’दहकता सूरज हूं छोड़ के अपने छांव जा रहा हूं
तुझे बस इतना बता के अपने गांव जा रहा हूं’
साल भर से लंबे समय से दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलनरत रहे किसान अपने-अपने घरों को लौटने लगे हैं, डीजे और जीत के जश्न में अपनों को खोने का जिंदा अहसास लिए वे वापिस लौट रहे हैं, इस संकल्प के साथ कि अगर केंद्र सरकार ने उनकी छह सूत्री मांगों के साथ कोई दगा की तो वे फिर लौट कर दिल्ली आएंगे। न जाने इन्हें हुक्मरानों की ओर से कितने नामों से पुकारा गया-‘आंदोलनजीवी, आतंकवादी, खालिस्तानी’ पर न तो उनका विश्वास डिगा और न ही हौसला टूटा। सत्ता की प्राचीर से इन तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करते हुए यह घोषणा हुई कि ’ये बिल किसानों के हित के लिए लाए गए थे, पर राष्ट्रहित के लिए वापिस लिए गए हैं।’ जबकि 26 जनवरी को ऐसा लगने लगा था कि यह आंदोलन चल नहीं पाएगा, खुद दर्शन पाल ने हिंदू अखबार को दिए अपने इंटरव्यू में बेलाग कह दिया था कि ’लगता है अब यह चल नहीं पाएगा।’ पर हौसलों का यह कारवां रुका नहीं, आगे बढ़ता गया। 26 जनवरी से जुलाई तक सरकार ने भी आंदोलन से आंखें फेर ली। फिर यूपी-पंजाब चुनावों की आहटों को भांपते पिछले दरवाजे से डिप्लोमेसी शुरू हुई। शुरू में अलग-अलग नेताओं को केंद्र सरकार की ओर से साधने की कवायद हुई, पर किसान एकता अटूट रही, ये सभी वार्ताएं आंदोलन के 40 नेताओं से शेयर होती रहीं। आंदोलन बदस्तूर जारी रहा पर सरकार पर दबाव बढ़ता रहा, एनएसए की मीटिंग में अजीत डोवल को इशारा मिला कि भारत अपनी सीमाओं की सुरक्षा पर ज्यादा फोकस करें, क्योंकि सीमाओं पर जो जवान तैनात हैं उनके घर वाले पिछले एक साल से आंदोलनरत है, इससे जवानों पर मानसिक दबाव बढ़ सकता है। यूपी-पंजाब में खिसकती जमीन ने सत्तारूढ़ भाजपा को कदम पीछे खींचने के लिए मजबूर कर दिया। प्रकाश पर्व के मौके पर पीएम की घोषणा सामने आई और इसके तीन दिनों के अंदर किसानों की 6 सूत्री मांगों को मान लिया गया। पर सरकार की ओर से किसानों से बात करने वाले लोग अब भी सामने नहीं आ रहे, उनका डर क्या है, यह तो वही बेहतर समझ सकते हैं। किसान आंदोलन स्थगित हुआ है पर खत्म नहीं हुआ है, किसान नेताओं ने 15 जनवरी की डेडलाइन रखी है, वे नहीं चाहते कि किसान आंदोलन का हश्र भी अन्ना आंदोलन जैसा हो, एक बार आंदोलन वापिस हो गया तो फिर वादे पूरे नहीं हुए। इसीलिए जाते हुए किसानों से उनके नेता कह रहे हैं कि ‘जाओ पर एक महीने की सोच कर जाओ, तैयार रहना कि फिर आना पड़ सकता है।’
उत्तराखंड में क्या कांग्रेस की जीती बाजी पलट सकती है?
