किस हिंदू राजा से खिलजी ने लूटा था .. 6000 गाड़ी सोना, 300 हाथी, 7000 घोड़े…? फटी रह गई थीं आंखें…

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,13 जनवरी।अलाउद्दीन खिलजी की क्रूरता के तमाम किस्से मशहूर हैं. उसने भारत में जैसी लूटपाट और कत्लेआम मचाया, वैसा किसी और ने नहीं किया. दिल्ली की सत्ता हासिल करने के बाद खिलजी ने अपने प्रेमी और वफादार किन्नर मलिक काफूर को दक्षिण फतह की जिम्मेदारी सौंपी. काफूर करीब 60000 की फौज लेकर काकतीय साम्राज्य पर हमला करने दक्षिण कूच किया और देवगिरी में अपना कैंप लगाया. इसी बीच वारंगल के राजा प्रतापरुद्र को मुस्लिम सेना के आने की सूचना मिल चुकी थी.

काकतीय साम्राज्य पर चढ़ाई
राजा प्रतापरुद्र एक बार खिलजी को धूल चटा चुके थे, लेकिन इस बार काफूर पूरी तैयारी के साथ आया था. प्रतापरुद्र ने अपनी पूरी सेना को फौरन इकट्ठा होने का आदेश दिया और उन्हें वारंगल किले के बाहरी हिस्से में ठहराया. इधर, काफूर ने पौष महीने के शुरुआती दिनों में वारंगल पर घेरा डाल दिया, लेकिन वारंगल किले की मजबूती और सुरक्षा देखते ही उसकी सेना का दिल डूबने लगा. कहीं कोई कमजोरी नहीं दिख रही थी.

बिजली की तरह टूट पड़े प्रतापरुद्र के सैनिक
खिलजी सेना को घेरा डाले 5 दिन हो गए. काफूर अपने सिपाहियों के साथ उस रात सोने गया. अचानक आधी रात को वारंगल के किले से करीब 1000 काल घोड़ों पर सवार सैनिक बिजली की गति से बाहर निकले और खिलजी की सेना में कत्लेआम मचा दिया. हजारों सैनिक मारे गए. राजा प्रतापरुद्र के सैनिक जितनी तेजी से आए थे, उतनी ही तेजी से वापस किले में लौट गए.

मलिक काफूर को वारंगल किले के बाहर घेरा डाले एक महीना बीत गया, लेकिन कहीं कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही थी. काफूर ने तय किया कि वह पहले वारंगल किले की बाहरी दीवार पर हमला करेगा और उसने बाहरी दीवार तोड़ने में सफलता भी हासिल कर ली. ऐसे में बाहरी दीवार के अंदर जितने लोग शरण लिए हुए थे सब अंदर के किले में पहुंच गए.

प्रतापरुद्र का धैर्य क्यों दे गया जवाब?
लेखक युगल जोशी, पेंगुइन से प्रकाशित अपनी किताब ”अग्निकाल: सल्तनतकालीन सिपहसालार मलिक काफूर की कहानी” में लिखते हैं कि नौबत यह आ गई की अंदरूनी किले में सरसो तक रखने की जगह नहीं बची. हां, खाने-पीने की चीजें और अनाज पर्याप्त मात्रा में था, लेकिन राजा को इतने सारे लोगों को संभालने, उनके खाने-पीने की व्यवस्था करना भारी पड़ने लगा. किले की क्षमता जवाब देने लगी, गंदगी का ढेर लग गया, हर दिन झगड़े होने लगे. इससे राजा प्रतापरुद्र का धैर्य जवाब गया.

राजा प्रतापरुद्र के सेनापति राणक देव और सलाहकार बार-बार उनसे कहते रहे कि हमें खिलजी की सेना पर हमले का आदेश दें, लेकिन इसी बीच महाराजा ने एक ऐसा कदम उठाए जिससे सब हिल गए. राजा प्रतापरुद्र ने अपने सेनापति राणक देव से कहा कि अब बहुत देर हो चुकी है. मैं अपने सैनिकों का व्यर्थ बलिदान नहीं करूंगा. हम सब लोग जीवित रहेंगे तो वैभव फिर लौट आएगा, पर जीवन दोबारा नहीं मिलेगा.

सोनार से बनवाई अपनी प्रतिमा और…
महाराजा ने अपने साम्राज्य के सबसे बड़े सोनार हरिदास को बुलाया और कहा मेरी एक सोने की प्रतिमा बनाओ. साथ ही सोने की एक कड़ी भी बनाना. जब राजपुरोहित ने राजा से पूछा कि क्या कोई पूजा करानी है, तो उन्होंने जवाब दिया नहीं… विधर्मियों को सबसे अधिक लालच सोने का ही होता है, इसलिये… राजा प्रतापरुद्र संधि का मन बना चुके थे.

हक्का-बक्का रह गया था खिलजी का गुलाम
आखिरकार तीन दिन बाद वारंगल किले का फाटक खुला. राजा, ने अपने करीबी सलाहकारों को मलिक काफूर के पास संधि का न्योता लेकर भेजा. उनके साथ राजा प्रतापरुद्र की सोने की प्रतिमा और उसके गले में सोने की भारी जंजीर भी थी. काफूर, सलाहकारों को देख हैरान रह गया और पूछा- महाराज हमें नजराने में और क्या देंगे? जवाब मिला 1000 सोने से लदे गधे, 10 राजसी हाथी जिसके हौदे सोने-चांदी से भरे होंगे और 1000 घोड़े.

मलिक काफूर को काकतीय वंश के वैभव का अंदाजा पहले से था. उसने हंसते हुए कहा कि आपके राजा ने हमारे सुल्तान की बस इतनी कीमत लगाई? संधि का न्योता लगभग ठुकराते हुए कहा कि अगर राजा प्रतापरुद्र हमसे संधि चाहते हैं तो वह खुद मिलने आएं. आखिरकार महाराजा प्रतापरुद्र, मलिक काफूर से मिलने पहुंचे.

इस्लामी आक्रांता की सबसे बड़ी लूट
राजा प्रतापरुद्र ने अपनी स्वर्ण प्रतिमा के अलावा 6000 सोने से लदे गधे, 300 स्वर्ण लदे हाथी और 7000 घोड़े मैत्री के रूप में देने का वादा किया. साथ ही समय-समय पर कर भी चुकाने की बात मान ली. युगल जोशी लिखते हैं कि काकतीय वंश के राजा प्रतापरुद्र ने खिलजी को जितना तोहफा दिया, वह उस वक्त इस्लामी तारीख में सबसे बड़ी लूट थी. हमलावर काफूर का मन इतने से नहीं भरा और उसने महाराज प्रतापरुद्र की पगड़ी में लगा कोहिनूर भी मांग लिया.

82 दिन में खजाना लेकर पहुंचा दिल्ली
19 मार्च 1310 को इतिहास की सबसे बड़े लूट लेकर मलिक काफूर दिल्ली रवाना हुआ और 82 दिनों की यात्रा के बाद दिल्ली पहुंचा. अलाउद्दीन खिलजी ने उसकी आगवानी में पूरी दिल्ली को दुल्हन की तरह सजवा दिया था और खुद काफूर की अगवानी की. उसी दिन उसको अपनी सेना का सर्वे-सर्वा घोषित कर दिया.

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