बुजुर्गों की रखी वंशावली की बहियाँ उन्हें अपनी ओर खींचती हैं। वे वंशावली लेखन संबंधी अनेक गोष्ठियों में बुलाये जाते हैं, तालियां बज जाती हैं लेकिन उसका परिणाम कहीं दिखाई नही देता। भंवर सिंह राव को वंशावली परंपरा का अच्छा सांस्कृतिक और व्यावहारिक ज्ञान है। वे लोकमंथन के मंच पर गोहाटी में जब वंशावली परंपरा पर प्रकाश डाल रहे थे तो उनके चेहरे पर उत्साह छलक रहा था लेकिन जब वे इसके व्यावहारिक पक्ष का प्रदर्शन कर रहे थे तब उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें भी साफ साफ दिखाई दे रही थी कि यह परंपरा अब केवल प्रदर्शन तक ही रह गई। उन्होंने मंच पर जो महत्वपूर्ण बातें बताई उनका सार इस प्रकार है-
भारत की महान परम्पराओं को विदेशी आक्रांताओं ने नष्ट करने के सतत प्रयास किये गए। उन आक्रांताओं नें यहाँ के सनातन संस्कृति के लोगों का मतांतरण करने में रुचि रखी। ग्रामीण जन जीवन में जहाँ जहाँ लोगों ने अपनी वंशावलियों को बचाया उनका इतिहास आज भी पारंपरिक वंशावलियों में बचा हुआ है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद नामों के पंजीकरण की नई नई पद्धतियां सरकार ने अपनाई गई। धीरे धीरे विकास के पहिये आगे बढ़ने लगे और लोक परम्पराएं पीछे छूटती गई। भारत के कुछ अंचलों में आंशिक रूप से वंशावली लेखन की परंपरा मिलती है। इन अंचलों में आज भी वंशावली के लेखक अपने यजमानों के घर वंशावली की बहियाँ लेकर जाते हैं।
वंशावली की बही को खोलने से पहले बही की पूजा की जाती है। बही को धूप, दीप रौली-मौली से पूजा की जाती है। पूजा करते समय उस परिवार के लोग अपने पूर्वजों, पितरों का स्मरण करते हैं। वंशावली का वाचन परिवार के सभी लोग श्रद्धापूर्वक सुनते हैं। परिवार के किसी व्यक्ति ने कुछ विशेष काम किया हो तो उसे भी बही में दर्ज किया जाता है। कोई नया सदस्य जुड़ा हो तो उसे भी दर्ज किया जाता है। बेटी का विवाह कब हुआ?, किस परिवार में हुआ? उस परिवार का विवरण भी लिखा जाता है। कोई नई बहू आई है तो उसके परिवार का तीन पीढ़ियों के विवरण लिखा जाता है। किसी का निधन हो जाय तो उसे भी वंशावली बही में दर्ज कर दिया जाता है। यजमान अपने राव/भाट को कुछ पारिश्रमिक और अनाज/कपड़े आदि देकर विदा करतें हैं।
वंशावली लिखने वाली जातियां प्राण पण से इन वंशावलियों का संरक्षण करते हैं। जब कागज का आविष्कार नही हुआ था, तब ये राव, भाट आदि अपने प्रत्येक यजमान की वंशावली को याद कर लेते थे। समय समय पर ये बिरदावली के रूप में यजमानों को सुनाते थे। बाद में भोजपत्र और दूसरे कागजों पर लिखा जाने लगा। स्याही स्थानीय स्तर पर तैयार की जाती थी। स्याही इतनी पक्की होती थी कि सैकड़ों वर्ष बीत जाने पर भी वह धुंधली नही पड़ती।
श्री भंवर सिंह राव ने सभागार में उपस्थित सांस्कृतिक बुद्धिशील व्यक्तियों के सामने वंशावली वाचन का प्रदर्शन किया। डिंगल शैली में कवित्त पढ़कर सृष्टि का उद्भव, क्षीरसागर में भगवान विष्णु के नाभि कमल से ब्रह्मा की उत्पत्ति और ब्रह्मा जी की संतत्तियों की वंश परम्परराओं को
भंवर सिंह राव जी ने बहुत रोचकता से प्रस्तुत किया।
सत्र के अंतिम वक्ता के रूप में असम सरकार के मंत्री रानोज पेगु ने वंशावली परंपरा के सामाजिक और वैज्ञानिक पक्ष पर विस्तार से चर्चा की और बताया कि इसकी ऐतिहासिक महत्ता तो है ही उससे ज्यादा सामाजिक महत्ता है जिससे हमें यह पता चलता है कि किस समुदाय में हमारा संबंध हो सकता है या नही। उन्होंने बताया यह परंपरा जनजातीय समाज मे भी है। श्री पेगु ने राव बंधुओं द्वारा वंशावली की प्रस्तुति की भी सराहना की।
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