
प्रो. मदन मोहन गोयल, प्रवर्तक नीडोनॉमिक्स एवं पूर्व कुलपति
भारत और पाकिस्तान के संबंध 1947 से ही अविश्वास, शत्रुता और रक्तपात से भरे रहे हैं। जब भी दोनों देशों के बीच मित्रता की बात आती है, अधिकांश देशभक्त सहज ही नकारात्मक प्रतिक्रिया देते हैं। विभाजन की हिंसा, 1947, 1965, 1971 और 1999 के युद्ध, और दशकों से जारी सीमा-पार आतंकवाद की यादें नागरिकों के दिलों में कटुता, रोष और अविश्वास भर देती हैं। इस मानसिक बोझ ने एक कठोर सोच को जन्म दिया है: “पाकिस्तान पर कभी भरोसा नहीं किया जा सकता।”
फिर भी, नीडोनॉमिक्स स्कूल ऑफ थॉट (एनएसटी) हमें इन धारणाओं पर पुनर्विचार करने की प्रेरणा देता है। युद्ध चाहे किसी भी कारण से लड़े जाएँ, उनका अंत अंततः वार्ता की मेज़ पर ही होता है। युद्ध के बाद बचा मानवीय और आर्थिक विनाश संवाद की अनिवार्यता को और भी मज़बूत करता है। एनएसटी का संदेश स्पष्ट है—मानवता को युद्ध की भयावहता से दूर रहना चाहिए, क्योंकि युद्ध करुणा, गरिमा और नैतिक ज़िम्मेदारी को नष्ट करता है। यह ऐसी पीढ़ीगत चोटें छोड़ जाता है जो समाजों को बदले और प्रतिशोध के चक्र में जकड़ लेती हैं।
वर्तमान वास्तविकता
पाकिस्तान आज भी आंतरिक विरोधाभासों से जूझ रहा है। बलूचिस्तान में केंद्र सरकार के खिलाफ असंतोष व्यापक है, जो विरोध और प्रतिरोध के रूप में सामने आता है। अपनी जनता की समस्याओं का समाधान करने की बजाय पाकिस्तान अक्सर खुद को भारत की दखलंदाज़ी का शिकार बताता है और यह झूठा नैरेटिव फैलाता है कि केवल भारत ही क्षेत्र में अस्थिरता पैदा कर रहा है। वहीं, उसके भूभाग से संचालित आतंकवादी गतिविधियाँ भारत को पाकिस्तान की नीयत पर गहरे संदेह में डालती हैं।
पाकिस्तान की निर्दोषता के दावों पर पूरी तरह भरोसा करना अव्यावहारिक है, जैसे यह मानना असंभव है कि भारत पूरी तरह निर्दोष है। अंतरराष्ट्रीय संघर्षों की सच्चाई अक्सर सरकारों की स्वीकृति और अस्वीकृति के बीच कहीं होती है। एक बात निश्चित है कि शत्रुता से किसी भी पक्ष को लाभ नहीं होता।
राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से देखें तो भारत आज दोहरे संकट का सामना कर रहा है। आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार भारत के पास वर्तमान में लगभग 29 लड़ाकू स्क्वाड्रन हैं। पाकिस्तान के पास लगभग 25 और चीन—भारत का कहीं बड़ा पड़ोसी—के पास लगभग 66 उन्नत स्क्वाड्रन हैं, जिनमें से कई पाँचवीं पीढ़ी के हैं। आने वाले वर्षों में पाकिस्तान को भी चीन से उन्नत स्क्वाड्रन मिलने की संभावना है, जो क्षेत्रीय संतुलन को और असमान करेगा।
भारत, उभरती शक्ति होने के बावजूद, अभी भी एक विकासशील राष्ट्र है जहाँ स्वास्थ्य, शिक्षा, बुनियादी ढाँचे और गरीबी उन्मूलन जैसी तात्कालिक ज़रूरतें हैं। पाकिस्तान के साथ लम्बा युद्ध—या और भी ख़तरनाक स्थिति, पाकिस्तान और चीन दोनों के साथ दो-मोर्चा संघर्ष—भारत की विकास यात्रा को गंभीर रूप से पटरी से उतार देगा। पाकिस्तान, अपनी कमज़ोर अर्थव्यवस्था और सामाजिक चुनौतियों के साथ, किसी बेहतर स्थिति में नहीं है। संघर्ष का चक्र दोनों देशों को दुनिया से पीछे धकेल देगा।
संवाद का तर्क
एनएसटी इस बात पर ज़ोर देता है कि हर युद्ध का अंतिम पड़ाव शांति वार्ता ही होती है। यदि संवाद अपरिहार्य है, तो क्यों न इसे विनाश के बाद अंतिम विकल्प की बजाय आरंभिक कदम बनाया जाए?
