तेरे कूचे से अपनी याराना पुरानी कहां काम आई
निकाले गए ऐसे जैसे तुझसे कोई नाता न था हरजाई’
बिहार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मदन मोहन झा को हाईकमान ने यूं अचानक 14 अप्रैल को दिल्ली तलब कर उनसे अपने पद से इस्तीफा देने को कहा। आसन्न पराजय की पीड़ा से रूबरू हो रही कांग्रेस कई प्रदेशों में अपना चेहरा-मोहरा बदलने की पुरजोर कवायद कर रही है, पांच राज्यों में चुनाव हारने पर पहले ही इनके प्रदेश अध्यक्षों पर गाज गिर चुकी है। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में बिहार, झारखंड, गुजरात, महाराष्ट्र जैसे राज्यों की कमान भी नए व संभावनापूर्ण नेताओं के हाथों में सौंपी जा सकती है। खैर, झा जी सुबह-सवेरे भागते-भागते 10 जनपथ आ पहुंचे, वहां मौजूद माधवन से उन्होंने अर्ज किया कि ’मैडम से मिल कर अपना इस्तीफा सौंपना है।’ माधवन ने मैडम से बात की और झा साहब को समझाया कि ’वे राहुल जी के यहां चले जाएं और वहीं अपना इस्तीफा सौंप दें।’ तब मदन मोहन झा ने अपने दर्देदिल का इजहार किया और कहा कि ’वे पिछले कई महीनों से राहुल गांधी से मिलने का समय मांग रहे हैं, पर उन्हें समय ही नहीं मिल रहा।’ इसके बाद माधवन ने राहुल के ऑफिस में बात की और बिहार के प्रदेश अध्यक्ष को राहुल गांधी के घर जाने को कहा। झा जी को लगा कि अब वे राहुल से मिल कर अपनी बात रख पाएंगे। पर उन्हें वहां मिले राहुल के सचिव कौशल किशोर विद्यार्थी, जो स्वयं भी बिहार के सुपौल के रहने वाले हैं। कौशल विद्यार्थी को अपना इस्तीफा सौंपते हुए झा जी ने अपने मन की बात जाहिर की और कहा कि ’वे बस एक बार राहुल जी से मिलना चाहते हैं।’ इसके बाद राहुल गांधी कमरे के अंदर आए, झा जी ने उन्हें बताया कि उन्होंने मिस्टर विद्यार्थी को अपना इस्तीफा सौंप दिया है, राहुल ने ’ओके’ कहा और सहमति में अपनी गर्दन हिलाई, फिर वहां से बाहर चले गए। झा जी के पास अब कूचे से बाहर निकलने के सिवा कोई और रास्ता नहीं बचा था।
यूपी में चौबीस की तैयारियां शुरू
यह अभी ताजा-ताजा दो दिन पहले की बात है। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पीएम से मिलने दिल्ली पधार रहे थे, तो उन्हें खास तौर पर हिदायत मिली की वे अपने साथ अपने दोनों उप मुख्यमंत्रियों को भी यहां लेकर आएं। उनसे यह भी कहा गया कि सिर्फ इस बार ही नहीं, आगे से जब भी उन्हें दिल्ली तलब किया जाए वे नियम से अपने दोनों डिप्टी को साथ लेकर आएं। योगी को यह नसीहत भी दी गई है कि मुख्यमंत्री अपनी तमाम जरूरी विभागीय बैठकों में भी अपने उप मुख्यमंत्रियों को साथ रखें और उन्हें अपने फैसलों में शामिल करें, क्योंकि वे बस नाम के या शोभा भर के उप मुख्यमंत्री नहीं हैं। दिल्ली से वापिस लौटने के बाद मुख्यमंत्री योगी ने अपने तमाम मंत्रियों के लिए बेहद तल्ख आचार संहिता सामने रखी है। सूत्र खुलासा करते हैं कि इस आचार संहिता के मुताबिक कोई भी मंत्री महंगे होटलों में नहीं ठहरेगा, तड़क-भड़क वाले कपड़े नहीं पहनेगा, अगर मंत्री लखनऊ से बाहर जाते हैं तो अपने ठहरने के लिए सर्किट हाऊस या गेस्ट हाऊस का इस्तेमाल करेंगे, पैरवी के लिए कभी किसी ऑॅफिसर को फोन नहीं करेंगे, यहां तक कि परिवार के सदस्यों या किसी मित्र की पैरवी भी वर्जित है। उनको मिले सरकारी आवास में भी वे अपने साथ सिर्फ अपनी पत्नी और उन्हीं बाल-बच्चों को साथ रख पाएंगे जो उन पर आश्रित हैं। पहले यह व्यवस्था राष्ट्रपति या राज्यपाल के प्रोटोकॉल में शामिल थी कि अपने शादी-शुदा बच्चों को वे अपने साथ सरकारी आवास में नहीं रख सकते। अब यूपी के मंत्रिगण बिचारे समझ नहीं पा रहे कि वे किस बात के मंत्री हैं, उनसे ज्यादा पॉवर तो एक सामान्य विधायक आजमा सकता है।
