विदेश मंत्री ने बताया भारत के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के महत्वपूर्ण कदम

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 30 जुलाई: राज्यसभा में विदेश मंत्री ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत भारत सरकार द्वारा उठाए गए प्रमुख कदमों का विस्तृत बयान दिया। उन्होंने बताया कि इस वीरता अभियान के तहत कई पाकिस्तानी राजनयिकों को भारत से रवाना कर दिया गया, जबकि भारत में पाकिस्तानी नागरिकों के ठिकानों से उन्हें बाहर निकाला गया। लेकिन सबसे प्रभावशाली कदम था—सिंधु जल समझौते को स्थगित करना।

विदेश मंत्री ने कहा कि 1960 में हुए इस समझौते के वक्त तत्कालीन प्रधानमंत्री ने लोकसभा में पाकिस्तान के हितों की चिंता ज़ाहिर की थी, मगर भारतीय राज्यों की जरूरतों को अनदेखा कर दिया गया। उन्होंने याद दिलाया कि समझौता “दोस्ती और सद्भावना” की भावना में किया गया था, पर पाकिस्तान की ओर से बार‑बार आतंकवाद और भारत विरोधी गतिविधियाँ बढ़ने लगीं। इसलिए यह समय की आवश्यकता बन गई कि सिंधु जल समझौता भारत के हित में अधिक पारदर्शी तरीके से फिर से परखा जाए।

संसद में व्यवस्था व्यस्त और आरोप प्रत्यारोप का दौर

इस दौरान लोकसभा में प्रश्नकाल जारी है, जहां मंत्री सरकार की रणनीति और कार्रवाई की बारीकियाँ स्पष्ट कर रहे हैं। दूसरी ओर, राज्यसभा में कार्यवाही शुरू होते ही विपक्ष ने हंगामा करना शुरू कर दिया। सदन की कार्रवाई दोपहर 12 बजे तक स्थगित कर दी गई है, हालांकि चर्चा के लिए विरोध स्पष्ट था।

बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के खिलाफ विपक्षी सांसदों ने सशक्त विरोध दर्ज कराया। सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी भी इस प्रदर्शन में शामिल रहीं। वहीं, आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने इस मामले पर चर्चा शुरू कराने के लिए ‘ससपेंशन ऑफ बिजनेस’ नोटिस दिया, और कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने अतिक्रमण रोधी कार्यक्रम को लेकर लोकसभा में स्थगन प्रस्ताव पेश किया।

एक अन्य गंभीर घटना में—धर्मांतरण के आरोपों पर छत्तीसगढ़ में गिरफ्तार हुई दो ननों के समर्थन में प्रियंका गांधी समेत कई कांग्रेस सांसदों ने संसद परिसर में विरोध प्रदर्शन किया। इस विरोध के दौरान सीपीआईएम के कई नेता दुर्ग केंद्रीय कारागार में बंद ननों से मिलने भी पहुंचे।

विदेश नीति से लेकर अंदरूनी मुद्दों तक—भारत का राजनीतिक डांस

राज्यसभा में विदेशी संबंधों पर उठाया गया दांव—विशेषकर सिंधु समझौते को स्थगित करने का निर्णय—स्पष्ट संदेश देता है कि भारत अब पहले की तुलना में अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और जलादिकारों को अधिक प्राथमिकता देगा। यह कदम पाकिस्तान के साथ रिश्तों को दिमाग से सोच कर निर्धारित करने की दिशा में पहला मैत्रीपूर्ण संकेत है।

लेकिन सरकार के विदेश नीति के निर्णयों के साथ ही संसद परिसर में उठ रहे अंदरूनी मुद्दों—जैसे मतदाता सूची विवाद, अतिक्रमण विरोध, धर्मांतरण आरोप, और सांसदों द्वारा विरोध प्रदर्शन—भी राजनीतिक उठापटक की दिशा तय कर रहे हैं। ये सब दिखाता है कि सत्ता और विपक्ष अभी भी एक दूसरे को मैदान पर टक्कर दे रहे हैं, चाहे विषय विदेश नीति हो या घरेलू मुद्दे।

संतुलन साधना अब चुनौतियों के बीच बदलाव की ज़रूरत

विदेश मंत्री द्वारा ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर पेश की गई नई रणनीति—विशेष रूप से सिंधु जल समझौते को स्थगित करना—भारत के नीति निर्माण में स्पष्ट और निर्णायक दृष्टिकोण का संकेत है। लेकिन इस रणनीति की प्रभावशीलता तभी सुनिश्चित हो पाएगी जब संसद के अंदर उठ रहे सामाजिक, राजनीतिक और संवैधानिक विवादों को भी संतुलित तरीके से संभाला जाए।

देश सरकार की विदेश नीति में स्थिरता चाहता है, लेकिन साथ ही लोकतंत्र की स्वतःस्फूर्त कार्यप्रणाली, बहस की गरिमा, और सांसदों की जवाबदेही भी आवश्यक है। आने वाले दिनों में यह देखना रोचक होगा कि सरकार अपने विदेश नीति कदमों को अपनाते हुए, घरेलू राजनीतिक अस्थिरता को कैसा संतुलित करती है।

 

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