
प्रो. मदन मोहन गोयल, प्रवर्तक – नीडोनॉमिक्स एवं पूर्व कुलपति
अपने ऐतिहासिक लाल किले से दिए गए स्वतंत्रता दिवस भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के युवाओं के लिए रोज़गार के परिदृश्य को बदलने वाली एक ऐतिहासिक पहल की घोषणा की — पीएम विकसित भारत रोज़गार योजना ( पीएम-वीबीआरवाई)। ₹99,446 करोड़ के व्यय और 3.5 करोड़ नए निजी रोजगार सृजन के महत्वाकांक्षी लक्ष्य के साथ यह योजना वर्ष 2047 तक विकसित भारत के विज़न के अनुरूप है।
योजना की मुख्य विशेषताएं
15 अगस्त 2025 से शुरू होने वाली इस योजना के तहत कर्मचारी भविष्य निधि संगठन ( ईपीएफओ) में पंजीकृत प्रथम बार नौकरी करने वाले कर्मचारियों को ₹15,000 प्रति माह का प्रत्यक्ष वेतन लाभ मिलेगा। यह राशि दो किस्तों में दी जाएगी—
पहली किस्त: छह माह की सतत सेवा पूर्ण होने पर।
दूसरी किस्त: 12 माह की सेवा एवं वित्तीय साक्षरता कार्यक्रम पूरा करने पर।
निजी क्षेत्र के नियोक्ताओं को भी पात्र युवाओं को नियुक्त करने पर प्रोत्साहन मिलेगा, जिससे उद्योग को राष्ट्र-निर्माण में भागीदारी हेतु प्रोत्साहित किया जाएगा।
नीडोनॉमिक्स की दृष्टि से पीएम–वीबीआरवाई का विश्लेषण
नीडोनॉमिक्स स्कूल ऑफ थॉट (एनएसटी) ज़रूरतों को इच्छाओं पर प्राथमिकता देने, सतत रोज़गार को बढ़ावा देने और समावेशी आर्थिक विकास सुनिश्चित करने पर बल देता है। इस दृष्टिकोण से यह योजना आशा और सावधानी दोनों का संदेश देती है—
1. मानव पूंजी में निवेश के रूप में रोजगार
पहली बार नौकरी करने वालों को प्रोत्साहन देकर योजना रोजगार को केवल आय सृजन नहीं, बल्कि क्षमता निर्माण के रूप में मान्यता देती है। सतत सेवा की शर्त अनुशासन को सुनिश्चित करती है, वहीं वित्तीय साक्षरता घटक उपभोक्तावाद के युग में जिम्मेदार धन प्रबंधन जैसी आवश्यक जीवन-कौशल को बढ़ावा देता है।
2. सामाजिक लक्ष्यों में निजी क्षेत्र की भागीदारी
नीडोनॉमिक्स के अनुसार आर्थिक रूपांतरण के लिए राज्य और बाज़ार के बीच सामंजस्य आवश्यक है। यह योजना निजी क्षेत्र को प्रोत्साहनों के माध्यम से समावेशी विकास का भागीदार बनाती है, जिससे वे केवल लाभ कमाने वाले संस्थान न रहकर राष्ट्र-निर्माण के सहयात्री बनें।
3. ‘इच्छा–आधारित’ रोजगार प्रवृत्तियों से बचाव
संभावित जोखिम यह है कि वेतन सब्सिडी का दुरुपयोग केवल अल्पकालिक या अनुबंध आधारित नियुक्तियों के लिए हो सकता है, जिनमें दीर्घकालिक कैरियर संभावनाएं न हों। NST दृष्टिकोण के अनुसार हमें “नीडो-जॉब्स” चाहिए — ऐसे रोजगार जो कर्मचारी की आजीविका सुरक्षा और कौशल विकास तथा अर्थव्यवस्था की उत्पादकता और नवाचार दोनों की ज़रूरतों को पूरा करें, न कि केवल आंकड़ों में रोजगार वृद्धि दिखाएँ।
4. वित्तीय विवेक पर जोर
वित्तीय साक्षरता कार्यक्रम का एकीकरण नीडोनॉमिक्स के जिम्मेदार आर्थिक व्यवहार के सिद्धांत से पूर्णतः मेल खाता है। कमाई गई धनराशि का विवेकपूर्ण प्रबंधन कर ऋण जाल से बचना, बचत को बढ़ाना, निवेश और आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहित करना आवश्यक है।
एनएसटी के सुझाव एवं चुनौतियां
गुणवत्ता बनाम संख्या: लक्ष्यों की दौड़ में नौकरी की गुणवत्ता से समझौता न हो।
नियोक्ता द्वारा दुरुपयोग रोकना: योजना का अल्पकालिक लाभ हेतु गलत इस्तेमाल रोकने के लिए स्पष्ट निगरानी तंत्र आवश्यक है।
कौशल विकास को सुदृढ़ करना: वित्तीय साक्षरता के साथ-साथ कौशल उन्नयन कार्यक्रमों को भी शामिल करना होगा ताकि प्रोत्साहन अवधि के बाद भी रोजगार क्षमता बनी रहे।
राष्ट्रीय प्राथमिकताओं से सामंजस्य: रोजगार ऐसे क्षेत्रों में हों जो विकसित भारत के लिए आवश्यक हैं — हरित प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य, शिक्षा, बुनियादी ढांचा और विनिर्माण।
निष्कर्ष
नीडोनॉमिक्स स्कूल ऑफ थॉट (एनएसटी) मानता है कि पीएम विकसित भारत रोज़गार योजना भारत की रोजगार नीति में एक साहसिक और संभावित रूप से परिवर्तनकारी कदम है। नीडोनॉमिक्स के दृष्टिकोण से इसकी सफलता इस पर निर्भर करेगी कि रोजगार ज़रूरत-आधारित, सतत और विकासोन्मुखी हों, जो न केवल व्यक्तियों बल्कि व्यापक अर्थव्यवस्था को भी लाभ पहुंचाएं। सरकार, उद्योग और युवाओं की साझेदारी, विवेक और उद्देश्य के मार्गदर्शन में, इस योजना को आत्मनिर्भर और विकसित भारत 2047 की यात्रा का आधारस्तंभ बना सकती है।
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