समग्र समाचार सेवा
लखनऊ, 7सिंतबर। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने कहा कि पवित्र बाइबल बांटना और लोगों को अच्छी शिक्षा देना उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 के तहत धर्म परिवर्तन के लिए प्रलोभन देने की श्रेणी में नहीं आता है. अदालत ने यह भी कहा कि इस अधिनियम के तहत पीड़ित या उसके परिवार के सदस्य ही प्राथमिकी दर्ज करा सकते हैं और कोई अजनबी इस अधिनियम के तहत कथित अपराध के लिए प्राथमिकी नहीं दर्ज करा सकता. इसके साथ ही अदालत ने अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों को ईसाई बनाने के लिए प्रलोभन देने के मामले में जेल में बंद दो आरोपियों को जमानत दे दी.
यह आदेश न्यायमूर्ति शमीम अहमद की एकल पीठ ने दो आरोपियों- जोस पापाचेन और शीजा की ओर से दाखिल अपील मंजूर करते हुए पारित किया. दरअसल भारतीय जनता पार्टी के एक पदाधिकारी ने आम्बेडकर नगर जिले के थाना जलालपुर में 24 जनवरी 2023 को एक प्राथमिकी दर्ज कराकर अपीलकर्ताओं पर आरोप लगाया था कि वे थानाक्षेत्र के एक गांव में अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों के तरह तरह के प्रलोभन देकर उनका धर्म परिवर्तन करा रहे थे.
पुलिस ने दोनों आरोपियों को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया था. उनकी जमानत निचली अदालत ने खारिज कर दी थी. इसके बाद उनकी ओर से उच्च न्यायालय में अपील दाखिल करके जमानत का अनुरोध किया गया था. अपीलकर्ताओं की ओर से दलील दी गई कि वे निर्दोष हैं और उन्हें राजनीतिक रंजिशवश फंसाया गया है. उनकी ओर से कहा गया कि बाइबल बांटना, लोगों को अच्छी अच्छी बातें बताना और उनके लिए भंडारा आयोजित करना अधिनियम के तहत प्रलोभन देना नहीं कहा जा सकता.
अपीलकर्ताओं की ओर से दलील दी गई कि वस्तुतः लोगों को आधारभूत सुविधा प्रदान करना राज्य की जिम्मेदारी है, जिसमें वह विफल हुआ है. अपील मंजूर करते हुए न्यायमूर्ति अहमद ने कहा कि अपीलकर्ताओं की इस दलील में बल है कि बाइबल बांटना, लोगों को शिक्षा देना, बच्चों को शिक्षा के लिए प्रेरित करना, लोगों के लिए गांव में भंडारों का आयेाजन करना, उन्हें इसकी शिक्षा देना कि वे आपस में झगड़ा न करें, प्रलोभन की श्रेणी में नहीं आता है.
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