समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 03 अगस्त समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 03 अगस्त: भारत के लोकतंत्र का अहम स्तंभ—निर्वाचन आयोग (ECI)—वर्तमान में कांग्रेस सहित विपक्षी दलों की तीखी आलोचना के केंद्र में है। इस बार कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आयोग को सार्वजनिक मंच पर “मर चुकी संस्था” कहते हुए न केवल उसकी निष्पक्षता पर सवाल उठाए, बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था की विश्वसनीयता को भी चुनौती दी।
मानव संसाधन मंत्रालय के विज्ञान भवन में 2 अगस्त 2025 को दिए गए भाषण में राहुल गांधी ने कहा:
“अगर 10‑15 सीटों पर धांधली न हुई होती, तो नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री भी नहीं बनते।”
उनके इस खुलासे ने राष्ट्रीय राजनीति में मतदान प्रणाली, डेटा अपारदर्शिता और संस्थागत कब्ज़े का नया विमर्श शुरू कर दिया है।
‘एटम बम’ अलर्ट: विपक्षी हथियार या लोकतांत्रिक चेतावनी?
राहुल ने अपने अगले संदेश में कहा: “हमारे पास एटम बम है। जब यह फटेगा, चुनाव आयोग बच नहीं पाएगा।” इस बयान की प्रतिक्रिया में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कटाक्ष किया: “अगर आपके पास परमाणु बम है, तो उसे फोड़ दीजिए—लेकिन सुरक्षित रहें।”
यह सार्वजनिक संवाद न केवल नेताओं के बीच की जंग दर्शाता है, बल्कि एक रणनीतिक संघर्ष है—जहां राजनीति के साथ लोकतंत्र की जवाबदेही और संस्थागत प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है।
चुनाव आयोग पर राहुल गांधी के मुख्य आरोप:
- 2014 की ‘अप्राकृतिक’ जीत: उन्होंने दावा किया कि महाराष्ट्र की लोकसभा में सुधार से 1 करोड़ नए मतदाता जुड़े, जिन्होंने भाजपा को समर्थन दिया—जिससे मतदाता सूची में मैनिपुलेशन की संभावना बनती है।
- डॉक्यूमेंट की अपारदर्शिता: चुनाव आयोग द्वारा दस्तावेज कॉपी या स्कैन न करने की नीति पर सवाल उठाया गया। स्कैन-नहीं को सार्वजनिक विश्वास की हत्या बताया गया।
- संस्था कब्ज़ा: राहुल ने ECI को ‘हाईजैक’ मशीन बताया और कहा कि आयोग अब निर्णय लेने में निष्क्रिय बन चुका है।
- सबूतों की धमकी: उन्होंने घोषणा की कि पास फर्जी वोटर, आयु में छेड़छाड़ और युवाओं को मतदाता सूची से हटाने पर दस्तावेजी सबूत हैं।
चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया: आरोप निराधार, प्रतिबद्धता अविचल
निर्वाचन आयोग ने प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से स्पष्ट किया कि वह निष्पक्ष और पारदर्शी ढंग से चुनाव प्रक्रिया में लगा हुआ है।
यहां तक कि राहुल गांधी को 12 जून 2025 को भेजा गया आधिकारिक पत्र भी जारी किया गया ताकि वे आरोपों के प्रमाण दे सकें—लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। यह खामोशी विपक्ष को और ज़ोरदार बना रही है।
बिहार SIR विवाद: लोकतांत्रिक विश्वास की राख
बिहार में जारी विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) में 65 लाख मतदाता सूची से गायब हो जाने का मामला चर्चा में है। कांग्रेस और विपक्ष इसे ‘लोकतंत्र की हत्या’ बता रहे हैं। राहुल के आरोप इस पृष्ठभूमि में और गंभीर हो जाते हैं—यह सवाल उठता है कि क्या ऐसी प्रणाली में टीकाकरण या सुधार संभव है?
इतिहास से सीख: चुनाव आयोग और लोकतंत्र की लड़ाई
1975 के आपातकाल में SL Shakdhar आयोग पर असामाजिक फैसलों का आरोप लगा था।
2002 गुजरात चुनाव में Jayaprakash Narayan आयोग ने चुनाव को स्थगित कर दिया था—जिसे नरेंद्र मोदी सरकार की आलोचना करनी पड़ी।
2009–2024 तक EVM और VVPAT विवाद, वोटर सूची से नाम हटना, आदि के नए अध्याय जुड़ते रहे। राहुल गांधी की आलोचना इन मापदंडों का नवीनतम संस्करण है।
लोकतंत्र सुरक्षा नहीं, बहस चाहता है
राहुल गांधी की तीखी टिप्पणियाँ अब एक व्यक्तिगत राजनीति से आगे बढ़कर स्थापित व्यवस्था पर सवाल उठाने का मंच बन चुकी हैं।
यह असंगति तभी खत्म होगी जब निराधार आरोप नहीं बल्कि दस्तावेजी निर्णय और न्यायिक जांच के माध्यम से लोकतंत्र मजबूत हो।
क्योंकि लोकतंत्र सिर्फ अधिकार नहीं, संस्थाओं की साख और स्वतंत्र जांच की जंग भी है। और इस चुनावी मौसम में भारत उसे भली भांति समझ सकता है।
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