आर्टिकल 370 हटाने पर फारूक अब्दुल्ला ने दिया था समर्थन: रॉ के पूर्व प्रमुख का बड़ा खुलासा

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,18 अप्रैल।
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने को लेकर अब एक नया खुलासा सामने आया है। देश की खुफिया एजेंसी ‘रॉ’ (रिसर्च एंड एनालिसिस विंग) के पूर्व प्रमुख ने दावा किया है कि अनुच्छेद 370 को हटाने के फैसले का नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने निजी तौर पर समर्थन किया था। यह बयान भारतीय राजनीति में एक नई बहस को जन्म दे रहा है।

एक हालिया साक्षात्कार या पुस्तक (नाम का उल्लेख नहीं) में रॉ के पूर्व प्रमुख ने कहा,
“फारूक अब्दुल्ला सार्वजनिक रूप से अनुच्छेद 370 के पक्ष में थे, लेकिन निजी तौर पर उन्होंने कहा था कि यह धारा अब पुरानी पड़ चुकी है और कश्मीर की प्रगति के लिए इसे हटाया जाना चाहिए।”

यह दावा ऐसे समय आया है जब जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक गतिविधियां फिर से तेज हो रही हैं और आने वाले चुनावों को लेकर सभी दलों ने तैयारियां शुरू कर दी हैं।

गौरतलब है कि 5 अगस्त 2019 को जब केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा छीनते हुए अनुच्छेद 370 को हटाया था, तब फारूक अब्दुल्ला और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला समेत कई नेताओं को नजरबंद कर दिया गया था।
उसके बाद फारूक अब्दुल्ला ने कई बार सार्वजनिक मंचों से इस फैसले की आलोचना की और इसे “संविधान के खिलाफ” बताया।

लेकिन रॉ प्रमुख के इस दावे से यह संकेत मिल रहा है कि पर्दे के पीछे की राजनीति कुछ और ही रही होगी।

कांग्रेस और पीडीपी जैसी विपक्षी पार्टियों ने इस बयान को “राजनीतिक साजिश” करार दिया है। उनका कहना है कि “सरकार अब पूर्व एजेंसियों का सहारा लेकर जनता की राय को प्रभावित करने की कोशिश कर रही है।”

वहीं, भाजपा नेताओं ने इस खुलासे को “सच्चाई की जीत” बताया है। भाजपा प्रवक्ताओं ने कहा कि इससे यह साबित होता है कि अनुच्छेद 370 हटाने का फैसला न केवल संवैधानिक था बल्कि इसे कई वरिष्ठ नेताओं का अंदरूनी समर्थन भी प्राप्त था।

कश्मीर घाटी में इस खुलासे को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। कुछ लोग इसे “नेताओं की दोहरी राजनीति” का उदाहरण बता रहे हैं, जबकि कुछ मानते हैं कि कश्मीर के भविष्य के लिए जमीनी सच्चाई को समझना जरूरी है, न कि सिर्फ भावनात्मक राजनीति करना।

रॉ के पूर्व प्रमुख के इस बयान ने अनुच्छेद 370 को लेकर अब तक बनी हुई राजनीतिक धारणाओं को झकझोर दिया है। अगर यह दावा सच है, तो यह स्पष्ट करता है कि पर्दे के पीछे कई नेता बदलाव की आवश्यकता को समझते थे, परंतु जनभावनाओं को देखते हुए सार्वजनिक रूप से विरोध करते रहे।

आने वाले दिनों में फारूक अब्दुल्ला या उनकी पार्टी की ओर से इस पर क्या प्रतिक्रिया आती है, यह राजनीतिक दृष्टिकोण से बेहद अहम होगा।

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