प्रो. मदन मोहन गोयल, नीडोनॉमिक्स के प्रवर्तक एवं पूर्व कुलपति
भ्रष्टाचार भारत की सबसे गहरी जड़ें जमाए हुई चुनौतियों में से एक है। यह केवल आर्थिक प्रगति को कमजोर नहीं करता बल्कि लोकतांत्रिक संस्थाओं, सामाजिक विश्वास और शासन की नैतिकता को भी खोखला कर देता है। नीडोनॉमिक्स स्कूल ऑफ थॉट ( एनएसटी) का मानना है कि भारत में हर प्रकार के भ्रष्टाचार के प्रति शून्य सहिष्णुता जरूरी है।
भ्रष्टाचार का कारण केवल तंत्र की खामियाँ नहीं बल्कि लालच की संस्कृति भी है—जिसे एनएसटी “ग्रीडोनॉमिक्स” कहता है। इसका इलाज है नीडो-गवर्नेंस, जो अक्सर चर्चित “गुड गवर्नेंस” से कहीं अधिक गहरा, मजबूत और बुनियादी है।
वर्तमान संदर्भ: 2025 के तीन प्रस्तावित विधेयक
20 अगस्त 2025 को केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने लोकसभा में तीन महत्वपूर्ण विधेयक प्रस्तुत किए:
- संविधान (130वाँ संशोधन) विधेयक, 2025
- केंद्र शासित प्रदेश (संशोधन) विधेयक, 2025
- जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2025
इन विधेयकों का एक सामान्य प्रावधान है: यदि कोई निर्वाचित जनप्रतिनिधि 30 दिन से अधिक समय तक गिरफ्तारी में रहता है तो उसे स्वतः पद से हटा दिया जाएगा।
पहली नज़र में ये कदम भ्रष्टाचार के प्रति कड़ा रुख दिखाते हैं, लेकिन इनमें आवश्यक न्यायिक सुरक्षा कवच का अभाव है। आरोप-पत्र, ज़मानत, सुनवाई और न्यायिक फैसले को दरकिनार करना “दोष सिद्ध होने तक निर्दोष” की संवैधानिक अवधारणा और न्यायिक प्रक्रिया को कमजोर करता है।
निष्पक्ष बहस और आत्मचिंतन की आवश्यकता
एनएसटी का मानना है कि ऐसे प्रावधानों पर खुले, निष्पक्ष और तथ्याधारित विमर्श जरूरी हैं। लोकतंत्र में न्याय किसी शॉर्टकट से नहीं मिल सकता।
साक्ष्य सिद्ध करने की जिम्मेदारी हमेशा अभियोजन पक्ष की होनी चाहिए, न कि आरोपी की। यदि कानून सावधानीपूर्वक न बनाए जाएँ तो ये प्रावधान राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित गिरफ्तारियों का रास्ता खोल देंगे और लोकतंत्र को कमजोर करेंगे।
एनएसटी नीति-निर्माताओं को याद दिलाता है कि सुधारों का मार्गदर्शन संवैधानिक नैतिकता से होना चाहिए, न कि निर्वाचित अधिनायकवाद से। इसलिए भारत को भ्रष्टाचार के प्रति शून्य सहिष्णुता के साथ-साथ यह सुनिश्चित करना होगा कि:
- कानूनों के राजनीतिक दुरुपयोग से सुरक्षा मिले।
- केंद्र और राज्यों के बीच संघीय संतुलन बना रहे।
- प्रवर्तन एजेंसियाँ निष्पक्ष रहें।
न्यायपालिका और प्रवर्तन एजेंसियों की भूमिका
भारत का सर्वोच्च न्यायालय कई बार केंद्रीय जांच एजेंसियों की कार्यशैली पर चिंता जता चुका है। भारी संख्या में गिरफ्तारियाँ तो होती हैं, परंतु दोषसिद्धि दर बेहद कम है।
यह स्थिति एक दुष्चक्र पैदा करती है—मीडिया ट्रायल, लंबी कैद, और जनता का न्यायपालिका पर विश्वास घटता है। समयबद्ध दोषसिद्धि के बिना गिरफ्तारियाँ वास्तविक निवारक नहीं बनतीं, बल्कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को राजनीतिक हथियार बना देती हैं।
एनएसटी का ज़ोर है कि निष्पक्ष सुनवाई और समय पर दोषसिद्धि ही न्याय में विश्वास बहाल कर सकती है।
नीडोनॉमिक्स का नुस्खा: स्ट्रीट– स्मार्ट गवर्नेंस
