समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 24 मई: दिल्ली की एक अदालत ने extramarital affair (परस्त्रीगमन) के कथित मामले में दो आर्मी अधिकारियों से जुड़ी याचिका पर सुनवाई करते हुए निजता के अधिकार को सर्वोपरि माना है। अदालत ने एक होटल से सीसीटीवी फुटेज की मांग को खारिज कर दिया है। याचिका एक मेजर ने दायर की थी, जिन्होंने आरोप लगाया था कि उनकी पत्नी का एक अन्य मेजर से संबंध है।
निजता सर्वोपरि:
सिविल जज वैभव प्रताप सिंह ने कहा कि होटल में ठहरने वाले अतिथियों की गोपनीयता की रक्षा करना होटल की जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि होटल के कॉमन एरिया में भी मेहमानों की निजता का अधिकार है और कोई तीसरा व्यक्ति, जो वहां मौजूद न हो, उसे उन डाटा तक पहुंच का कोई वैध अधिकार नहीं है।
पक्षकार बनाए बिना सूचना नहीं दी जा सकती:
न्यायाधीश ने कहा कि जिस महिला और अधिकारी पर संबंध होने का आरोप लगाया गया है, उन्हें इस मामले में पक्षकार नहीं बनाया गया है, जबकि वे इस विवाद के केंद्र में हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें अपनी निजता की रक्षा के लिए सुनवाई का अवसर दिए बिना इस प्रकार की निजी जानकारी देना प्राकृतिक न्याय और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा और इससे उनकी प्रतिष्ठा को भी नुकसान पहुंच सकता है।
कोर्ट नहीं है निजी मामलों की जांच एजेंसी:
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि कोर्ट किसी निजी विवाद की जांच एजेंसी नहीं है और न ही साक्ष्य जुटाने का माध्यम। जज सिंह ने याचिकाकर्ता को सलाह दी कि वह आर्मी एक्ट, 1950 और प्रासंगिक नियमों के तहत उपलब्ध आंतरिक उपायों का सहारा लें। उन्होंने कहा कि कोर्ट का प्रयोग इन व्यवस्थाओं को दरकिनार करने या पूरक के रूप में नहीं किया जा सकता।
नारी के सम्मान पर टिप्पणी:
अपने आदेश में जज ने ग्रैहम ग्रीन के उपन्यास ‘द एंड ऑफ द अफेयर’ का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि विवाह की निष्ठा का भार उस पर होता है जिसने प्रतिज्ञा की हो। “यह प्रेमी नहीं है जिसने विवाह को धोखा दिया, बल्कि वह है जिसने वचन तोड़ा। बाहरी व्यक्ति उस वचन से बंधा हुआ नहीं था,” उन्होंने कहा।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला:
सुप्रीम कोर्ट के 2018 के जोसेफ शाइन बनाम भारत सरकार के ऐतिहासिक फैसले का हवाला देते हुए, उन्होंने कहा कि अब यह धारणा अस्वीकार्य है कि कोई पुरुष किसी अन्य पुरुष की पत्नी का ‘प्रेम चुरा’ सकता है। यह महिला की पसंद को नकारता है और उसे वस्तु की तरह दर्शाता है।
जज ने यह भी कहा कि संसद ने भारतीय दंड संहिता में बदलाव करते हुए परस्त्रीगमन कानून को खत्म कर दिया है, और यह दिखाता है कि आधुनिक भारत में लिंग भेद और पितृसत्तात्मक सोच के लिए कोई स्थान नहीं है।
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