’आ बैल मुझे मार’ की सियासी प्रतिध्वनियों को एक नया आसमां मुहैया कराने में ’टीम राहुल’ का भी कोई सानी नहीं। उत्तराखंड में जब कांग्रेस का ग्राफ तेजी से ऊपर उठ रहा था, सत्तारूढ़ भाजपा की पेशानियों पर बल पड़ रहे थे तो न जाने किसकी सलाह पर देवेंद्र यादव को कांग्रेस प्रभारी बना कर उत्तराखंड भेज दिया गया है, इतना ही नहीं ’टीम राहुल’ उन्हें लगातार वहां सक्रिय रहने के लिए प्रेरित कर रही है। जबकि उत्तराखंड में आम तौर पर ‘यादव सरनेम’ को लेकर अपने कुछ पूर्वाग्रह हैं। यहां की जनता ने रामजन्म भूमि आंदोलन और अलग उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के पुलिसिया बर्बरता के दौर को झेला है। उस गोलीबारी की घटना के जख्म अभी भी इनके मन में हरे हैं। सूत्र बताते हैं कि उत्तराखंड कांग्रेस के कई शीर्ष नेताओं ने राहुल से मिल कर उनसे आग्रह भी किया था कि ’देवेंद्र यादव की जगह वे किसी और नेता को यहां का प्रभार सौंप दें,’ पर राहुल ने आदतन उनकी बातों को अनसुनी कर दी। सनद रहे कि जमीनों के कारोबार से जुड़े ये देवेंद्र यादव वही हैं जिन्हें अहमद पटेल ने कांग्रेस की राजनीति में आगे बढ़ाया। सूत्र यह भी बताते हैं कि देवेंद्र यादव भी मनीष चथरथ और अविनाश पांडे के साथ कांग्रेस के उसी कथित सिंडिकेट का हिस्सा हैं, जिस सिंडिकेट पर यदा-कदा टिकटों के सौदे-मसौदों के आरोप लगे हैं। उत्तराखंड के कांग्रेसी नेताओं के दावे हैं कि देवेंद्र यादव की वजह से महिला मतदाताओं के वोट कांग्रेस की झोली से छिटक सकते हैं, क्योंकि प्रदेश की महिलाएं अब भी एक यादव सीएम द्वारा दिए गए उन पुराने जख्मों को भुला नहीं पाई हैं।
कैसे होंगे आने वाले 15 दिन
आजाद भारत की लग्न कुंडली को देखते हुए सटीक सियासी भविष्यवाणियां करने वाले ज्योतिषी राजेश हसीजा का मानना है कि आने वाले कुछ हफ्ते भारत के लिए तनावपूर्ण हो सकते हैं, 10 दिसंबर से 5वें घर के स्वामी बुध राशि परिवर्तन करते हुए चंद्र के साथ 8वें भाव में गोचर कर रहे हैं। अब सवाल उठता है कि यह पांचवा घर है क्या? तो इसे इस रूप में जानिए कि यह 5वां सदन बुद्धि, भावनात्मक स्थिरता, सांप्रदायिक सदभाव, निवेश, स्टॉक एक्सेंज, जनसंख्या, उच्च शिक्षा और व्यक्ति के नैतिक मूल्यों को नियंत्रित करता है। बुध-चंद्र का यह गोचर समाज में व्याप्त सांप्रदायिक सौहार्द्र के ताने-बाने को प्रभावित कर सकता है। स्टॉक एक्सचेंज में भारी उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकता है। बुद्धिजीवियों के लिए भी यह एक मुश्किल दौर हो सकता है, उनकी विचारधारा और विश्वास के लिए यह असली परीक्षा की घड़ी हो सकती है। वहीं एक और ट्रांसिट में 12वें ग्रह के स्वामी मंगल भारत के चार्ट में राहु और केतु को प्रभावित कर रहे हैं। अपने गोचर में 12वें ग्रह के स्वामी मंगल पहले, दूसरे, सातवें और दसवें घर को 10 दिसंबर से 15 दिसंबर तक पीड़ित करेंगे। और मंगल के गोचर से बुध भी पीड़ित हो सकते हैं। अगले 15 दिनों में भारत के महत्वपूर्ण नागरिकों, राजनेताओं को अपनी सुरक्षा और स्वास्थ्य को लेकर सजग रहना होगा, सीमाओं पर हमलों को लेकर सुरक्षा बलों को भी सचेत रहना होगा। इतने कि बाद भी मत भूलिए कि कोरोना आपके आसपास ही कही कदमताल कर रहा है, ये भविष्यवाणियां करने वाले राजेष हसीजा 24 साल देश की शीर्ष खुफिया एजेंसी आईबी में रह चुके हैं, जो कोरोना महामारी और शेयर बाजार में भारी गिरावट की पहले भी भविष्यवाणी कर चुके हैं।
टीम राहुल की एक और भूल
