ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी एक ग़लत आरोपित तथ्य- कांग्रेसी व वामपंथी इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास के साथ सनातन हिंदू ग्रंथो के साथ भी छेड़ छाड़ की-

* कुमार राकेश
कांग्रेसी व वामपंथी ग्रास काल के कई इतिहासकारों ने हमारे मूल इतिहास के साथ तो कई छेड़छाड़ तो किया ही है , सनातन हिंदू ग्रंथों को भी अपने विरोध शैलियों से नहीं बख्शा है .

अब समय आ गया है -भारत के मूल चरित्र “सत्यमेव जयते”को पूर्णतया महिमा मंडित करने का.

कांग्रेसी व वामपंथी काल के इतिहासकारों ने सनातन हिंदू धर्म से जुड़े कई सत्यों व तथ्यों को कई बार भारत के अंदर व बाहर नीचा दिखाने की अथक कोशिश की और करते रहे हैं.जबकि
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कई प्रकल्पों में से एक अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना द्वारा भारत के सच्चे इतिहास को आम जन के सामने लाने में भी महती योगदान बताया जा रहा है.ये योजना 1991 से अनवरत कार्य कर रहा है.इस कार्य में 2014 के बाद भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद का विशेष समर्थन व सहयोग मिलने लगा है. जिससे देश के कई पूर्व तथाकथित इतिहासकार गण अपने असत्य मसलो की वजह से बेनक़ाब हुए हैं .

सनातन हिंदुओं के पावन ग्रंथ
श्रीरामचरितमानस को लेकर कांग्रेस व वाम दलों से जुड़े कई तथाकथित विद्वानो द्वारा कई ग़लत तथ्य प्रचारित-प्रसारित किए गए हैं और आज़ भी करते रहते हैं. हम अपने पाठकों से अनुरोध करते है वे सभी समानांतर तौर पर सत्य को जाने, परखे व भारत के समग्र विकास पथ पर आगे बढ़े .

पुरातन इतिहास व वैदिक ग्रंथो में जहां एक ओर किसी का महिमामंडन हो रहा हो वही किसी दूसरे संदर्भ में उनका तिरस्कार नहीं किया जा सकता.
जैसे ढोल,  गवार,  शूद्र,   पशु,   नारी.!
ये पंक्ति ही ग़लत है .ग़लत तौर पर प्रचारित -प्रसारित किया गया.
जैसे ताजमहल व क़ुतुब मीनार आदि कई स्थलो को झूठे तथ्यों से महिमा मंडित किया गया था जिससे सत्य दब गया, झूठ सत्य से ज़्यादा ताकतवर दिखने लगा.

उसी तर्ज़ पर ढोल,गंवार,शूद्र , पशु व नारी वाले तथ्य को आज तक गलत तौर पर प्रचारित प्रसारित किया गया है, जबकि
सही शब्द हैं———
ढोल, गवार, क्षुब्ध पशु, रारी.!”

श्रीरामचरितमानस में शूद्रों और नारी का अपमान कहीं भी नहीं किया गया है।किसी भी रामायण में नहीं.विश्व स्तर पर रामायण को कई विद्वानो ने अपने अपने तरीक़े से लिखा है ,परंतु गोस्वामी तुलसीदास व महर्षि वाल्मीकि के द्वारा रचित रामायण सबसे ज़्यादा चर्चित हुए.
वैसे तो भारत में जाति प्रथा का को समाज में भेद कर प्रचार प्रसार में मुग़ल व अंग्रेज़ी शासकों का विशेष योगदान रहा हैं.

यदि हम उस जाति प्रथा की बात मान भी लेते हैं तो भारत में शूद्रों को लेकर पिछले 500 वर्षों अधिक प्राचीन गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित सनातन हिंदू महाग्रंथ ‘श्रीरामचरितमानस’ की कुल 10902 चौपाईयों में से आज तक मात्र 1 ही चौपाई पढ़ने में ऐसी क्यूँ आ पाई है,उसके अलावा भगवान श्री राम का मार्ग रोकने वाले समुद्र द्वारा भय वश किया गया एक अनुनय का अंश भी है जो कि सुंदर कांड में 58 वें दोहे की छठी चौपाई है ..

“ढोल, गँवार, क्षुब्ध पशु,रारी .! सकल ताड़ना के अधिकारी”
ये सही है . उचित है . तथ्यपूर्ण हैं.

