प्रस्तुति —कुमार राकेश ।
आज तक किसी एक भूमि के टुकड़े का सबसे अधिक दाम चुकाया गया है वो हमारे भारत में ही पंजाब में स्थित सरहिन्द में, और, विश्व की इस सबसे महंगी भूमि को ख़रीदने वाले महान व्यक्ति का नाम था दीवान टोडरमल जी जैन…
गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे-छोटे साहिबज़ादों फ़तह सिंह और ज़ोरावर सिंह की शहादत की दास्तान शायद आप सबने कभी ना कभी कहीं ना कहीं से सुनी होगी…..
यहीं सरहिन्द के फ़तहगढ़ साहिब में मुग़लों के तत्कालीन फ़ौजदार वज़ीर खान ने दोनो साहिबज़ादों को जीवित ही दीवार में चिनवा दिया था.
दीवान टोडर मल जी जैन, जो कि इस क्षेत्र के एक धनी व्यक्ति थे और गुरु गोविंद सिंह जी एवं उनके परिवार के लिए अपना सब कुछ क़ुर्बान करने को तैयार थे, उन्होंने वज़ीर खान से साहिबज़ादों के पार्थिव शरीर की माँग की, और वह भूमि, जहाँ वह शहीद हुए थे, वहीं पर उनकी अंत्येष्टि करने की इच्छा प्रकट की।
वज़ीर खान ने धृष्टता दिखाते हुए भूमि देने के लिए एक अटपटी और अनुचित माँग रखी।
वज़ीर खान ने माँग रखी कि इस भूमि पर सोने की मोहरें बिछाने पर जितनी मोहरें आएँगी वही इस भूमि का दाम होगा…….
दीवान टोडर मल जी जैन ने अपने सब भंडार ख़ाली करके जब मोहरें भूमि पर बिछानी शुरू कीं तो वज़ीर खान ने धृष्टता की पराकाष्ठा पार करते हुए कहा कि मोहरें बिछा कर नहीं बल्कि खड़ी करके रखी जाएँगी… ख़ैर…..दीवान टोडर मल जी जैन ने अपना सब कुछ बेच-बाच कर और मोहरें इकट्ठी कीं और 78000 सोने की मोहरें देकर चार गज़ भूमि को ख़रीदा ताकि गुरु जी के साहिबज़ादों का अंतिम संस्कार वहाँ किया जा सके……
विश्व के इतिहास में ना तो ऐसे त्याग की कहीं कोई और मिसाल मिलती है ना ही कहीं पर किसी भूमि के टुकड़े का इतना भारी मूल्य कहीं और आज तक चुकाया गया.
जब बाद में गुरु गोविन्द सिंह जी को इस बारे में पता चला तो उन्होंने दीवान टोडर मल जी जैन से कृतज्ञता प्रकट की और उनसे कहा कि वे उनके त्याग से बहुत प्रभावित हैं, और उनसे इस त्याग के बदले में कुछ माँगने को कहा।
ज़रा सोचिए, दीवान टोडर मल जी जैन ने क्या माँगा होगा गुरु जी से ????
दीवान जी ने गुरु जी से जो माँगा उसकी कल्पना करना भी असम्भव है !
दीवान टोडर मल जी जैन ने गुरु जी से कहा कि यदि कुछ देना ही चाहते हैं तो कुछ ऐसा वर दीजिए की मेरे घर पर कोई पुत्र ना जन्म ले और मेरी वंशावली यहीं मेरे साथ ही समाप्त हो जाए।l
इस अप्रत्याशित माँग पर गुरु जी सहित सब लोग हक्के-बक्के रह गए…..
गुरु जी ने दीवान जी से इस अद्भुत माँग का कारण पूछा तो दीवान जी का उत्तर ऐसा था जो रोंगटे खड़े कर दे।
दीवान टोडर मल जैन ने उत्तर दिया कि गुरु जी, यह जो भूमि इतना महंगा दाम देकर ख़रीदी गयी और आपके चरणों में न्योछावर की गयी, मैं नहीं चाहता कि कल को मेरी आने वाली नस्लों में से कोई कहे कि यह भूमि मेरे पुरखों ने ख़रीदी थी।*
यह थी निस्वार्थ त्याग और भक्ति की आज तक की सबसे बड़ी मिसाल……. ।
आज किसी धार्मिक स्थल पर चार ईंटे लगवाने पर भी लोग अपने नाम की पट्टी पहले लगवाते हैं…..
“एक पंखा तक लगवाने पर उसके परों पर अपने नाम छपवाते हैं”।
हमारे पुरखे जो बलिदान देकर गए हैं वह अभूतपूर्व है और इन्ही बलिदानों के कारण ही हम लोगों का अस्तित्व अभी तक है……
त्याग और बलिदान की इस गाथा का गौरवशाली इतिहास…….!!!!!!!
प्रस्तुति:- कुमार राकेश
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