आरक्षण से 75 साल में नहीं बल्कि 7500 साल में भी सबको समान अवसर नहीं मिलेगा

बंगाल का युवा बंगाली में पढ़े और गुजरात का युवा गुजराती में लेकिन सिलेबस समान होना चाहिए

अश्विनी उपाध्याय।
वर्तमान समय में स्कूलों की पांच कैटेगरी है और किताब भी पांच प्रकार की है। आर्थिक रूप से कमजोर और गरीबी रेखा से नीचे के बच्चों की किताब और सिलेबस अलग है, निम्न आय वर्ग के बच्चों की किताब और सिलेबस अलग है, मध्यम आय वर्ग के बच्चों की किताब और सिलेबस अलग है, उच्च आय वर्ग के बच्चों की किताब और सिलेबस अलग है तथा संभ्रांत वर्ग के बच्चों की किताब और सिलेबस बिलकुल ही अलग है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली संविधान की मूल भावना के बिलकुल विपरीत है. यह समता, समानता और समरसता मूलक समाज के निर्माण की बजाय जातिवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद, संप्रदायवाद, वर्गवाद, कट्टरवाद और मजहबी उन्माद को बढ़ाती है लेकिन किताब माफियाओं, कोचिंग माफियाओं और स्कूल माफियाओं के दबाव के कारण मैकाले द्वारा बनाई गई शिक्षा प्रणाली आज भी लागू है

यदि बोर्ड के हिसाब से देखें तो CBSE की किताब और सिलेबस अलग, ICSE की किताब और सिलेबस अलग, बिहार बोर्ड की किताबें और सिलेबस अलग, बंगाल बोर्ड की किताबें और सिलेबस अलग, असम बोर्ड की किताबें और सिलेबस अलग, कर्नाटक बोर्ड की किताबें और सिलेबस अलग, तमिलनाडु बोर्ड की किताबें और सिलेबस अलग, तथा गुजरात बोर्ड की किताबें और सिलेबस सबसे अलग है, जबकि भारतीय प्रशासनिक सेवा, इंजीनियरिंग, मेडिकल, रक्षा सेवा, बैंक और अध्यापक पात्रता परीक्षा सहित अधिकांश प्रतियोगी परीक्षाएं राष्ट्रीय स्तर पर पर होती हैं और पेपर भी एक होता है परिणाम स्वरूप इन प्रतियोगी परीक्षाओं में देश के सभी छात्र-छात्राओं को समान अवसर नहीं मिलता है।

भारतीय संविधान के आर्टिकल 14 के अनुसार देश के सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त है, आर्टिकल 15 के अनुसार जाति धर्म भाषा क्षेत्र रंग-रूप लिंग और जन्म स्थान के आधार पर किसी भी भारतीय नागरिक से भेदभाव नहीं किया जा सकता है तथा आर्टिकल 16 के अनुसार नौकरियों में देश के सभी युवाओं को समान अवसर मिलना चाहिए। आर्टिकल 17 शारीरिक और मानसिक छूआछूत को प्रतिबंधित करता है और आर्टिकल 19 प्रत्येक नागरिक को देश में कहीं भी भ्रमण करने, बसने और रोजगार-व्यापार करने का अधिकार प्रदान करता है। आर्टिकल 21A के अनुसार शिक्षा 14 वर्ष तक के सभी बच्चों का मौलिक अधिकार है। आर्टिकल 38(2) के अनुसार केंद्र और राज्य सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह समस्त प्रकार की असमानता को समाप्त करने के लिए आवश्यक कदम उठाए। आर्टिकल 39 के अनुसार बच्चों के समग्र, समावेशी और संपूर्ण विकास के लिए कदम उठाना केंद्र और राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। आर्टिकल 46 के अनुसार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और गरीब बच्चों के शैक्षिक और आर्थिक विकास के लिए विशेष कदम उठाना केंद्र और राज्य सरकार का कर्तव्य है। आर्टिकल 51(A) के अनुसार देश के सभी नागरिकों में भेदभाव की भावना समाप्त करना, आपसी भाईचारा मजबूत करना तथा वैज्ञानिक और तार्किक सोच विकसित करना केंद्र और राज्य सरकार का नैतिक कर्तव्य है लेकिन वर्तमान शिक्षा प्रणाली संविधान के उपरोक्त उद्देश्यों को प्राप्त करने में पूर्णतः असफल रही है।