‘फिटनेस फ्रीक’ राहुल
पंजाब में कांग्रेस की भावी राजनीति की दशा-दिशा पर बातचीत करने के लिए वहां के एक कांग्रेसी सांसद पिछले काफी समय से राहुल गांधी से मिलने का समय मांग रहे थे। पंजाब में चुनाव समिति द्वारा टिकट बेचे जाने के आरोप लगातार गहरा रहे थे और हार की मंथन बैठक में पहले ही जूतम पैजार हो चुकी थी। सो इस मुलाकात को लेकर भी राहुल के मन में कई तरह की शंकाएं थीं। खैर, उन्होंने उस पंजाब के सांसद को मिलने का समय दे ही दिया, वह भी सुबह के वक्त। सांसद महोदय नियत वक्त पर राहुल के घर पहुंचे तो उन्हें इंतजार में बिठा दिया गया। पहले के 30 मिनट कसमसाहट भरे थे, पर अंदर से कोई बुलावा नहीं आया। फिर एक घंटा बीत गया तो सांसद महोदय के सब्र का बांध टूट गया, उन्होंने राहुल के सचिव से कहा कि ’उन्हें चंडीगढ़ वापिस लौटना है और उनकी फ्लाइट भी है, सो वह मुलाकात जल्दी करवा दें।’ इसके 30-40 मिनट बाद राहुल ने अंदर कमरे में उन्हें बुला लिया, तब राहुल मसाज लेने के बाद मसाज बेड पर पेट के बल लेटे थे उनके ऊपर एक तौलिया पड़ा था। उन्होंने सांसद महोदय से कहा कि ‘एक्सरसाइज’ करते हुए उनका ‘मसल पुल’ हो गया है, इस वजह से उन्हें मसाज लेनी पड़ रही है। उन्होंने सांसद महोदय से कहा कि वे बेहिचक अपनी बात रखें, वे सब सुन रहे हैं। पर उस असहज माहौल में सहज़ होने का यत्न करते सांसद महोदय ने जल्दी-जल्दी राहुल के समक्ष अपनी बात रखी फिर वहां से चलते बने।
नई पार्टी बनाएंगे आजम?
2024 के आम चुनाव में यूपी की प्रमुख विपक्षी पार्टी सपा को धूल चटाने के लिए भाजपा ने अभी से अपनी रणनीतियों को अंजाम तक पहुंचाने की कवायद शुरू कर दी है। भाजपा ने सबसे पहले अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव को साध लिया है ताकि अखिलेश के यादव वोटों में दोफाड़ किया जा सके। इसके बाद सपा के एक प्रमुख मुस्लिम चेहरे आजम खान को साधने की तैयारी है। कहते हैं आजम फिलवक्त तीन दर्जन से ज्यादा मुकदमों की गिरफ्त में फंसे हैं। केंद्रीय जांच एजेंसियां भी उनसे कई मौकों पर गहन पूछताछ कर चुकी हैं। अब धीरे-धीरे आजम को उनके मुकदमों में राहत मिलने लगी है। सूत्र बताते हैं कि इस बात को लेकर उनकी भाजपा से एक गुप्त पैक्ट हो चुका है कि वे मुसलमानों को मद्देनज़र रखते यूपी में एक नई पार्टी का गठन करेंगे, कहते हैं इस नई पार्टी को भीतरखाने से भाजपा हरमुमकिन मदद करेगी। आजम का यूपी के रुहेलखंड इलाके में अच्छा-खासा असर है, अगर आजम की नई पार्टी यहां सक्रिय होती है तो सपा के परंपरागत मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लग सकती है।
बिहार में भाजपा की गुटबाजी उफान पर
अभी हाल में संपन्न हुए एमएलसी चुनाव में बिहार में भाजपा की आपसी गुटबाजी खुल कर सतह पर आ गई, जिसका खामियाजा पार्टी को इन चुनावों में भी उठाना पड़ा। इसी गुटबाजी की वजह से भाजपा के कई उम्मीदवार खिसक कर तीसरे स्थान पर जा पहुंचे। हाईकमान भले ही इस बात के लिए स्वयं अपनी पीठ थपथपा रहा हो कि उसने सुशील मोदी को बिहार से दर-बदर कर पार्टी की अंदरूनी गुटबाजी पर नकेल कस दी हो, पर सच तो यह है कि सुशील मोदी दिल्ली में बैठ कर अपने समर्थकों के लगातार संपर्क में हैं। और यहीं दिल्ली में बैठे-बैठे बिहार की भगवा