एक ओर जहां राहुल गांधी बड़ी शिद्दत से इन प्रयासों में जुटे हैं कि कैसे मौजूदा सियासत में कांग्रेस के ग्राफ को ऊपर उठाया जाए, वहीं उनके खास भरोसेमंद लोग गलती पर गलती कर रहे हैं। ताजा मामला छत्तीसगढ़ के प्रदेश प्रभारी चंदन यादव का है, जिन्हें अभी-अभी पंजाब की स्क्रीनिंग कमेटी में शामिल किया गया है। सनद रहे कि यह चंदन यादव वही हैं जिनके साथ ‘जाली सर्टिफिकेट’ विवाद जुड़ा रहा है। एक वक्त उन्होंने बिहार के खगड़िया के बेलदौर से चुनाव लड़ा था, पर चुनाव हारने के बाद कभी दुबारा खगड़िया की ओर पलट कर नहीं देखा। फिर भी पार्टी ने इन उप चुनावों में उन्हें अपना स्टार कैंपेनर बना कर तारापुर विधानसभा की जिम्मेदारी सौंप दी, जहां कांग्रेस के उम्मीदवार को 3 साढ़े 3 हजार वोट आए और उनकी जमानत जब्त हो गई थी। सूत्रों का कहना है कि चंदन यादव की सिर्फ इसीलिए राहुल दरबार में तूती बोलती है, क्योंकि इनकी बंगाली मूल की पत्नी राहुल के ऑफिस में काम करती हैं।
कम होता रूढ़ी का प्रताप
राजीव प्रताप रूढी ने जब से अपना मंत्री पद गंवाया है लगता है उनके हौसलों को भी विरोधियों की नज़र लग गई है। वे भगवा सियासत से दूर-दूर फिर रहे हैं और अपनी महत्वाकांक्षाओं की उड़ान के लिए अपने आसमां को नए सिरे से परिभाषित कर रहे हैं। दिल्ली के राजनैतिक गलियारों के बजाए अब उनका ज्यादा समय इंडिगो की बेंगलुरू से पटना, और पोर्ट ब्लेयर से बेंगलुरू की फ्लाइट में गुज़र रहा है। एक कर्मर्शियल पायलट होने के नाते वे इंडिगो की नियमित उड़ानों को अपना ज्यादा वक्त दे रहे हैं। पिछले दिनों जब उन्हें लोकसभा में कोविड-19 डिबेट में हिस्सा लेने का मौका मिला तो वे जम कर बोले, डूब कर बोले, भावविहृल होकर बोले और बोलते-बोलते ये भी बोल गए कि वे एक बैकवर्ड एमपी हैं, क्योंकि वे पिछड़े राज्य बिहार से आते हैं। जब वे सदन में बोल रहे थे तो सभापति की कुर्सी पर ए राजा विद्यमान थे, जिन्होंने उन्हें दो-तीन दफे टोका भी, ‘चूंकि आपका एलॉटेड समय समाप्त हो गया है, सो आप बैठ जाइए।’ इस पर रूढी ने कहा-’आप राजा हैं और राजा को हमेषा एक बड़े दिल का होना चाहिए।’ सत्ता पक्ष ने रूढ़ी के भावों से उनका दर्द समझ लिया कि आखिरकार उनका इशारा किस ओर है?
कैसे सुधर गए सिद्धू
इन दिनों नवजोत सिंह सिद्धू क्लास के एक सुधरे हुए बच्चे की तरह आचरण कर रहे हैं, अब उनके अतरंगी बयान मीडिया के फलक से गायब हैं, उल्टे वे कह रहे हैं कि ’चन्नी और मैं, दो शरीर एक जान हैं’ कभी सिद्धू आम आदमी पार्टी की तारीफों के कसींदे पढ़ते नहीं थकते थे, अब वे दिल्ली के गेस्ट टीचर्स की मांगों को लेकर आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल के घर के सामने धरने पर बैठ जाते हैं। अब यह सवाल उठना लाजिमी ही है कि अचानक से सिद्धू को यह ’बुद्धत्व’ कहां से प्राप्त हो गया कि उनकी पार्टी ही उनके लिए सर्वोपरि है? सूत्रों की मानें तो इस बार राहुल गांधी की डांट काम कर गई। सूत्र बताते हैं कि पिछले दिनों राहुल ने सिद्धू को अपने घर बुला कर उनकी भरपूर क्लास लगाई, कहते हैं राहुल ने सिद्धू को बेहद तल्ख लहज़े में चेतावनी देते हुए कहा कि-’आपको समझना होगा कि आप अपनी ही पार्टी का नुकसान कर रहे हैं, यदि आपने अपने व्यवहार को नहीं बदला तो मैं खड़े-खड़े आपको पार्टी से निकाल दूंगा।’ राहुल की यह चेतावनी फिलहाल असर कर गई लगती है, मगर कब तक?
…और अंत में
अशोक गहलोत ने आज रविवार की रैली को अपनी नाक का सवाल बना लिया है। इस रैली को सफल बनाने के लिए इसमें वह अपना सर्वस्व झोंक रहे हैं। 12 दिसंबर की इस महंगाई विरोधी रैली के लिए उनकी पूरी सरकारी मशीनरी दिन-रात एक कर रही है। जयपुर के ज्यादातर होटल बाहर से आने वाले कांग्रेसी नेताओं के लिए रिजर्व कर दिए गए हैं, दिल्ली और प्रदेश कार्यालयों में लगातार जयपुर से फोन कर पूछे जा रहे हैं कि कौन-कौन सा नेता रैली में शरीक होने को इच्छुक हैं ताकि उनके रहने का जयपुर में इंतजाम किया जा सके। सूत्र यह भी बताते हैं कि मकर सक्रांति के बाद कांग्रेस संगठन में भारी फेरबदल की तैयारी है। (एनटीआई-gossipguru.in)
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