‘तमिलनाडु पर निर्णय न्यायिक अतिक्रमण नहीं’: सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. आदिश सी. अग्रवाल

नई दिल्ली, 14 अप्रैल : सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष एवं वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. आदिश सी. अग्रवाल ने तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा विधेयकों पर सहमति देने को लेकर आए सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले को संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत न्यायिक अतिक्रमण मानने से इनकार किया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह निर्णय एक संतुलित और संवैधानिक दृष्टिकोण पर आधारित है।

डॉ. अग्रवाल ने 2023 के पंजाब राज्य बनाम पंजाब के राज्यपाल के प्रधान सचिव मामले का उल्लेख करते हुए कहा कि यद्यपि संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 राज्यपाल या राष्ट्रपति को किसी विधेयक पर कार्यवाही करने के लिए समय सीमा नहीं देते, फिर भी उस निर्णय में अदालत ने समयबद्ध निर्णय लेने की आवश्यकता पर बल दिया था।

डॉ. अग्रवाल ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट का 2023 के फैसले पर भरोसा करना एक मजबूत संवैधानिक आधार है। लेकिन मेरा मानना है कि अदालत को अनुच्छेद 142 के तहत ‘डीन्ड असेंट’ (माना गया अनुमोदन) घोषित करने से पहले राज्यपाल को सीमित समय में अंतिम बार सहमति देने का अवसर अवश्य देना चाहिए था।”

उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि तमिलनाडु के राज्यपाल सुप्रीम कोर्ट से आग्रह कर सकते हैं कि इस मामले को एक बड़ी पीठ को सौंपा जाए। एक व्यापक संविधान पीठ इस बात पर विचार कर सकती है कि क्या न्यायालय को अनुच्छेद 142 का उपयोग करने से पहले कार्यपालिका को एक अंतिम अवसर देना आवश्यक है।

यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब न्यायपालिका और राज्यपालों की भूमिका को लेकर देश में एक व्यापक बहस छिड़ी हुई है। कई राजनीतिक दलों और कानूनी विशेषज्ञों ने हालिया निर्णय को कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण बताया, जबकि अन्य इसे न्यायिक सक्रियता की एक आवश्यक मिसाल मानते हैं।

डॉ. अग्रवाल का यह संतुलित दृष्टिकोण न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच के संवैधानिक संतुलन को समझने की दिशा में एक महत्वपूर्ण हस्तक्षेप माना जा रहा है।

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