गाजा शांति शिखर सम्मेलन: शशि थरूर ने मोदी की अनुपस्थिति पर उठाए सवाल

समग्र समाचार सेवा

नई दिल्ली, 14 अक्टूबर: कांग्रेस के सांसद शशि थरूर ने सोमवार को मिस्र में आयोजित गाजा शांति शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अनुपस्थिति पर गंभीर सवाल उठाए। थरूर ने कहा कि भारत का निचले स्तर पर प्रतिनिधित्व इस महत्वपूर्ण वैश्विक मंच पर एक अवसर चूकने के समान है।

यह शिखर सम्मेलन लाल सागर के किनारे स्थित शर्म अल-शेख में हो रहा है, जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप समेत कई प्रमुख वैश्विक नेता मौजूद हैं। इस सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह कर रहे हैं। जानकारी के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी को इस सम्मेलन में आमंत्रित किया गया था, लेकिन नई दिल्ली ने सिंह को भेजने का निर्णय लिया।

थरूर की टिप्पणी और कूटनीतिक चिंता:

थरूर ने कहा, “भारत की उपस्थिति राज्य मंत्री स्तर पर, अन्य राष्ट्राध्यक्षों के मुकाबले, एक रणनीतिक चूक के रूप में देखी जा सकती है। यह भारत की कूटनीति और वैश्विक प्रभाव को प्रभावित कर सकता है। मेरी चिंता केवल प्रतिनिधि की योग्यता के बारे में नहीं है, बल्कि यह चयन की नीति पर है।”

उन्होंने चेतावनी दी कि निचले स्तर की भागीदारी से भारत की आवाज़ का महत्व कम हो सकता है, खासकर जब क्षेत्र में पुनर्निर्माण, स्थिरता और मानवीय संकट जैसे मुद्दे उठाए जा रहे हैं।

गाजा में संघर्ष और मानवीय संकट:

यह शिखर सम्मेलन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की गाजा शांति योजना के पहले चरण के लागू होने के तुरंत बाद हो रहा है। इस योजना के तहत संघर्ष प्रभावित क्षेत्र में अस्थायी युद्धविराम स्थापित किया गया था। यह युद्धविराम 7 अक्टूबर 2023 को हमास द्वारा इज़राइली शहरों पर हमलों के बाद शुरू हुआ, जिसमें लगभग 1,200 लोग मारे गए और 251 बंधक बनाए गए।

गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, संघर्ष के दौरान इज़राइली सैन्य अभियानों में 66,000 से अधिक फिलिस्तीनी मारे गए हैं। क्षेत्र में भोजन और चिकित्सा आपूर्ति की कमी के कारण गंभीर मानवीय संकट उत्पन्न हो गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने हाल ही में चेतावनी दी है कि गाजा में कुपोषण की दर “खतरनाक स्तर” पर पहुँच गई है।

विशेषज्ञों का कहना है कि इस सम्मेलन में उच्च स्तरीय भागीदारी न केवल भारत की वैश्विक छवि को मजबूत करती, बल्कि गाजा और मध्य पूर्व में शांति प्रयासों में भारत की भूमिका को भी सशक्त बनाती। थरूर की टिप्पणी इस बात की ओर इशारा करती है कि भारत को वैश्विक मंचों पर अपने कूटनीतिक निर्णयों में सतर्कता बरतनी होगी।

 

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