समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,7 दिसंबर। पंजाब और हरियाणा की सीमा पर स्थित शंभू बॉर्डर एक बार फिर किसानों के विरोध प्रदर्शन का केंद्र बन गया है। किसानों ने इस क्षेत्र में अपना बेस कैंप स्थापित किया है, जो पंजाब के क्षेत्र में आता है। यहां पर किसान न केवल अपनी मांगों को लेकर डटे हुए हैं, बल्कि उन्होंने पुलिस कार्रवाई का मुकाबला करने के लिए भी नई रणनीतियां अपनाई हैं।
जूट के गीले बोरों से आंसू गैस का सामना
प्रदर्शनकारी किसानों ने पुलिस द्वारा छोड़े जा रहे आंसू गैस के गोलों का मुकाबला करने के लिए एक अनूठा तरीका अपनाया है। उन्होंने जूट के गीले बोरों का उपयोग किया है, जो आंसू गैस के प्रभाव को कम करने में मददगार साबित हो रहे हैं।
“हमने यह तरीका अपने अनुभव और एकजुटता से सीखा है। हम शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन अपनी सुरक्षा के लिए हर जरूरी कदम उठाएंगे,” एक प्रदर्शनकारी किसान ने कहा।
क्यों खास है शंभू बॉर्डर?
शंभू बॉर्डर पंजाब और हरियाणा को जोड़ने वाला एक अहम स्थल है। यह स्थान न केवल भौगोलिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी किसान आंदोलन का प्रतीक बन गया है। इससे पहले भी इस क्षेत्र में किसानों ने बड़े विरोध प्रदर्शनों का आयोजन किया था।
किसानों की मांगें
प्रदर्शनकारी किसान मुख्य रूप से अपनी पुरानी मांगों को लेकर आंदोलनरत हैं। इनमें शामिल हैं:
- एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) की गारंटी।
- फसलों के उचित दाम और समय पर भुगतान।
- कर्जमाफी और किसानों के लिए राहत पैकेज।
- नए कृषि कानूनों से जुड़े किसी भी संशोधन को पूरी तरह रद्द करने की मांग।
पुलिस और प्रशासन की भूमिका
प्रदर्शनकारियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए पुलिस और प्रशासन ने सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए हैं। आंसू गैस और पानी की बौछार का उपयोग कर किसानों को तितर-बितर करने की कोशिश की गई, लेकिन किसानों ने डटे रहने का संकल्प लिया है।
“हम अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। कोई भी दमनकारी ताकत हमें रोक नहीं सकती,” एक महिला किसान ने कहा।
आम जनता की प्रतिक्रिया
शंभू बॉर्डर पर चल रहे इस आंदोलन को लेकर आम जनता की राय बंटी हुई है। कुछ लोग किसानों के संघर्ष को सही ठहरा रहे हैं और उनका समर्थन कर रहे हैं, जबकि कुछ इसे यातायात और आर्थिक गतिविधियों में बाधा बता रहे हैं।
निष्कर्ष
शंभू बॉर्डर पर किसानों का यह आंदोलन एक बार फिर यह दर्शाता है कि किसान अपने अधिकारों के लिए लड़ने को तैयार हैं। जूट के गीले बोरों जैसी रणनीतियां उनकी मजबूती और संघर्षशीलता का प्रतीक हैं। आने वाले दिनों में यह देखना होगा कि प्रशासन और सरकार इस आंदोलन को लेकर क्या रुख
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