समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 14नवंबर। देश में न्यायधीशों की नियुक्ति के लिए अपनायी जानी वाली कॉलेजियम प्रक्रिया इन दिनों चर्चा के केंद्र में है। दरअसल, हाल ही में केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने देश की न्यायपालिका के कॉलेजियम को लेकर सवाल खड़े किए थे। वहीं, अब पूर्व सीजेआई जस्टिस यूयू ललित ने इस प्रक्रिया को सही बताया है। उन्होंने रविवार को कहा कि ये सही और संतुलित प्रक्रिया है। वहीं उन्होंने 2012 में छावला इलाके में हुए सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दोषियो को बरी किए जाने पर भी प्रतिक्रिया दी।
कॉलेजियम सिस्टम के बारे में उठ रहे सवालों पर भारत के पूर्व मुख्य न्यायधीश जस्टिस यूयू ललित ने विराम लगा दिया है। रविवार को उन्होंने कहा कि जब उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति की बात आती है, तो उच्च न्यायालय में कॉलेजियम 1+2 की सिफारिश करता है। जिसके बाद यह सिफारिश राज्य सरकार के पास जाती है। सरकार से इनपुट भी रिकॉर्ड में लाया जाता है, फिर मामला केंद्र सरकार तक पहुंचता है।
इसके बाद केंद्र द्वारा संबंधित व्यक्ति की प्रोफाइल के बारे में इंटेलिजेंस ब्यूरो से राय मांगी जाती है। फिर मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचता है, जहां हम सलाहकार न्यायाधीशों की राय लेते हैं। इसके बाद कॉलेजियम सिफारिश करना शुरू करता है जो एचसी की सिफारिशों के अलावा अन्य नामों की सिफारिश नहीं कर सकता।
उन्होंने आगे बताया कि इस तरह की कार्यप्रणाली के माध्यम से पिछले कॉलेजियम में हम 250 ऐसी नियुक्तियों की सिफारिश कर सकते थे, जो अंततः की गईं। जिसके बाद यह साफ है कि यह प्रक्रिया अच्छी तरह से स्थापित और स्वीकृत है।
गौरतलब है कि कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने सितंबर माह में वर्तमान कॉलेजियम प्रणाली पर सवाल खड़े किए थे। उन्होंने एक कार्यक्रम में बोलते हुए कहा था कि हाईकोर्ट और निचली अदालत की मूलभूत सुविधाओं को बढ़ाने के लिए सरकार लगातार प्रभावी कदम उठा रही है। न्याय प्रणाली को फिर से जीवंत करने का समय आ गया है। न्यायिक नियुक्तियों में तेजी लाने के लिए वर्तमान कॉलेजियम प्रणाली पर विचार करने की जरूरत है। किसी व्यवस्था में सुधार नहीं हो रहा है तो उसका सर्वोत्तम प्रयोग करने पर ध्यान देना चाहिए।
साल 2012 में दिल्ली के छावला इलाके में हुए सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के मामले में बीते सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने तीनों आरोपियों को बरी कर दिया था। जिसके बाद इस मामले में पूर्व सीजेआई ने बयान दिया है। उन्होंने कहा कि मामला विशुद्ध रूप से परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित था। कानून स्पष्ट है कि तथ्यों को पूरी तरह से उस व्यक्ति के अपराध की ओर इशारा करना चाहिए, जब तक कि वह अपराध पूरी तरह से स्थापित नहीं हो जाता। उन्होंने कहा कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य केस थ्योरी को स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए। मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उन्होंने कहा कि वास्तव में ऐसी कोई परिस्थिति नहीं थी जो आरोपियों की दिशा में निर्णायक रूप से इंगित कर सके।
गौरतलब है कि साल 2012 में दिल्ली के छावला इलाके में हुए सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के मामले में बीते सोमवार को शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के आदेश के फैसले के खिलाफ तीनों आरोपियों को बरी करने का आदेश दिया था। उत्तराखंड की 19 साल की लड़की से गैंगरेप औप हत्या के मामले में हाईकोर्ट ने दोषियों को फांसी की सजा सुनाई थी। उससे पहले निचली अदालत ने भी यही फैसला सुनाया था।
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