‘शहीद’ से ‘क्रांति’ तक: मनोज Manoj Kumarका स्वर्णिम राष्ट्रवादी सफ़र
नई दिल्ली: एक किंवदंती को याद करते हुए
भारतीय सिनेमा की दुनिया ने आज अपने सबसे प्रिय और प्रतिष्ठित कलाकारों में से एक को खो दिया है। दिग्गज अभिनेता, निर्देशक और लेखक मनोज कुमार, जिन्हें पूरे देश में ‘भारत कुमार’ के नाम से जाना जाता था, का 87 वर्ष की आयु में मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में निधन हो गया। फ़िल्म इंडस्ट्री और उनके करोड़ों प्रशंसक इस अपूरणीय क्षति पर शोकाकुल हैं। उनके जाने से भारतीय सिनेमा में देशभक्ति की वो अनूठी आवाज़ भी खामोश हो गई जिसने करोड़ों दिलों में भारत के प्रति प्रेम और कर्तव्य की भावना जगाई।
24 जुलाई 1937 को तत्कालीन भारत के एबटाबाद (अब पाकिस्तान में) में जन्मे हरिकृष्ण गिरी गोस्वामी partition के बाद दिल्ली आ बसे। कम उम्र में ही फिल्मों के प्रति आकर्षण ने उन्हें अभिनय के क्षेत्र में ले आया। ‘शबनम (1949)’ फिल्म में दिलीप कुमार के अभिनय से प्रेरित होकर उन्होंने अपना स्क्रीन नाम ‘मनोज कुमार’ रख लिया। छोटे-छोटे रोल से शुरुआत करने वाले मनोज कुमार ने जल्द ही फिल्मी दुनिया में अपनी गहरी छाप छोड़ दी।
देशभक्ति से ओत-प्रोत फिल्मों की वजह से उन्हें ‘भारत कुमार’ की उपाधि मिली। 1965 में ‘शहीद’ फिल्म की सफलता के बाद, उस समय के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने उन्हें पीएमओ बुलाकर ‘जय जवान जय किसान’ नारे पर फिल्म बनाने का आग्रह किया। परिणामस्वरूप 1967 में बनी फिल्म उपकार, जिसमें उन्होंने सैनिकों और किसानों के योगदान को सशक्त तरीके से प्रस्तुत किया। यह फिल्म राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक बनी और इसके बाद मनोज कुमार को देशभर में ‘भारत कुमार’ के रूप में सराहा गया।
मनोज कुमार की फिल्में केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि राष्ट्रीय चेतना की दस्तावेज़ थीं। उनकी कुछ उल्लेखनीय फिल्में:
-
शहीद (1965): भगत सिंह के बलिदान की मार्मिक प्रस्तुति, जिसने देशभक्ति की लहर दौड़ा दी।
-
उपकार (1967): ‘जय जवान जय किसान’ का सिनेमाई रूपांतरण।
-
पूरब और पश्चिम (1970): भारतीय और पश्चिमी सोच की टकराहट पर आधारित सांस्कृतिक फिल्म।
-
रोटी कपड़ा और मकान (1974): बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार और गरीबी पर सीधी चोट।
-
क्रांति (1981): स्वतंत्रता संग्राम पर आधारित भव्य ऐतिहासिक फिल्म।
मनोज कुमार सिर्फ अभिनेता नहीं थे; वे लेखक, निर्देशक और निर्माता भी थे। उनकी कहानियाँ भारत के सामाजिक-राजनीतिक यथार्थ से जुड़ी होती थीं। उन्होंने सिनेमा को एक मिशन की तरह जिया। उनकी उत्कृष्ट सेवाओं को मान्यता देते हुए उन्हें 1992 में पद्म श्री और 2015 में दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
उनके निधन पर फिल्मी जगत और राजनीतिक गलियारों से गहरी संवेदनाएँ व्यक्त की गईं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शोक जताते हुए कहा:
“मनोज कुमार जी का निधन अत्यंत दुखद है। उनकी फिल्में सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि देशभक्ति का जीवंत दस्तावेज़ थीं। भारतीय सिनेमा में उनका योगदान सदियों तक याद रखा जाएगा। ओम शांति।”
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा:
“मनोज कुमार जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। ‘उपकार’ और ‘पूरब और पश्चिम’ जैसी फिल्मों ने हमारी राष्ट्रीय चेतना को समृद्ध किया। उनकी विरासत अमर रहेगी। ओम शांति।”
निर्देशक अशोक पंडित ने कहा:
“दादा साहब फाल्के पुरस्कार विजेता, हमारी प्रेरणा और भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के ‘शेर’ मनोज कुमार जी अब हमारे बीच नहीं रहे। यह इंडस्ट्री के लिए बहुत बड़ी क्षति है।”
जहां आज की फिल्मों में व्यावसायिक सफलता पर ज़्यादा जोर है, वहीं मनोज कुमार की विरासत यह याद दिलाती है कि सिनेमा एक सामाजिक और राष्ट्रीय संदेश का सशक्त माध्यम भी हो सकता है। उन्होंने अपने सिनेमा से यह बताया कि देशभक्ति केवल परेड में नहीं, बल्कि रोज़मर्रा की ज़िंदगी में भी महसूस की जा सकती है।
मनोज कुमार का जाना एक युग के अंत जैसा है। लेकिन उनका सिनेमा – उपकार, शहीद, क्रांति जैसी फिल्में – आने वाली पीढ़ियों को हमेशा प्रेरित करती रहेंगी। उन्होंने सिनेमा को भारत के इतिहास, संस्कृति और मूल्यों से जोड़कर अमर बना दिया।
मनोज कुमार भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन ‘भारत कुमार’ की भावना हर उस दर्शक के दिल में जीवित रहेगी जो उनकी फिल्मों से जुड़ा है। उनकी कला, उनकी सोच, और भारत के प्रति उनका समर्पण – हमेशा स्मरणीय रहेगा।
श्रद्धांजलि भारत कुमार को।
एक सिनेमा राष्ट्रभक्त को सलाम।
Comments are closed.