इस सन्दर्भ में चित्रकूट में मौजूद तुलसीदास धाम के पीठाधीश्वर और विकलांग विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री राम भद्राचार्य जी के विचार उपयुक्त है . श्री रामभद्र जी नेत्रहीन हैं .इसके बावजूद वह संस्कृत, व्याकरण, सांख्य, न्याय, वेदांत, के उद्भट विद्वान है . वह अपने कई अनुपम कार्यों के लिए 5 से अधिक स्वर्ण पदक भी जीत चुकें हैं।

“रामभद्राचार्य जी का कहना है कि बाजार में प्रचलित श्रीरामचरितमानस में 3 हजार से भी अधिक स्थानों पर अशुद्धियां हैं और इस चौपाई को भी अशुद्ध तरीके से प्रचारित किया गया है .आज़ भी किया जा रहा है।

उनका कथन है कि तुलसी दास जी महाराज खलनायक नहीं थे,

आप स्वयं विचार करें-यदि तुलसीदास जी की मंशा सच में शूद्रों और नारी को प्रताड़ित करने की ही होती तो क्या “श्री रामचरितमानस की 10902 चौपाईयों में से वह मात्र 1 चौपाई में ही शूद्रों और नारी को प्रताड़ित करने की ऐसी बात क्यों करते ?

यदि ऐसा ही होता तो भील शबरी के जूठे बेर को भगवान द्वारा खाये जाने का वह चाहते तो लेखन न करते।यदि ऐसा होता तो केवट को गले लगाने का लेखन न करते।बाली-सुग्रीव कथा , जटायु कथा,वानर सेना जैसे कथाएँ नहीं लिखी जाती.

स्वामी जी के अनुसार..
ये चौपाई सही रूप में –
ढोल,गवार, शूद्र,पशु,
नारी नहीं है

बल्कि यह
“ढोल,गवार,क्षुब्ध
पशु,रारी” है।
जिसका अर्थ इस प्रकार है –
ढोल = बेसुरा ढोलक
गवार = गवांर व्यक्ति
क्षुब्ध पशु = आवारा पशु जो लोगो को कष्ट देते हैं
रारी= कलह करने वाले लोग

चौपाई का सही अर्थ है कि जिस तरह बेसुरा ढोलक, अनावश्यक ऊल जलूल बोलने वाला गवांर व्यक्ति, आवारा घूम कर लोगों की हानि पहुँचाने वाले..अर्थात क्षुब्ध, दुखी करने वाले पशु और रार अर्थात कलह करने वाले लोग जिस तरह दण्ड के अधिकारी हैं.!

स्वामी राम भद्राचार्य जी  के अनुसार-श्रीरामचरितमानस की मूल चौपाई इस तरह है और इसमें ‘क्षुब्ध’ के स्थान पर ‘शूद्र’ कर दिया और ‘रारी’ के स्थान पर ‘नारी’ कर दिया गया है।

मेरे विचार से ये महा ग़लतियाँ भारतीय हिंदू समाज को तोड़ने व अन्य पंथो को मज़बूत किए जाने की साज़िश के तहत जानबूझ कर उस तथ्य को गलत तरह से प्रकाशित प्रचारित किया जाता रहा है,पर अब और झूठ नहीं .

इसी उद्देश्य के लिये उन साज़िश कर्ताओं ने स्वयं शुद्ध की गई अलग एक नया श्रीरामचरित मानस प्रकाशित करवा दी. जिसका समय समय पर समग्र हिंदू समाज को तोड़ने के लिए उपयोग किया गया . सनातन हिंदू समाज के ख़िलाफ़ साज़िशें की गयी.
श्री रामभद्राचार्य कहते हैं-धार्मिक ग्रंथो को आधार बनाकर गलत व्याख्या करके जो लोग सनातन हिन्दू समाज को तोड़ने की अथक कोशिशें कर रहे है परंतु अब उन्हें सफल नहीं होने दिया जायेगा।

सभी सुधी पाठकों से करबद्ध निवेदन है कि इस लेख को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाये जिससे
गोस्वामी तुलसीदास जी की चौपाई का सही अर्थ लोगो तक पहुँचे और हमारा सनातन हिन्दू समाज को टूटने से बच सके . धर्मांतरण पर अंकुश लग सके . सनातन हिंदू समाज दिनो दिन समग्र तौर पर मज़बूती से खड़ा रह सके।

!!सत्यमेव जयते!!

* कुमार राकेश, नई दिल्ली

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