न्यूक्लियर ताकत होते हुए भी भारत ने क्यों रखी है ‘नो फर्स्ट यूज’ की नीति, क्या बदलने का वक्त आ गया है?

जीजी न्यूज ब्यूरो
नई दिल्ली,11 मई:
“परमाणु बम तो हमारे पास भी हैं, पर हम पहले वार नहीं करेंगे!” – यह वह नीति है जिसने भारत को दुनिया के बाकी परमाणु शक्तियों से अलग खड़ा किया है। लेकिन आज जब चीन और पाकिस्तान अपने नापाक इरादों से घिरे बैठे हैं, क्या यह सही समय है कि भारत अपनी ‘नो फर्स्ट यूज’ (NFU) नीति पर फिर से विचार करे?

भारत ने 1998 में अपने सफल पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद एक बात साफ कर दी – “हम परमाणु हथियार का इस्तेमाल सिर्फ आत्मरक्षा के लिए करेंगे।” यह नीति एक ओर जहां भारत को एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित करती है, वहीं दूसरी ओर इसे नैतिक और रणनीतिक मजबूती भी देती है। लेकिन सवाल उठता है – क्या यह नीति आज भी प्रासंगिक है?

भारत के दोनों परमाणु पड़ोसी – चीन और पाकिस्तान – अपनी आक्रामक नीतियों और सैन्य विस्तार से भारत की सुरक्षा के लिए चुनौती बने हुए हैं। चीन का बढ़ता सैन्य बजट और पाकिस्तान का ‘थियेटर न्यूक्लियर वेपन’ (TNW) जैसे छोटे, कम दूरी के परमाणु हथियारों का जखीरा, भारत के सामने एक नई चुनौती पेश कर रहा है।

कई रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा समय में जब पड़ोसी मुल्क लगातार उकसावे की नीति पर चल रहे हैं, भारत को अपनी ‘नो फर्स्ट यूज’ नीति पर फिर से विचार करना चाहिए। इसका सीधा मतलब होगा – “अगर दुश्मन ने जरा भी हरकत की, तो उसे वही पलटवार मिलेगा, जिससे उसकी हड्डियां तक कांप जाएं!”

अगर भारत NFU नीति को छोड़ता है, तो इसका असर न केवल चीन और पाकिस्तान पर पड़ेगा, बल्कि पूरी दुनिया में परमाणु संतुलन बदल जाएगा। अमेरिका, रूस और यहां तक कि यूरोपीय शक्तियां भी इस बदलाव को बारीकी से देखेंगी।

भारत एक शांति प्रिय राष्ट्र है, लेकिन इतिहास गवाह है – “शांति उन्हीं को मिलती है, जो युद्ध के लिए हमेशा तैयार रहते हैं!” तो क्या वक्त आ गया है कि भारत अपनी परमाणु नीति में बदलाव करे और दुश्मनों को साफ संदेश दे – “हम सिर्फ जवाब नहीं देंगे, बल्कि ऐसा वार करेंगे कि दुश्मन का अस्तित्व ही मिट जाएगा!”

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