आज पाकिस्तान स्वयं भारत के साथ बेहतर संबंध बनाने की रुचि दिखा रहा है। उसकी नीयत पर संदेह स्वाभाविक है, लेकिन भारत की नेतृत्वकारी भूमिका को शांति के हर छोटे अवसर को भी नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए। राष्ट्रहित में हर संभावना का अन्वेषण आवश्यक है। इतिहास गवाह है कि साहसिक नेतृत्व के लिए चुनावी गणनाओं और राजनीतिक प्रतिद्वंद्विताओं से परे सोचना पड़ता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में उस समय सभी को चौंका दिया जब उन्होंने बिना पूर्व सूचना के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ के जन्मदिन पर उनके घर पहुँचकर शुभकामनाएँ दीं। घरेलू विपक्ष ने इस कदम की आलोचना की, लेकिन यह संदेह से ऊपर उठकर सद्भावना अपनाने का एक राजनेता-सुलभ प्रयास था। एनएसटी इस तरह की पहलों को राजनीतिक भूल नहीं बल्कि नैतिक और रणनीतिक आवश्यकता मानता है। अब उस भावना को पुनर्जीवित करने का समय है।
नीडोनॉमिक्स परिप्रेक्ष्य: पाकिस्तान को भारत के करीब लाना
वर्तमान में पाकिस्तान की रणनीतिक निर्भरता चीन पर गहरी हो चुकी है। चीन–पाकिस्तान आर्थिक गलियारे ( सीपीईसी) के तहत बीजिंग ने पाकिस्तान में भारी निवेश किया है, जिससे इस्लामाबाद की आर्थिक और सुरक्षा नीतियों पर उसका प्रभाव मज़बूत हुआ है। इसी तरह, रूस भी पाकिस्तान से बढ़ते संबंधों में रुचि दिखा रहा है।
यदि भारत स्थायी शत्रुता का मार्ग चुनता है, तो पाकिस्तान और गहराई से इन बाहरी शक्तियों की ओर झुकेगा। लेकिन यदि भारत नीडोनॉमिक्स-प्रेरित मित्रता की नीति अपनाए, तो धीरे-धीरे चीन और रूस की जगह भारत पाकिस्तान की प्राथमिकता में आ सकता है। भारत–पाक आर्थिक सहयोग, औद्योगिक विस्तार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान न केवल संघर्ष की आशंका कम करेंगे बल्कि भारत की वैश्विक प्रभावशीलता को भी बढ़ाएँगे।
यह एनएसटी के आदेश—नीडो-उपभोग, नीडो-उत्पादन, नीडो-वितरण और निडर व्यापार—से मेल खाता है। हथियारों की दौड़ पर सीमित संसाधन बर्बाद करने की बजाय दोनों देश अपनी जनता के उत्थान में निवेश कर सकते हैं। शांति लाभांश के रूप में रोज़गार में वृद्धि, गरीबी में कमी, क्षेत्रीय व्यापार की मज़बूती और जीवन की गुणवत्ता में सुधार हासिल होगा।
भारत–पाकिस्तान संवाद हेतु नीडोनॉमिक्स रोडमैप
1. निडर व्यापार पहलें
- आवश्यक वस्तुओं जैसे दवाइयाँ, कृषि इनपुट, वस्त्र और आईटी सेवाओं में सीमित व्यापार से शुरुआत।
- ज़रूरत-आधारित व्यापार को बढ़ावा, जो दोनों देशों के नागरिकों के लिए लागत घटाए, न कि केवल अभिजात वर्ग की सेवा करे।
2. संयुक्त सांस्कृतिक मंच
- खेल, फिल्म, साहित्य और शैक्षणिक सहयोग के माध्यम से जन-से-जन संपर्क को प्रोत्साहन।
