पार्थसारथि थपलियाल।
प्रकृति पूजा सनातन संस्कृति का एक अंग है। इस प्रकृति पूजा में सूर्य उपासना भी शामिल है। उगते सूर्य को अर्घ्य देना संध्या वंदन के साथ जुड़ी पूजा विधान है लेकिन सूर्य के अस्ताचल होने पर भी इस संस्कृति में सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है। कार्तिक माह में दीपावली के बाद कार्तिक शुक्लपक्ष चतुर्थी से सप्तमी तक बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, नेपाल का तराई वाला भाग और पूर्वी उत्तर प्रदेश में सूर्य षष्ठी या छठ पूजा का आयोजन किया जाता है। यह पूजा इस क्षेत्र में वर्ष में मनाया जानेवाला पूजा-उत्सव है।
छठ पूजा के साथ कई कहानियां जुड़ी हुई हैं। संक्षेप में वे इस प्रकार से हैं- भगवान राम के अयोध्या लौटने के बाद राजतिलक से पहले कार्तिक षष्टी के दिन लोक कल्याण के लिए सीता जी ने छठ माता का व्रत रखकर पूजा की थी। महाभारत काल में कुंती ने सूर्य की उपासना की थी। द्रोपदी ने अपने पतियों की कुशलता और अच्छे स्वास्थ्य के लिए सूर्य की उपासना की थी। कर्ण जो सूर्य की उपासना से हुआ था, प्रतिदिन नदी में सूर्य अर्घ्य दिया करते थे। लोक जीवन में इसका जुड़ाव निसंतान राजा प्रियंबद के जीवन के साथ भी माना जाता है, राजा ने पुत्र प्राप्ति की कामना से देवी षष्टी का व्रत किया। यह पूजा कार्तिक शुक्लपक्ष षष्टी के दिन की गई, जिन्हें छठ माता का व्रत रखने से संतान प्राप्ति हुई। कहा जाता है यह छठ पर्व को मनाने का एक कारण और है। डोर दर्ज रहने वाले लोग छठ पूजा के लिए अपने घर गाँव पहुंचते हैं।
नहाय खाय-
छठ पूजा का संबंध स्वच्छता से भी है। छठ पूजा के पहले दिन अर्थात कार्तिक शुक्लपक्ष चतुर्थी को लोग अपने घरों में सफाई करते हैं। सात्विक और ब्रह्मश्चर्यपूर्ण जीवन जीते हैं। इज़ दिन व्रती लोग एक ही बार भोजन करते हैं। इस दिन भोजन में चने की दाल, लौकी की सब्जी, मूली और भात शामिल होते हैं। प्याज और लहसुन नही खाया जाता। भोजन में सेंधा नमक उपयोग में लाया जाता है।
खरना-
कार्तिक शुक्लपक्ष पंचमी यानि दूसरे दिन को खरना कहते हैं। खरना से आशय है शुद्धिकरण। इस दिन स्त्री और पुरुष व्रत रखते हैं। भगवान सूर्य और छठ माता के गीत गाये जाते हैं।
महिलाएं इस दिन गुड़ की खीर का प्रसाद बनाती हैं। भोजन मिट्टी के नए चूल्हे पर आम की लकड़ी जलाकर बनाने की परंपरा है। शाम के समय पहले व्रती लोग उपवास खोलते हैं बाद में अन्य लोग। परिवार के लोग इसे खाते हैं। खीर को प्रसाद स्वरूप बांटा भी जाता है। इस प्रसाद लेने के बाद व्रती लोग लगभग 36 घंटे तक कुछ नही खाते हैं।
छठ पूजा का संध्या अर्घ्य-
तीसरे दिन अर्थात कार्तिक षष्टी की सुबह, रात को रखा मिश्री युक्त जल सूर्योदय से पहले पी लेते हैं। उसके बाद अगली सुबह सूर्योदय के अर्घ्य देने की पूजा तक जल भी नही पीते हैं। शाम के समय छठ मैय्या के गीत गाते हुए श्रद्धालु गंगा घाट अथवा किसी नदी के तट पर, किसी जलाशय या कृत्रिम जलाशय की ओर बड़ी श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ जाते हैं। वे अपने साथ पूजा सामग्री में ठेकुआ (आटे का पकवान), पांच प्रकार के मौसमी फल, दूध आदि लेकर पूजा घाट पर सिर पर रखकर ले जाते हैं। वहां पर छठ मैय्या की पूजा अर्चना करते हैं और पवित्र नदी/जल में खड़े होकर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देते हैं।
छठ पूजा का दूसरा अर्घ्य-
छठ पूजा के चौथे दिन सुबह सुबह छठ माता के गीत गाते हुए सभी व्रती/श्रद्धालु एक बार फिर छठ घाट पर पहुंचते हैं। छठ माता की पूजा करते हैं। अपने परिवार/कुटुंब और परिजनों की संपन्नता, स्वास्थ, समृद्धि, और संतान की प्रगति की कामना करते हैं। सूर्योदय होते ही सूर्य को अर्घ्य दान करते हैं। इसके बाद अपने अपने घर पहुंचकर अपने देवी देवताओं की पूजा कर प्रसाद लेकर व्रत खोलते हैं।
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