समग्र समाचार सेवा
बेंगलुरु, 2 जुलाई: कर्नाटक में कांग्रेस सरकार फिर से अपनी ही अंदरूनी खींचतान में उलझ गई है। मुख्यमंत्री बदलने की मांग ने पार्टी हाईकमान की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। डीके शिवकुमार खेमे के एक विधायक ने दावा किया कि उनके साथ सौ विधायक हैं और यही वक्त है जब सिद्धारमैया को हटाकर नेतृत्व बदला जाए। आलम यह है कि पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने यह जिम्मेदारी सीधे हाईकमान के हवाले कर दी है और दिल्ली से रणदीप सुरजेवाला को समेटने भेजा गया है, लेकिन नाराजगी थमती नहीं दिख रही।
जम्मू-कश्मीर में कर्रा पर कोप
कांग्रेस की बेचैनी सिर्फ कर्नाटक तक सीमित नहीं है। जम्मू-कश्मीर में प्रदेश अध्यक्ष तारिक हमीद कर्रा को लेकर भी पार्टी के भीतर बगावत के सुर तेज हैं। कर्रा को राहुल गांधी का करीबी माना जाता है, लेकिन कई पुराने नेता उनसे नाराज हैं। हालात ऐसे बन गए कि कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव सैयद नासिर हुसैन के श्रीनगर दौरे पर कर्रा ने भोज रखा, लेकिन विरोधी खेमा वहां पहुंचा ही नहीं। नाराज नेताओं में पूर्व डिप्टी सीएम तारा चंद, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष विकार रसूल वानी और सीनियर नेता गुलाम नबी मोंगा भी शामिल हैं, जो दिल्ली में राहुल गांधी या खरगे से मिलने की कोशिश में जुटे हैं।
घाटी और जम्मू में कांग्रेस की खस्ता हालत
जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस का हाल लोकसभा चुनाव के बाद से ही डांवाडोल है। पारंपरिक तौर पर मजबूत रहे जम्मू में पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई, जबकि कश्मीर घाटी में भी सिर्फ कुछ सीटों से ही संतोष करना पड़ा। नाराज नेता कर्रा पर इल्जाम लगा रहे हैं कि वह न तो सीनियर नेताओं को तवज्जो देते हैं और न ही कांग्रेस की जड़ों को समझते हैं। विरोधियों का कहना है कि कर्रा पीडीपी से लाकर बैठा दिए गए और अब प्रदेश संगठन में फूट पड़ती जा रही है।
हाईकमान के पाले में गेंद
मल्लिकार्जुन खरगे को दोनों राज्यों में असंतुष्ट खेमा लगातार घेर रहा है। पार्टी अब नेतृत्व बदलने या नाराज नेताओं को मनाने की कोशिश में लगी है, लेकिन सुलह के संकेत फिलहाल न कर्नाटक से दिख रहे हैं, न कश्मीर से। अब सबकी नजर राहुल गांधी पर है कि क्या वह इस नई चुनौती को सुलझा पाएंगे।
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