समग्र समाचार सेवा
गुवाहाटी,27 मार्च। गौहाटी विश्वविद्यालय (GU) भारत के उन आठ शैक्षणिक संस्थानों में शामिल हो गया है, जहां रैगिंग की घटनाएं सबसे अधिक दर्ज की गई हैं। यह खुलासा सोसाइटी अगेंस्ट वायलेंस इन एजुकेशन (SAVE) द्वारा प्रस्तुत “स्टेट ऑफ रैगिंग इन इंडिया 2022-24” रिपोर्ट में हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, 2022 से 2024 के बीच GU से 15 रैगिंग की शिकायतें दर्ज की गईं, जिसके चलते इसे उच्च जोखिम वाले संस्थानों की सूची में शामिल किया गया है।
हालांकि, कोलकाता स्थित मौलाना अबुल कलाम आज़ाद यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी इस सूची में सबसे बड़ा हॉटस्पॉट बनकर उभरा, जहां से 75 रैगिंग की शिकायतें दर्ज की गईं। यह अध्ययन राष्ट्रीय एंटी-रैगिंग हेल्पलाइन पर दर्ज 1,946 कॉलेजों से 3,156 शिकायतों के विश्लेषण पर आधारित है। रिपोर्ट में खासतौर पर मेडिकल संस्थानों में रैगिंग के बढ़ते मामलों पर चिंता जताई गई है, जो नए छात्रों के लिए गंभीर खतरा बनता जा रहा है।
GU के अलावा, मध्य प्रदेश मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी (जबलपुर) और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (वाराणसी) भी उच्च शिकायत दर वाले संस्थानों में शामिल हैं, जहां क्रमशः 75 और 42 मामले दर्ज हुए। इसी सूची में लखनऊ विश्वविद्यालय (40 शिकायतें), बेरहामपुर विश्वविद्यालय (31) और इलाहाबाद विश्वविद्यालय (21) भी शामिल हैं। कोलकाता का जादवपुर विश्वविद्यालय भी 16 शिकायतों के साथ रैगिंग की लगातार समस्या झेल रहा है।
रिपोर्ट में मेडिकल कॉलेजों में रैगिंग के खतरनाक स्तर को उजागर किया गया है। आंकड़ों के मुताबिक, भारत में कुल छात्र संख्या का केवल 1.1% मेडिकल कॉलेजों में पढ़ता है, लेकिन इन संस्थानों में रैगिंग की 38.6% शिकायतें, 35.4% गंभीर घटनाएं और 45.1% मौतें दर्ज की गईं। 2022 से 2024 के बीच 51 छात्रों की मौत रैगिंग के कारण हुई, जिनमें से अकेले 2024 में 20 मौतें दर्ज की गईं। यह आंकड़ा कोटा में छात्र आत्महत्याओं से भी अधिक है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि रैगिंग से जुड़ी भयावह घटनाएं अक्सर सार्वजनिक चर्चा से दूर रह जाती हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, लखनऊ विश्वविद्यालय, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और MKCG मेडिकल कॉलेज (ओडिशा) सबसे अधिक प्रभावित संस्थानों में शामिल हैं। इन संस्थानों में बार-बार रैगिंग की शिकायतें दर्ज की जाती हैं, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या एंटी-रैगिंग नियम प्रभावी तरीके से लागू किए जा रहे हैं? मेडिकल कॉलेजों में खासतौर पर हालात चिंताजनक हैं, जहां MKCG मेडिकल कॉलेज (ओडिशा), मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज (नई दिल्ली) और पं. जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल मेडिकल कॉलेज (रायपुर) रैगिंग शिकायतों के मामलों में शीर्ष स्थान पर हैं।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि कई प्रतिष्ठित संस्थान रैगिंग को रोकने में विफल रहे हैं, हालांकि एंटी-रैगिंग नियम और दिशानिर्देश पहले से ही मौजूद हैं।
रैगिंग की गंभीरता को देखते हुए, SAVE रिपोर्ट ने इसे रोकने के लिए कई महत्वपूर्ण सिफारिशें की हैं:
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राष्ट्रीय एंटी-रैगिंग हेल्पलाइन को गुमनाम शिकायतें स्वीकार करनी चाहिए, जिससे पीड़ित छात्रों को शिकायत दर्ज कराने में डर न लगे।
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सभी कॉलेजों में विशेष एंटी-रैगिंग स्क्वाड बनाए जाएं, जिनमें समर्पित सुरक्षा गार्ड हों, और उनके संपर्क नंबर नए छात्रों को उपलब्ध कराए जाएं।
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छात्रावासों में CCTV निगरानी अनिवार्य की जाए, जिसकी निगरानी सुरक्षा कर्मियों, एंटी-रैगिंग समितियों और माता-पिता द्वारा की जाए।
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नए छात्रों के लिए अलग छात्रावास की व्यवस्था हो, जैसा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) और राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) के नियमों में प्रावधान है।
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रैगिंग की गंभीर घटनाओं पर 24 घंटे के भीतर पुलिस शिकायत दर्ज कराई जाए।
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स्वास्थ्य मंत्रालय को सभी मेडिकल कॉलेजों के एंटी-रैगिंग समिति प्रमुखों के साथ वार्षिक सम्मेलन आयोजित करने चाहिए।
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फ्रेशर्स के माता-पिता को वरिष्ठ छात्रों के माता-पिता से संपर्क की सुविधा दी जाए, ताकि पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित हो सके।
भारत के शिक्षण संस्थानों में रैगिंग की निरंतरता दर्शाती है कि मौजूदा कानूनों के प्रभावी क्रियान्वयन की सख्त जरूरत है। लगातार हो रही मौतों और उत्पीड़न की घटनाओं पर मीडिया और समाज में चर्चा की कमी भी एक बड़ी समस्या है।
“स्टेट ऑफ रैगिंग इन इंडिया 2022-24” रिपोर्ट के निष्कर्ष शिक्षण संस्थानों, प्रशासन और सरकार के लिए एक चेतावनी हैं कि इस गंभीर मुद्दे पर तुरंत ध्यान दिया जाए। यह समय सख्त नियम लागू करने और शिक्षण संस्थानों को जिम्मेदार ठहराने का है, ताकि छात्रों को सुरक्षित माहौल मिल सके और इस गंभीर समस्या का स्थायी समाधान निकाला जा सके।
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