इस समय देश में 5+3+2+2+3 शिक्षा व्यवस्था लागू है अर्थात 5 साल प्राइमरी, 3 साल जूनियर हाईस्कूल, 2 साल सेकंडरी, 2 साल हायर सेकंडरी और 3 साल ग्रेजुएशन। यह व्यवस्था वर्तमान परिप्रेक्ष में बिलकुल अप्रभावी और अवांछित है इसलिए इसके स्थान पर 5+5+5 शिक्षा व्यवस्था लागू करना चाहिए अर्थात 5 साल प्राइमरी, 5 साल सेकंडरी और 5 साल ग्रेजुएशन। पढ़ने-पढ़ाने का माध्यम भले ही अलग हो लेकिन 10वीं तक सिलेबस पूरे देश में एक समान होना चाहिए और सभी बच्चों के लिए 10वीं तक शिक्षा अनिवार्य होना चाहिए। संविधान के आर्टिकल 345 और 351 की भावना के अनुसार 10वीं तक तीन भाषाओं का अध्ययन सभी बच्चों के लिए अनिवार्य होना चाहिए।

जिस प्रकार पूरे देश में “एक देश-एक कर” लागू किया गया उसी प्रकार 10वीं तक “एक देश-एक सिलेबस” भी लागू करना अति आवश्यक है। पढ़ने-पढ़ाने का माध्यम भले ही अलग हो लेकिन सिलेबस पूरे देश में एक समान होना चाहिए और किताब एक होनी चाहिए। “वन नेशन वन एजुकेशन” लागू करने के लिए GST कौंसिल की तर्ज पर NET (नेशनल एजुकेशन कौंसिल) बनाया जा सकता है। केन्द्रीय शिक्षा मंत्री को NEC का चेयरमैन और सभी राज्यों के शिक्षा मंत्री को NEC का सदस्य बनाया जा सकता है। यदि पूरे देश के लिए एक शिक्षा बोर्ड नहीं बनाया जा सकता है तो केंद्रीय स्तर पर केवल एक शिक्षा बोर्ड और राज्य स्तर पर केवल एक शिक्षा बोर्ड बनाना चाहिए

संसद द्वारा बनाया गया “शिक्षा अधिकार कानून” पूरे देश में लागू है इसलिए एक नया कानून बनाने की बजाय उसमें संशोधन करना चाहिए। वर्तमान कानून मे “समान” शब्द जोड़ दिया जाए तो यह “समान शिक्षा अधिकार कानून” बन जाएगा और अभी यह 14 वर्ष तक लागू है उसे 16 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। समान शिक्षा अर्थात “एक देश-एक शिक्षा” लागू करने से संविधान के आर्टिकल 14 के अनुसार भारत के सभी नागरिकों को समान अधिकार मिलेगा, आर्टिकल 15 के अनुसार जाति धर्म भाषा क्षेत्र रंग-रूप वर्ग और जन्म स्थान के आधार पर चल रहा भेदभाव समाप्त होगा तथा आर्टिकल 16 के अनुसार प्रतियोगी परीक्षाओं और नौकरियों में देश के सभी युवाओं को सबको समान अवसर मिलेगा। समान पाठ्यक्रम लागू करने से आर्टिकल 17 की भावना के अनुसार शारीरिक और मानसिक छुआछूत समाप्त होगा और आर्टिकल 19 के अनुसार प्रत्येक नागरिक को देश में कहीं भी बसने और रोजगार करने का समान अवसर मिलेगा

आर्टिकल 21A के अनुसार शिक्षा 14 वर्ष तक के सभी बच्चों का मौलिक अधिकार है इसलिए पढ़ने-पढ़ाने की भाषा भले ही अलग हो लेकिन सिलेबस पूरे देश का एक समान होना ही चाहिए। “एक देश एक पाठ्यक्रम” लागू करने से आर्टिकल 38(2) की भावना के अनुसार समस्त प्रकार की असमानता को समाप्त करने में मदद मिलेगी और आर्टिकल 39 के अनुसार सभी बच्चों का समग्र, समावेशी और संपूर्ण विकास होगा। समान शिक्षा अर्थात समान पाठ्यक्रम लागू करने से आर्टिकल 46 के अनुसार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और गरीब बच्चों का शैक्षिक और आर्थिक विकास होगा तथा आर्टिकल 51(A) की भावना के अनुसार देश के सभी नागरिकों में भेदभाव की भावना समाप्त होगी, आपसी भाईचारा मजबूत होगा तथा वैज्ञानिक-तार्किक और एक जैसी सोच विकसित करने में मदद मिलेगी, परिणाम स्वरूप देश की एकता अखंडता मजबूत होगी

जब लद्दाख से लक्षद्वीप और कच्छ से कामरूप तक सिलेबस एक समान होगा, किताब एक होगी और केंद्रीय विद्यालय की तरह स्कूल ड्रेस भी एक होगा तो किताब माफियाओं, कोचिंग माफियाओं और स्कूल माफियाओं पर लगाम लगेगी और शिक्षा का खर्च 50% कम हो जाएगा, चीन सहित दुनिया के कई देशों में समान शिक्षा बहुत पहले से लागू है इसलिए केंद्र सरकार को पूरे देश में समान शिक्षा अर्थात “एक देश एक शिक्षा” लागू करने के लिए आवश्यक कदम उठाना चाहिए

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