हर इंसान एक मुखौटा, एक खामोश चेहरा!

संजय स्वतंत्र
संजय स्वतंत्र

*संजय स्वतंत्र

मनुष्यों में अब पहले जैसी सादगी, सच्चाई और ईमानदारी नहीं दिखती। नैतिक मूल्य तो दूर की बात है। हम सब ने इन गुणों को मुखौटों में बदल लिया है। जब जहां जरूरत पड़ी, उसे पहन लेते हैं। अब इसे आप समाज, राजनीति और सांस्कृतिक गतिविधियों के बीच मुखौटे लगाए मनुष्यों को देख सकते हैं। जिससे भी मिलते हैं, वास्तव में वह नहीं है, जिससे आप मिल रहे होते हैं। तो कौन है वह? वह कोई और नहीं एक मुखौटा है। मुखौटे के पीछे दरअसल कोई और है।

आज हर चेहरे के पीछे कोई न कोई संघर्ष या वेदना है। मगर कोई मुस्कुराते हुए मिलता है, तो आप भांप भी नहीं पाते कि वह एक जिंदा लाश है और वह अपनी देह ढोकर आपसे मिलने आया है। पिछले दिनों ललित कला अकादमी जाना हुआ। वहां मित्र संजय भोला धीर के बनाए मुखौटों की प्रदर्शनी लगी थी। वहांं सबसे पहले नीले रंग के चीनी ड्रैगन ने मेरा स्वागत किया। वहीं संजय भोला के बनाए मुखौटों को देख कर लग रहा था कि इनमें हमारी संस्कृति ही नहीं मनुष्यों के भी कई भाव छिपे हुए हैं। कई मुखौटों के बीच ढाल शीर्षक से बने मास्क को देख कर प्रसन्नता हुई। यह वही मुखौटा था जिसे हम सब पहने घूमते रहते हैं। यानी जीवन में कितने भी दुख हों। कोई कितना वार करे, आप मुस्कुराते रहें। इस मुखौटे का यही संदेश था।

आज जब मनुष्यों में देवत्व का लोप हो गया है, ऐसे में संजय भोला का देवगुण शीर्षक से बनाया मुखौटा याद दिला गया कि हम एक-एक कर किस तरह अपने गुणों को खो रहे हैं। देवगुण शीर्षक से बने मुखौटे को मैं देखता रह गया। इसके ग्यारह मुख थे। पूछने पर संजय भोला जी ने कहा कि इस मुखौटे का हर मुख एक गुण है। अगर ये ग्यारह गुण किसी मनुष्य में आ जाएं तो उसमें देवत्व आ जाता है। आप जानते हैं, वे गुण हैं- प्रेम, दया, करुणा, क्षमा, सहनशीलता, विनय, धैर्य, सहानुभूति, मानवता, विवेकशीलता और परोपकार।

संजय भोला के बनाए हर मुखौटे में एक गहरा भाव बोध दिखा। सभी सार्थक संदेश दे रहे थे। कई तीरों से बिंधे एकलव्य नाम से बनाए मुखौटे के बारे में उन्होंने बताया कि जब किसी इंसान से कोई प्रिय चीज छीन ली जाती है तो वह एक तरह से मर ही जाता है। धनुर्धर एकलव्य की तीरंदाजी किसी से कम नहीं थी। मगर जब गुरु ने उससे अंगूठा मांग लिया, तो कुछ बचा नहीं। वाणों ने एक तरह से उसकी जान ही ले ली।

इस मुखौटा प्रदर्शनी में धनराति नाम के जिस मुखौटे ने ध्यान खींचा, उसका भाव बहुत गहरा था। संजय भोला मुझे बता रहे थे कि हम सब भौतिक सुखों के पीछे भाग रहे हैं। मगर एक समय के बाद मनुष्य अकेला हो जाता है। वह अपनी सुविधाओं के बीच कैदी बन जाता है। वह सुविधा भोगने की मानसिकता से कभी बाहर निकल नहीं पाता। इसी तरह अहम् ब्रह्मास्मि शीर्षक से बनाए मुखौटे में उन्होंने संदेश दिया कि हर मनुष्य में एक ब्रह्मांड है। या यों कहें कि वह ब्रह्मांड का अंश है, वह कभी जान नहीं पाता है। नीरवता शीर्षक से बना किसी आदिवासी समुदाय का मुखौटा ऐसा महसूस करा रहा था कि कोई गहरी चोट खाया इंसान एक खामोश चेहरे में बदल गया है। इन दिनों हम में से कई के चेहरे ऐसे ही हैं।

कुछ मुखौटों में सांस्कृतिक मूल्यों की झलक थी। स्वक्षा शीर्षक से बना मुखौटा पुरुलिया में पारंपरिक नृत्य के दौरान पहना जाता है। यह अपने सांस्कृतिक मूल्य से अलग ही प्रभामंडल बनाता है, जब उसमें आप दुर्गा का चेहरा चेहरा देखते हैं। त्रिदेव शीर्षक से बने मुखौटे को इस तरह बनाया गया था मानो सामने स्वयं त्रिदेव विराजमान हों। बेहद मौलिक और रचनात्मक प्रयास था संजय भोला धीर का।

अंत में रामदूत शीर्षक से बने मुखौटे में हनुमान जी का विनम्र और मुस्कुराता चेहरा मन में रच-बस गया। ललित कला अकादमी से लौटते समय में राजधानी की कई कालोनियों में घरों के ऊपर रामध्वज लहराते देख रहा था तो इधर मन के किसी कोने में संजय जी के बनाए ‘रामदूत हनुमान’ मुस्कुरा रहे थे। सहसा मुझे यह सुपरिचित पंक्ति याद आई-

राम दूत अतुलित बल धामा, अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।

*संजय स्वतंत्र,दिल्ली स्थित वरिष्ठ पत्रकार व लेखक हैं .

 

Comments are closed.