समग्र समाचार सेवा
रूस, 30 जुलाई: रूस के दूरपूर्वी तटीय क्षेत्र में बुधवार सुबह एक शक्तिशाली भूकंप आया जिसकी तीव्रता 8.8 दर्ज की गई है। यह भूकंप इतना विनाशकारी था कि उत्तरी प्रशांत क्षेत्र में सुनामी की चेतावनी जारी करनी पड़ी। अमेरिका, जापान और रूस की तटीय एजेंसियों ने तुरंत अलर्ट जारी किया और कुछ क्षेत्रों में ऊँची लहरें भी देखी जा चुकी हैं।
यूएस जियोलॉजिकल सर्वे के अनुसार यह भूकंप समुद्र के नीचे आया, जिससे सुनामी उत्पन्न हुई। जापान और अमेरिका में सुनामी के खतरे को देखते हुए प्रदेशों में सतर्कता बरती जा रही है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कैलिफोर्निया और हवाई के तटीय इलाकों के नागरिकों से सतर्क रहने का आग्रह किया है, जहाँ 12‑फीट ऊँची समुद्री लहरों के उठने की आशंका जताई गई है।
भूतपूर्व सुनामी की वे दर्दनाक यादें
यह खौफनाक घटना हमें उन भयंकर सुनामियों की याद दिलाती है, जिन्होंने दुनिया को हिला कर रख दिया।
2004 की हिंद महासागर सुनामी, जिसने भारत और श्रीलंका को तबाह कर दिया था, सबसे भयानक आपदाओं में से एक रही। उस आपदा में लगभग ढाई लाख लोग मारे गए थे, जिसमें तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और पोर्त ब्लेयर क्षेत्र गहरे प्रभावित हुए।
1755 की लिस्बन सुनामी ने पुर्तगाल और दक्षिणी स्पेन में विशाल विनाश फैला दिया था, जिसमें अनुमानतः 60,000 लोग मारे गए थे और समुद्री लहरों की ऊँचाई 30 मीटर तक थी।
1883 की क्राकाटाऊ ज्वालामुखी विस्फोट ने इंडोनेशिया में लगभग 37 मीटर ऊँची लहरें उतार दीं, जिससे 40,000 से अधिक लोगों की जान चली गई।
1498 की जापान की सुरुगु-सुनामी ने लगभग 31,000 लोगों की जान ले ली थी, जब 8.3 तीव्रता का भूकंप तटीय स्थानों के नीचे आया।
1964 का अलास्का भूकंप, जिसकी तीव्रता 9.2 थी, लगभग चार मिनट तक चला और सुनामी के रूप में तबाही फैला दी। इस घटना में करीब 130 लोग मारे गए थे।
इस वक्त की स्थिति और अगली कार्रवाई
रूस का यह भूकंप और सुनामी की चेतावनी विश्व जलवायु सुरक्षा पर नए सवाल खड़े कर रही है। खस्ता इन्फ्रास्ट्रक्चर वाले तटीय क्षेत्र, जहाँ समय रहते बचाव कार्य नहीं होता, वह और ज़्यादा संवेदनशील बन जाता है। तमाम देशों को अब सहयोग से जोखिम क्षेत्रों में निगरानी बढ़ानी चाहिए, और समय पर सतर्कता संदेश फैलाकर जनहित संचार मजबूत करना चाहिए।
यह भूकंप और सुनामी केवल एक प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि एक चेतावनी भी है कि जलवायु परिवर्तन और भू‑भौतिकीय खतरों की अवधि घट रही है। अब वैज्ञानिक सटीक चेतावनी प्रणालियाँ, तैयार‑रहने वाले तंत्र, और स्थानीय जागरूकता ही किसी भी छोटे‑से‑छोटे तटीय समुदाय को जीवनदायिनी संरचना में बदल सकती हैं।
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