वास्तविक शून्य सहिष्णुता तभी संभव है जब भारत स्ट्रीट– स्मार्ट नीडो-गवर्नेंस अपनाए:
- S – Simple (सरल प्रक्रियाएँ): अनावश्यक लालफीताशाही और देरी को कम करना।
- M – Moral Appeal (नैतिक अपील): सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी और नैतिक आचरण को बढ़ावा देना।
- A – Accountability (जवाबदेही): शासन, व्यापार और समाज के हर स्तर पर।
- R – Responsible Power (जिम्मेदार शक्ति): राज्यसत्ता का विवेकपूर्ण उपयोग, संतुलन और नियंत्रण के साथ।
- T – Transparency (पारदर्शिता): निर्णय-प्रक्रिया, कानून प्रवर्तन और प्रशासन में।
एनएसटी मानता है कि केवल डर-आधारित दंड से भ्रष्टाचार समाप्त नहीं होगा। इसके लिए शासन में नैतिक क्रांति, कुशल तंत्र और नैतिक नेतृत्व आवश्यक है।
वैश्विक अनुभव और भारत के लिए सबक
जब भारत 2025 के विधेयकों पर बहस कर रहा है, तब यह देखना उपयोगी है कि अन्य देशों ने भ्रष्टाचार से कैसे निपटा:
सिंगापुर: स्वतंत्र और सक्षम जांच एजेंसी CPIB, तेज़ और निष्पक्ष जांच, उच्च दोषसिद्धि दर, राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त।
हांगकांग: 1974 में ICAC की स्थापना; तीन रणनीतियाँ—कानून प्रवर्तन, प्रशासनिक सुधार, और जनजागरूकता। यह नीडोनॉमिक्स की “कानून और नैतिक अपील” की अवधारणा से मेल खाता है।
दक्षिण कोरिया: कड़े कानून होने के बावजूद राजनीतिकरण का खतरा। सबक यह है कि क़ानूनों को राजनीतिक प्रतिशोध से बचाना अनिवार्य है।
नॉर्डिक देश (डेनमार्क, फिनलैंड, स्वीडन): न्यूनतम भ्रष्टाचार, कठोर दंड नहीं बल्कि पारदर्शिता, समानता और विश्वास पर आधारित मॉडल।
भारत 2025 के लिए सीख
- तेज़ और निष्पक्ष दोषसिद्धि (सिंगापुर मॉडल)।
- प्रवर्तन, रोकथाम और शिक्षा का संतुलित दृष्टिकोण (हांगकांग मॉडल)।
- राजनीतिक दुरुपयोग से सुरक्षा (दक्षिण कोरिया का सबक)।
- पारदर्शिता और सामाजिक विश्वास (नॉर्डिक देशों का अनुभव)।
निष्कर्ष
भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को केवल गिरफ्तारियों और प्रतीकात्मक दंड से आगे बढ़ाना होगा। वैश्विक अनुभव बताते हैं कि भ्रष्टाचार तभी कम हो सकता है जब कानून निष्पक्ष हों, दोषसिद्धि समय पर हो, तंत्र पारदर्शी हो और शासन में नैतिकता निहित हो। नीडोनॉमिक्स के दृष्टिकोण से भारत को एक संतुलित और स्वदेशी ढांचा अपनाना होगा:
- मजबूत कानून जो राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त हों।
- तेज़ न्याय जो न्यायिक प्रक्रिया और संवैधानिक नैतिकता को बनाए रखे।
- हर स्तर पर जवाबदेही और पारदर्शिता की संस्कृति।
- “ग्रीडोनॉमिक्स” को रोकने और “नीडोनॉमिक्स” को बढ़ावा देने वाली नैतिक अपील।
भ्रष्टाचार के प्रति शून्य सहिष्णुता कभी भी न्याय के प्रति शून्य सहिष्णुता नहीं बननी चाहिए। भारत को ऐसा नीडो-गवर्नेंस गढ़ना होगा जो शक्ति और न्याय, कानून और नैतिकता, कुशलता और धर्मनीति का संगम हो। तभी भारत 2025 से “विकसित भारत 2047” की यात्रा में भ्रष्टाचार को राजनीतिक हथियार नहीं बल्कि लोकतांत्रिक ढाल बना सकेगा और ग्रीडोनॉमिक्स से नीडोनॉमिक्स की ओर बढ़ पाएगा।
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