- छात्र विनिमय कार्यक्रम पुनर्जीवित करना और विश्वविद्यालयों को सतत विकास पर संयुक्त सम्मेलन आयोजित करने देना।
3. साझा जल और ऊर्जा परियोजनाएँ
- बाढ़, सूखा और सिंचाई जरूरतों के प्रबंधन हेतु सिंधु जल संधि के अंतर्गत संयुक्त तंत्र स्थापित करना।
- सौर और पवन ऊर्जा में साझेदारी तलाशना, जिससे बाहरी शक्तियों पर निर्भरता घटे।
4. आर्थिक सहयोग क्षेत्र
- सुरक्षित क्षेत्रों में सीमा-पार औद्योगिक क्लस्टर स्थापित करना—वस्त्र, औषधि और कृषि-प्रसंस्करण पर केंद्रित।
- ऐसे प्रोजेक्ट युवाओं के लिए रोज़गार अवसर पैदा करेंगे, जिससे उग्रवाद का आकर्षण कम होगा।
5. स्वास्थ्य और आपदा प्रबंधन सहयोग
- महामारी के दौरान टीकों, दवाओं और चिकित्सकीय विशेषज्ञता को साझा करने हेतु प्रोटोकॉल विकसित करना।
- भूकंप और बाढ़ जैसी बार-बार आने वाली आपदाओं के लिए संयुक्त प्रतिक्रिया दल बनाना।
6. आतंकवाद पर सुरक्षा संवाद
- आतंकवाद के लिए क्षेत्र का दुरुपयोग रोकने हेतु संयुक्त निगरानी तंत्र पर सहमति।
- सैन्य-से-सैन्य वार्ता जैसी विश्वास निर्माण उपाय (CBMs) आकस्मिक टकराव को कम कर सकते हैं।
अंतिम अपील
दोनों देशों के नेताओं के कंधों पर नैतिक ज़िम्मेदारी है कि आने वाली पीढ़ियाँ युद्ध के घाव नहीं बल्कि शांति के फल विरासत में पाएँ। सत्ता में बैठे राजनेताओं को दूरदर्शिता दिखानी चाहिए और विपक्ष को बुद्धिमत्ता के साथ सहयोग देना चाहिए। नीडोनॉमिक्स हमें सिखाता है कि असली ताक़त हथियारों के भंडार में नहीं बल्कि विश्वास निर्माण में है; दुश्मनी पालने में नहीं बल्कि मानवता को पोषित करने में है। भारत और पाकिस्तान के पास संघर्ष को सहयोग, संदेह को एकजुटता और प्रतिद्वंद्विता को क्षेत्रीय पुनर्जागरण में बदलने का अवसर है। शुरुआत का समय यही है।
निष्कर्ष
युद्ध का मार्ग सुझाना आसान है पर टिकाए रखना असंभव; संवाद का मार्ग कठिन है पर दीर्घकाल में लाभकारी। नीडोनॉमिक्स स्कूल ऑफ थॉट हमें याद दिलाता है कि संवाद कमजोरी नहीं बल्कि शक्ति की सर्वोच्च अभिव्यक्ति है। सत्ता पक्ष को चाहिए कि शांति को राजनीतिक लाभ–हानि से ऊपर रखे और विपक्ष को चाहिए कि प्रतिद्वंद्वी द्वारा लाई गई पहल का भी समर्थन करे। राष्ट्रीय हित को चुनावी लाभ की वेदी पर बलि नहीं चढ़ाना चाहिए।
भारत और पाकिस्तान एक ऐतिहासिक चौराहे पर खड़े हैं। यदि वे आज संवाद का चुनाव करते हैं, तो कल ऐसा हो सकता है जिसमें वैमनस्य न हो और संसाधन समृद्धि में लगें, विनाश में नहीं। संदेह को छोड़ विश्वास को अपनाकर वे यह साबित कर सकते हैं कि दक्षिण एशिया भी मेल-मिलाप और साझा विकास की कहानी लिख सकता है। नेताओं के कंधों पर यही नैतिक जिम्मेदारी है—भविष्य की पीढ़ियाँ युद्ध के घाव नहीं, बल्कि शांति के फल पाएँ।
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