समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,28 दिसंबर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने हाल ही में मंदिर और मस्जिद से जुड़े बयान दिए, जिनमें उन्होंने कहा कि हर मंदिर और मस्जिद का विवाद खड़ा करना उचित नहीं है। उन्होंने सोमनाथ मंदिर का उदाहरण देते हुए इसे भारतीय सांस्कृतिक पुनरुत्थान का प्रतीक बताया। हालांकि, इस बयान के तुरंत बाद संघ के मुखपत्र ऑर्गनाइजर और पांचजन्य ने अपनी राय पेश की, जो भागवत के बयान से थोड़ी अलग दिख रही है।
मोहन भागवत का बयान
मोहन भागवत ने मंदिर-मस्जिद विवादों के बारे में कहा कि “हर विवाद को उखाड़ना और विवाद पैदा करना समाज के लिए सही नहीं है।” उनका मानना है कि सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का उद्देश्य देश की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान को पुनर्जीवित करना था। उन्होंने कहा कि ऐसे मुद्दों को केवल न्यायालय और आपसी सहमति से हल करना चाहिए।
संघ के मुखपत्र की राय
ऑर्गनाइजर और पांचजन्य ने इस विषय पर अपनी राय व्यक्त की, जिसमें उन्होंने ऐतिहासिक तथ्यों और सांस्कृतिक पहचान पर जोर दिया। इन लेखों में यह तर्क दिया गया कि भारत की सांस्कृतिक धरोहर को पुनः स्थापित करना आवश्यक है, और इसके लिए ऐतिहासिक अन्याय को ठीक करना जरूरी है।
मुखपत्र ने स्पष्ट रूप से उल्लेख किया कि मंदिरों को पुनः स्थापित करना केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण का हिस्सा है। उन्होंने यह भी कहा कि राम मंदिर का निर्माण या काशी-मथुरा के मुद्दे भारतीय संस्कृति के पुनर्निर्माण का प्रतीक हैं, जिन्हें केवल विवाद के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।
राय में अंतर क्यों?
भागवत का बयान और संघ के मुखपत्र की राय में यह अंतर उनकी प्राथमिकताओं और दृष्टिकोण को दर्शाता है। भागवत जहां सामाजिक समरसता और न्यायिक समाधान पर जोर देते हैं, वहीं संघ के मुखपत्र भारतीय इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर को पुनर्जीवित करने के तात्कालिक कदमों की वकालत करते हैं।
सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव
यह अंतर आरएसएस के भीतर मौजूद विविध विचारधाराओं को भी उजागर करता है। जहां एक ओर संघ अपनी छवि को समरसता और संवादप्रिय संगठन के रूप में प्रस्तुत करना चाहता है, वहीं दूसरी ओर उसकी विचारधारा का एक वर्ग यह मानता है कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
निष्कर्ष
‘सोमनाथ से संभल तक…’ का यह विषय केवल मंदिर और मस्जिद से जुड़ा विवाद नहीं है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान को लेकर एक व्यापक चर्चा है। मोहन भागवत और संघ के मुखपत्र की राय में भले ही थोड़ा अंतर हो, लेकिन दोनों का उद्देश्य भारतीय समाज में सांस्कृतिक और ऐतिहासिक चेतना को बढ़ावा देना ही है।
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