दिल्ली दंगे 2020: भारत के खिलाफ पूर्व नियोजित सूचना युद्ध – अधिवक्ता मोनिका अरोड़ा

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,4 मार्च।
दिल्ली दंगों 2020 की पाँचवीं बरसी पर, देश के प्रख्यात विधि विशेषज्ञों, सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारियों, बुद्धिजीवियों और शिक्षाविदों ने संविधान क्लब, नई दिल्ली में एक विचार गोष्ठी में भाग लिया। यह एक दिवसीय स्मृति सभा ग्रोप ऑफ इंटेलेक्चुअल्स एंड एकेडेमिशियन्स (GIA) द्वारा आयोजित की गई थी। इस कार्यक्रम में न्यायमूर्ति एस.एन. ढींगरा, पूर्व सत्र न्यायाधीश श्री राजेंद्र शर्मा, सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता श्रीमती मोनिका अरोड़ा, पूर्व आईपीएस अधिकारी श्री एस.एन. श्रीवास्तव, न्यायमूर्ति प्रमोद कोहली, पूर्व राजदूत सुश्री भास्वती मुखर्जी सहित कई प्रमुख हस्तियों ने भाग लिया।

भारत की सांस्कृतिक एकता पर मंडराते खतरे

गोष्ठी के दौरान, न्यायमूर्ति एस.एन. ढींगरा ने भारत की बहुसांस्कृतिक विरासत और विभिन्न समुदायों के सद्भावपूर्वक सह-अस्तित्व की चर्चा की। उन्होंने यह भी चिंता व्यक्त की कि क्या भारत की सांस्कृतिक एकता अब कुछ समूहों द्वारा हाशिए पर डाले जाने या शोषण का शिकार हो रही है।

पूर्व सत्र न्यायाधीश श्री राजेंद्र शर्मा ने दिल्ली दंगों 2020 के कारणों पर विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि ये दंगे स्वतःस्फूर्त प्रतिक्रिया नहीं थे, बल्कि कुछ समूहों द्वारा सुनियोजित अस्थिरता फैलाने और देश की सामाजिक संरचना को कमजोर करने की एक सोची-समझी साजिश थी। उन्होंने विशेष रूप से नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के इर्द-गिर्द फैलाए गए भ्रामक प्रचार पर प्रकाश डाला।

दिल्ली दंगों और सूचना युद्ध का प्रभाव

कार्यक्रम में अधिवक्ता मोनिका अरोड़ा ने जोर देकर कहा कि दिल्ली दंगे केवल एक हिंसक घटना नहीं थे, बल्कि यह भारत के खिलाफ सूचना युद्ध का एक प्रमुख उदाहरण थे। उन्होंने बताया कि कैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म, मीडिया और अंतर्राष्ट्रीय लॉबियों द्वारा भारत के अंदरूनी मामलों को प्रभावित करने की कोशिश की गई।

उन्होंने कहा, “सूचना युद्ध एक ऐसी रणनीति है, जिसमें सार्वजनिक राय को प्रभावित करने, सामाजिक समरसता को बाधित करने और राजनीतिक या वैचारिक लाभ के लिए घटनाओं में हेरफेर किया जाता है।”

मोनिका अरोड़ा ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि दिल्ली दंगों में हिंसा से परे, एक अदृश्य शक्ति सक्रिय थी, जो भावनाओं को भड़का रही थी और जनता की धारणा को नियंत्रित करने का प्रयास कर रही थी

आईएसआई और कट्टरपंथी संगठनों की भूमिका

पूर्व आईपीएस अधिकारी श्री कर्नल सिंह ने जनसांख्यिकी और प्रवासन के संदर्भ में दंगों के प्रभाव का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि आईएसआई (ISI) और अन्य कट्टरपंथी संगठनों ने किस प्रकार भारत-विरोधी भावनाओं को भड़काने का काम किया। उन्होंने जमात-ए-इस्लामी और स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) जैसी संस्थाओं के प्रभाव पर भी चिंता जताई, जो वर्षों से भारत में अस्थिरता पैदा करने की कोशिश कर रही हैं।

हिंसा के पीड़ितों को श्रद्धांजलि

गोष्ठी के तीसरे सत्र में पीजीडीएवी कॉलेज (शाम) के उड़ान थिएटर ग्रुप के छात्रों द्वारा एक भावनात्मक नाटक प्रस्तुत किया गया। यह नाटक दंगों में शहीद हुए दिलबर नेगी, अंकित शर्मा और अन्य निर्दोष नागरिकों को श्रद्धांजलि स्वरूप था।

समाज में शांति और एकता की अपील

पूर्व राजदूत सुश्री भास्वती मुखर्जी ने इस अवसर पर दिल्ली दंगों और मानवाधिकारों के परिप्रेक्ष्य पर अपनी राय साझा की। उन्होंने कहा कि इस तरह की घटनाएँ समाज में विभाजन को बढ़ावा देती हैं, इसलिए समाज को संगठित होकर शांति और समरसता की दिशा में काम करना चाहिए।

गोष्ठी के अंत में सभी अतिथियों और प्रतिभागियों ने दंगों में मारे गए निर्दोष नागरिकों की स्मृति में श्रद्धांजलि अर्पित की

निष्कर्ष

दिल्ली दंगे 2020, भारत के इतिहास में एक दुखद और महत्वपूर्ण मोड़ थे। इस विचार गोष्ठी ने यह स्पष्ट किया कि इन दंगों के पीछे न केवल हिंसा थी, बल्कि एक सुनियोजित सूचना युद्ध भी था, जिसका उद्देश्य भारत को अस्थिर करना और सामाजिक ताने-बाने को तोड़ना था।

इस कार्यक्रम ने यह संदेश दिया कि देश की अखंडता बनाए रखने के लिए नागरिकों को सतर्क रहने और भ्रामक सूचनाओं के जाल में न फँसने की आवश्यकता है। भारत की संविधानिक एकता और सामाजिक समरसता को बनाए रखने के लिए हर नागरिक को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी।

Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.