भारत में प्रत्येक दिवस नारी दिवस

-पूनम शर्मा

भारत की समृद्ध और विविध सांस्कृतिक परंपराओं में नारी का सम्मान किसी एक दिन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह प्रत्येक दिन का एक अभिन्न अंग है। जिस तरह आधुनिक समाज में “महिला दिवस” वर्ष में एक बार मनाया जाता है, उसी तरह सनातन हिंदू सभ्यता में नारी को हर दिन पूजनीय माना जाता है। धार्मिक, पारिवारिक, सामाजिक और दार्शनिक—हर क्षेत्र में नारी को सम्मान प्राप्त है।

भारतीय संस्कृति में नारी सम्माननीय ही नहीं, वंदनीय भी है। वह माता, पत्नी, बहन और पुत्री के रूप में परिवार की धुरी होती है। घर की देहरी पर अल्पना (रंगोली) बनाने से लेकर देवी-देवताओं के लिए फूलों की माला गूंथने, परिवार में प्रेम और सामंजस्य बनाए रखने तथा महत्वपूर्ण निर्णयों में योगदान देने तक—नारी की भूमिका हर जगह अहम होती है। सनातन धर्म महिलाओं को सीमित नहीं करता, बल्कि उन्हें देवी के नौ रूपों  के रूप में पूजनीय बनाता है। यही विशेषता हिंदू सभ्यता को अन्य संस्कृतियों से अलग बनाती है, जहां नारी का सम्मान प्रतिदिन किया जाता है।

हिंदू धर्म, जो विश्व की प्राचीनतम जीवित परंपरा है, उसमें नारी शक्ति को सृष्टि की मूलभूत ऊर्जा माना गया है। यह शक्ति विभिन्न देवी स्वरूपों में विद्यमान है, जैसे—दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, पार्वती और काली  प्रत्येक देवी नारी के विशिष्ट गुणों को दर्शाती हैं—

दुर्गा शक्ति और रक्षा का प्रतीक हैं,

लक्ष्मी का प्रतीक समृद्धि और वैभव है,

सरस्वती विद्या और ज्ञान की देवी हैं,

पार्वती मातृत्व और प्रेम का प्रतीक है,

काली न्याय और परिवर्तन का रूप हैं।

दौरान नवरात्रि, देवी के नौ अवतारों—शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, और सिद्धिदात्री—की पूजा की जाती है। यह नारी के अंदर असीम शक्ति, बुद्धि और परिवर्तन की क्षमता होने का प्रतीक है।

भारत के विभिन्न मंदिरों में भी नारी शक्ति की पूजा की जाती है। मीनाक्षी (मदुरै), कामाख्या (असम), वैष्णो देवी (जम्मू) और महालक्ष्मी (कोल्हापुर) जैसे मंदिर नारी के दिव्य स्वरूप का प्रतिनिधित्व करते हैं।

नारी को हिंदू सभ्यता में सिर्फ गृहिणी, लेकिन पूरे परिवार के आधार स्तंभ के रूप में भी देखा जाता है। उसे गृहलक्ष्मी कहा जाता है, जो न केवल भौतिक समृद्धि का लाभ देती है बल्कि मानसिक और भावनात्मक स्थिरता भी देती है।

नारी को परिवार की पहली पूज्या माना जाता है। घर में सबसे पहले वह उठती है, दीप जलाती है, ईश्वर की आराधना करती है और परिवार के मंगल की प्रार्थना करती है। एक पुत्री को लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है, पत्नी को अर्धांगिनी  और माता को सर्वोच्च सम्मान दिया जाता है।

इतिहास गवाह है कि भारतीय महिलाएँ सदा परिवार और समाज के समृद्धि में श्रेष्ठ भूमिकर निभाई हैं। वैदिक काल में गार्गी और मैत्रेयी जैसी विदुषियों को सम्मान प्राप्त था। उनके विचार और ज्ञान आज भी प्रेरणा देते हैं।