राजनीति में लुत्ती लगा रहे हैं। इस दफे के एमएलसी चुनाव में भूपेंद्र यादव बनाम सुशील मोदी गुट में साफ लड़ाई दिखी। यहां तक कि भाजपा के मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल जो बेतिया के हैं, वे अपने गढ़ पश्चिमी चंपारण में ही मुंह की खा गए। यहां राजद का उम्मीदवार जीत गया, कांग्रेस दूसरे स्थान पर रही और भाजपा फिसल कर तीसरे नंबर पर जा गिरी। भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राधा मोहन सिंह के गृह जनपद मोतिहारी में भी कुछ-कुछ ऐसा ही नज़ारा देखने को मिला, यहां कांग्रेस समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज करा ली, राजद दूसरे नंबर पर और भाजपा यहां भी तीसरे स्थान पर रही। एक और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मंगल पांडेय के सीवान में भी कमोबेश यही नज़ारा देखने को मिला। यहां भी राजद ने अपना परचम लहरा दिया और मंगल पांडेय का उम्मीदवार यहां भी फिसड्डी साबित हुआ और वह तीसरे स्थान पर रहा। अब भाजपा नेता कह रहे हैं कि ‘भूमाई’ समीकरण यानी भूमिहार, मुसलमान और यादव गठबंधन की वजह से राजद को इन चुनावों में बढ़त मिल गई। इन चुनावों में एक नारा खास तौर पर आकर्शण का वजह रहा ’ग्वार-भूमिहार, भाई-भाई’ यानी यादव और भूमिहार गठबंधन यहां की राजनीति में एक नई ताकत बन कर उभरा है।
झारखंड में सियासी हलचलें तेज
झारखंड में हेमंत सोरेन सरकार गिराने की पूर्व में भी कई कोशिशें हो चुकी है। भाजपा वहां अब भी कांग्रेस को अपना सबसे आसान शिकार मानती है। पूर्व में कांग्रेस के 10 विधायक दिल्ली आकर अमित शाह और ओम माथुर से मिल चुके हैं। झारखंड में कांग्रेस के 16 विधायकों में से तो चार तो मंत्री हैं, उनके टूटने का सवाल पैदा नहीं होता, 3-4 विधायक ऐसे हैं जो विशुद्ध रूप से ईसाई अधिपत्य वाली सीटों से जीते हैं, जिनमें खिजरी, कोलिबीरा और जगन्नाथपुर के विधायक शामिल हैं। इन कांग्रेसी विधायकों का कहना है कि ’वे कांग्रेस से टूट कर अलग पार्टी बनाने को तैयार हैं पर भाजपा में शामिल होने का सवाल ही नहीं उठता क्योंकि उनके निर्वाचन क्षेत्रों में क्रिश्चियन वोटर ही निर्णायक हैं।’ कांग्रेस के ये विधायक भाजपा के सीएम फेस को लेकर भी सशंकित हैं, वे न तो अर्जुन मुंडा को बतौर सीएम चाहते हैं और न ही बाबूलाल मरांडी को। इस वजह से भी यह पेंच फंसा है। वैसे भी झारखंड के कांग्रेस प्रभारी अविनाश पांडे की अपने विधायकों पर कोई पकड़ नहीं, सो कांग्रेस के विधायकों को स्वयं राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन डायरेक्ट हेंडल कर रहे हैं और वक्त-वक्त पर उनसे डील भी, ताकि उनकी सत्ता सलामत रहे।
…और अंत में
योगी अपने 2.0 के इस नए अवतार में बड़े सुलझे राजनेता के तौर पर सामने आ रहे हैं। जहां योगी एक भरोसेमंद अफसर डीएस चैहान को राज्य का नया डीजीपी नियुक्त करना चाहते हैं, वहीं दिल्ली का इशारा पाकर अवनीश अवस्थी लगातार आरपी सिंह का नाम आगे बढ़ा रहे हैं। वहीं राज्य के चीफ सेक्रेटरी दया शंकर मिश्र चाहते हैं कि अहम नियुक्तियों की हर फाइल उनके टेबल से होकर गुजरे, संकेत तो यह भी मिल रहे हैं राज्य के मौजूदा डीजीपी मुकुल गोयल ही अपने पद पर बने रहें, वैसे भी उनका कार्यकाल फरवरी 2024 तक है। वहीं योगी के कई भरोसेमंद और मुंहलगे अधिकारी इन दो महीनों में रिटायर होने वाले हैं। मुमकिन है कि ऐसे में केंद्र यूपी कैडर के कई अधिकारियों को लखनऊ भेजने की तैयारी करे।
Comments are closed.