संस्कृति- राष्ट्रीय संगोष्ठी: भारत की एकात्मता और जन जातीय संस्कृति 

जनजाति समुदाय में मिशनरियों द्वारा धर्मान्तरण- डॉ. शैलेन्द्र कुमार

पार्थसारथि थपलियाल।

( सभ्यता अध्ययन केंद्र के संयोजन में 6-7 अगस्त 2022 को अंतर विश्वविद्यालय त्वरक केंद्र सभागार दिल्ली में आयोजित संगोष्ठी का श्रृंखलाबद्ध सार) भारत मे विश्व के सभी बड़े संप्रदायों के मानने वाले लोग हैं। हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, मुसलमान, ईसाई, पारसी, यहूदी आदि सभी निवास करते हैं। सनातन संस्कृति में से निकले पंथों के अलावा जो दो प्रमुख मजहब हैं उनके नाम हैं इस्लाम और ईसाइयत। इन दोनों का उद्देश्य है अपने अपने मजहब का निरंतर विस्तार करना। भारत के हिन्दू अनुयायियों का मतांतरण करवा कर कई राज्यों में जनसंख्या असंतुलन बढ़ गया है। नागालैंड में ईसाई जनसंख्या 90%, मणिपुर में 42%, अरुणाचल में 31%, मिज़ोरम में 88%, मेघालय में 83%, केरल में 19% पांडिचेरी में 11%, गोवा में 25 %, झारखंड में 4.3% है। अन्य राज्यों में भी मतांतरण का काम चल रहा है। यह काम अधिकतर वनवासीय बहुल क्षेत्रों में बहुत हो रहा है।

भारत में ईसाइयत का विस्तार कैसे हो रहा है भोजन उपरान्त सत्र में इस विषय पर दो पुस्तकों के लेखक तथा भारत सरकार में वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी डॉ. शैलेन्द्र कुमार ने कुछ तथ्य प्रस्तुत किये कि भारतीय संस्कृति का ईसाईकरण कैसे हो रहा है। अपनी बात उन्होंने संगोष्ठी के मुख्य विषय से शुरू की। उन्होंने कहा कि रोमन समाज में समाज का वर्गीकरण फर्स्ट (प्रथम), सेकंड (द्वितीय) और थर्ड (तृतीय) के तौर पर समझा जाता है। यह थर्ड का अर्थ ही TRI में छुपा हुआ है। इसी tri से Tribe/Tribal शब्द बना है, जो निकृष्ट है।

अंग्रेज़ ईसाई जब भारत में आए तो उनका मुख्य लक्ष्य सनातन संस्कृति को खण्डितकर ईसाइयत को बढ़ाना था। इसके लिए उन्होंने सबसे पहले हमारी शिक्षा पद्धति बदली। अंग्रेज़ियत को बढ़ाया। हिन्दू धर्म के प्रति नफरत पैदा की। अंग्रेजों ने इस काम को पूरा करने के लिए मिशनरियों के लिए रास्ता बनाया। मिशनरियों नें भोले भाले वनवासियों में पैठ बनाने के प्रयास किये। जब वे सफल होने लगे, तब वनवासियों की सेवा के नाम पर स्कूल/कॉलेज खोले, हॉस्पिटल खोले। इस तरह से उनको धर्म बदलने के लिए प्रेरित किया।

आज भारत में उत्तर पूर्वी राज्यों में अधिकतर वनवासी ईसाई हो गए हैं। केरल, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा में मिशनरियों ने बहुत लोगों को मतांतरण किया। शहरी क्षेत्र में मतांतरण का सबसे अच्छे साधन हैं स्कूल/कॉलेज और हॉस्पिटल्स। कॉन्वेंट स्कूलों में बच्चे भारतीय संस्कृति को नहीं सीख सकते। उनके माध्यम से हमारी संस्कृति को नुकसान हुआ है। जो बच्चे भारतीय जीवन को नही समझे वे भारत के प्रति निष्ठावान भी नही हो सकते। उत्तरपूर्वी भारत में जब ईसाईकरण हुआ तो वहाँ अलगाव की आवाजें उठी। नागालैंड, मिज़ोरम आदि इलाकों में वर्षों तक संघर्ष चला। आज भी स्थिति कोई बहुत अच्छी नही हैं। उत्तर पूर्व के चार राज्यों में जाने के लिए इनर लाइन परमिट या अनुमति पत्र की आवश्यकता होती है। यह सब इसलिए हुआ क्योंकि उनका इरादा ईसाई बहुसंख्यक होकर देश का विभाजन करवाना है।

उन्होंने बताया कि बाइबिल में 40 बार लिखा है कि GOD कहता है मैं ईर्ष्यालु हूँ। जिस मजहब में भगवान के नाम से स्वयं को ईर्ष्यालु बताया गया हो, जिस मजहब में महिला को पुरुष के अधीन बताया गया हो, वह मजहब महिलाओं के प्रति क्या न्याय करेगा।

डॉक्टर शैलेन्द्र कुमार ने कहा कि मतांतरण वनवासियों में सर्वाधिक हुआ है। इसे रोकने का उपाय यह है जिन लोगों ने ईसाइयत अपनायी है, उन्हें अनुसूचित जनजाति की श्रेणी से बाहर कर देना चाहिये। इस तरह करने से या तो वे लोग मूल धर्म मे आ जाएंगे या उन्हें आरक्षित वर्ग का लाभ मिलना बंद हो जाएगा, क्योंकि आरक्षण अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए ही है। वनवासी समाज मे डिलिस्टिंग के प्रति जागरूकता को बढ़ाना भी एक आवश्यक कार्य है। साथ ही उन्होंने कहा कि हर हाल में हमें ईसाई बने वनवासियों की घर वापसी करानी ही होगी अन्यथा हम सफल नही हो पाएंगे।

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