भारत में घर के द्वार पर अल्पना (रंगोली) बनाना एक परंपरा है, जिसे अधिकतर महिलाएं ही करती हैं। यह सिर्फ़ सजावट नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक और कलात्मक अभिव्यक्ति होती है, जो घर में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि को आमंत्रित करती है।

 देवी-देवताओं को चढ़ाने के लिए फूलों की माला गूंथना महिलाओं का काम होता है। यह भक्ति, पवित्रता और सौंदर्य का प्रतीक है। हिंदू धर्म में तुलसी के पत्ते भगवान विष्णु को अर्पित किए जाते हैं, तो बेलपत्र भगवान शिव को। इन परंपराओं में महिलाओं का योगदान बहुत महत्वपूर्ण होता है।

वैदिक काल में महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार प्राप्त थे। वे शिक्षा प्राप्त करती थीं, वेदों का अध्ययन करती थीं, और धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेती थीं। लोपामुद्रा, अपाला और घोषा  जैसी विदुषियों ने ऋग्वेद के मंत्रों की रचना की थी।

रामायण और महाभारत में भी महिलाओं की शक्ति का प्रदर्शन किया गया है। सीता त्याग और धैर्य का प्रतीक हैं, द्रौपदी संघर्ष और साहस की मिसाल हैं, और सावित्री अपने अजेय संकल्प के लिए प्रसिद्ध हैं।

मध्यकाल में भी भारत में शक्तिशाली महिलाओं ने अपना योगदान दिया है। रानी लक्ष्मीबाई, अहिल्याबाई होल्कर और रानी रुद्रमा देवी ने अपने पराक्रम के बल पर सिद्ध किया कि शक्ति और नेतृत्व पुरुषों के लिए ही नहीं हैं।

आज का भारत भी सनातन मूल्यों से प्रेरित होकर महिलाओं का सम्मान करता है। महिलाएं शिक्षा, राजनीति, विज्ञान, कला और विभिन्न क्षेत्रों में सफलता प्राप्त कर रही हैं। भारतीय नारी अपनी संस्कृति और परंपराओं को निभाते हुए आधुनिक समाज में भी अग्रणी बनी हुई हैं।

हालांकि, आधुनिकता के नाम पर पश्चिमी विचारधारा को अपनाने की आवश्यकता नहीं है। सच्चा सशक्तिकरण तभी होगा जब नारी को उसकी जन्मजात दिव्यता और शक्ति का अहसास कराया जाए, न कि उसे किसी कृत्रिम बराबरी की होड़ में धकेला जाए।

हिंदू सभ्यता में नारी सशक्तिकरण की नींव सम्मान और मान्यता पर है, न कि संघर्ष और प्रतिस्पर्धा पर। यहां नारी का सम्मान स्वाभाविक रूप से किया जाता है—मां के चरण छूकर आशीर्वाद लेना, पत्नी को अर्धांगिनी मानना, और पुत्री को लक्ष्मी का स्वरूप समझना। इसी संस्कृति के प्रमाण हैं:वहीं पर पश्चिमी संस्कृति में महिलाओं को सम्मानित करने के लिए एक दिन ही निर्धारित है, वहीं हिंदू धर्म में हर दिन नारी सम्मान का पर्व।

अल्पना बनाने से लेकर देवी-देवताओं को फूलों की माला चढ़ाने तक, परिवार को संभालने से लेकर समाज में प्रेरणा बनने तक—नारी की भूमिका प्रत्येक क्षेत्र में महत्वपूर्ण है। नवरात्रि के नौ दिनों की पूजा  हमें यह याद दिलाती है कि नारी शक्तिशाली, बुद्धिमान, दयालु और परिवर्तनशील है।

भारत में हर दिन नारी का उत्सव है —क्योंकि नारी सृजन का आधार है, प्रेम की मूर्ति है, शक्ति का प्रतीक है, और शक्ति का ही दूसरा नाम नारी है l

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