समग्र समाचार सेवा
पटना, 9 अक्टूबर: दलित और आदिवासी संगठनों के राष्ट्रीय परिसंघ (एनएसीडीएओआर) के अध्यक्ष अशोक भारती ने बुधवार को अपनी रिपोर्ट ‘दलित क्या चाहते हैं’ जारी करते हुए दावा किया कि बिहार में दलित समुदाय हाशिए पर हैं और बदलाव की चाहत में अधीर हैं। उन्होंने कहा कि चाहे शिक्षा हो, स्वास्थ्य हो या रोजगार, दलित समाज राज्य की प्रगति में उचित हिस्से से वंचित है।
प्रधान न्यायाधीश पर हमला और तंत्र की चुनौती
भारती ने हाल ही में भारत के प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई पर हुए जूता फेंकने की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि यह हमला न्यायाधीश पर नहीं, बल्कि देश के तंत्र पर लक्षित था। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से अपील की कि इस घटना से चुनावों में उनके वोटों पर असर न पड़े।
बिहार में दो चरण में मतदान
बिहार विधानसभा चुनाव इस साल दो चरणों में होंगे। पहले चरण का मतदान 6 नवंबर और दूसरे चरण का 11 नवंबर को होगा, जबकि मतगणना 14 नवंबर को होगी। चुनाव में नीतीश कुमार की अगुवाई वाली एनडीए और तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन के बीच सीधा मुकाबला देखने को मिलेगा।
दलितों की शिक्षा और रोजगार में असमानता
एनएसीडीएओआर की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में दलित साक्षरता दर 55.9 प्रतिशत है, जो राष्ट्रीय औसत 66.1 प्रतिशत से काफी कम है। मुसहर समुदाय की साक्षरता दर केवल 20 प्रतिशत से भी कम है। रिपोर्ट में कहा गया कि बिहार में दलित छात्रों और संकाय सदस्यों में केवल 5.6 प्रतिशत ही हैं, जबकि आबादी में उनकी हिस्सेदारी 19.65 प्रतिशत है।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी दलित पीछे हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार, दलितों में शिशु मृत्यु दर 55 प्रति 1,000 जीवित शिशुओं पर है, जबकि राज्य का औसत 47 और राष्ट्रीय औसत 37 है। दलित महिलाओं में मातृ मृत्यु दर 130 प्रति 1,000 जीवित शिशुओं के जन्म पर है, जबकि राज्य औसत 118 और राष्ट्रीय औसत 97 है।
जमीन, आय और जीवन स्तर में असमानताएं
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि लगभग 84 प्रतिशत दलित परिवार भूमिहीन हैं और केवल सात प्रतिशत के पास खेती योग्य जमीन है। दलित परिवारों की औसत प्रति व्यक्ति आय 6,480 रुपये है, जो राज्य के औसत से लगभग 40 प्रतिशत कम है।
अत्याचार और सुरक्षा की चिंता
एनएसीडीएओआर की रिपोर्ट के अनुसार, 2010 से 2022 के बीच बिहार में दलितों पर 85,684 अत्याचार दर्ज किए गए, यानी प्रतिदिन औसतन 17 घटनाएं। यह संख्या इस बात का संकेत है कि दलित समाज अभी भी सुरक्षा और सामाजिक न्याय के लिए संघर्षरत है।
बदलाव की उम्मीद और चुनावी महत्व
भारती ने कहा कि दलित समुदाय अधीर है और बदलाव चाहता है। हालांकि उन्होंने स्पष्ट नहीं किया कि वे किस दिशा में जाएंगे, लेकिन यह स्पष्ट है कि आगामी बिहार विधानसभा चुनाव उनके लिए निर्णायक होगा। समाज के इस वर्ग की भागीदारी न केवल सत्ता के समीकरण बदल सकती है, बल्कि राज्य के विकास और न्याय की दिशा भी तय करेगी।
एनएसीडीएओआर की रिपोर्ट बिहार के दलितों की वास्तविक स्थिति को उजागर करती है। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और सामाजिक न्याय में असमानताओं के बावजूद, यह समुदाय बदलाव की उम्मीद में है। आगामी विधानसभा चुनाव 2025 में दलित मतदाता यह तय करेंगे कि बिहार पिछड़ेपन और असमानताओं से बाहर निकलकर विकास और सुशासन की दिशा में बढ़ेगा या नहीं।
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