“किसानों दूसरे मत भूल जाना”: उद्धव ठाकरे का केंद्र पर तीखा हमला

समग्र समाचार सेवा
मुंबई, 7 अगस्त:
शिवसेना (उद्धव) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने केंद्र सरकार पर किसानों के साथ दोहरे रवैये का आरोप लगाते हुए जोरदार हमला किया है। उन्होंने कहा कि पिछले दो‑तीन वर्षों में दिल्ली जाने वाले कई गरीब किसान मुश्किलों का सामना करते हुए दम तोड़ चुके हैं, लेकिन जब चुनाव नजदीक आए, तभी सरकार ने किसानों की याद की।

किसानों से दूरी, ताकत के खेल में यौनाल

उद्धव ठाकरे ने स्मरण किया कि जब उनके पिता बालासाहेब ठाकरे भूख हड़ताल पर थे, तो उन्हें दिल्ली में आने नहीं दिया गया था—उन पर लाठीचार्ज हुआ, दीवारें उठाई गईं, और उन्हें नक्सली कहा गया। अब हालात बदल गए हैं और धीरे-धीरे सरकार का वास्तविक चेहरा सामने आने लगा है।

उन्होंने सवाल उठाया कि “जब किसान मर रहे थे, तब सरकार कहां थी? अब चुनाव पास आते ही अचानक सभी किसानों की याद क्यों आने लगी?” उद्धव ने कहा कि यह किसान हित का नकली नाटक है, जो असल में चुनावी राजनीति का हिस्सा बन चुका है।

राज ठाकरे और राहुल की बैठक पर तंज

जब उद्धव से पूछा गया कि क्या राज ठाकरेराहुल गांधी की मुलाकात और इंडिया गठबंधन की बैठक में उनका शामिल होना संभव है, तो उन्होंने स्पष्ट कहा:
“दोनों भाई अपने दम पर सक्षम हैं। हमें जो करना है, हम वो करेंगे—किसी तीसरे व्यक्ति की जरूरत नहीं है।” उनका यह बयान सशक्त और स्वतंत्र निर्णय की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

मोदी का संदेश: किसान सर्वोपरि

उद्धव की आलोचना के बीच, प्रधानमंत्री मोदी ने भी किसानों की अहमियत पर रेखा खींची। उन्होंने साफ कहा कि अपनी कृषि नीति से वे कभी समझौता नहीं करेंगे। चाहे देश को 50% तक का अमेरिकी टैरिफ झेलना पड़े, वे किसानों के हित में कदम वापस नहीं लेंगे।
मोदी ने जोर देकर कहा: “किसानो का हित हमारे लिए सर्वोच्च है, भले ही व्यक्तिगत कीमत चुकानी पड़े, लेकिन मैं इसके लिए तैयार हूँ”

केंद्रीय राजनीति और किसान प्रश्न: अधिनायक की परछाई

उद्धव ठाकरे की तीखी टिप्पणी केंद्र सरकार की नीति पर एक महत्वपूर्ण सवाल उठाती है—क्या किसानों की बात सिर्फ चुनाव से पहले याद आती है? यह आरोप सचेत करता है कि लोकतंत्र में असली सवाल तब उठता है, जब मजबूत ताकतें पक्ष या विपक्ष के बावजूद, किसानों के साथ निष्पक्ष खड़े रहें।

केंद्र अपनी नीतियों की वास्तविकता और घोषणा के बीच सदैव एक संतुलन बनाए रखे। किसान, ग्रामीण और प्रतिष्ठित कृषि समुदायों का हित राष्ट्रीय स्थिरता का आधार है—notकि सिर्फ चुनावी घोषणा का हिस्सा बन जाए।

उद्धव ठाकरे का यह बयान सिर्फ राजनीतिक आरोप नहीं, बल्कि किसानों के लिए सम्मान और संवैधानिक राजशक्ति की वापसी की मांग भी है।
चाहे जो भी सरकार हो—यह समय आ गया है कि वह किसानों की भूख, उनकी मेहनत, और उनके दुख को अपने एजेंडा से बाहर न रखे। लोभ, चुनाव या बलिदान—जो कुछ भी हो, किसानों का धैर्य और गौरव अब सिर्फ चुनावी दिखावे का हिस्सा नहीं, बल्कि नेतृत्व का अनिवार्य हिस्सा होना चाहिए।

 

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