वैश्विक उत्सव “ क्रिसमस” या वैश्विक आपदा आमंत्रण

जिया मंजरी
जिया मंजरी

जिया मंजरी।

पूरे विश्व में आज क्रिसमस का त्यौहार मनाया जा रहा है। पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में आकर भारत में भी इस विदेशी पंथ के त्यौहार को हिन्दुओं द्वारा बड़ी संख्या में मनाया जाता है। आमतौर पर हिन्दू परिवारों में छोटे-छोटे बच्चों को संता की पोशाक पहनाकर उसका प्रदर्शन आम हो चला है वहीं युवक-युवतियों में इस दिन बार-पब में शराब पार्टी का सेवन किया जाता है। बड़े शहरों की बात तो छोड़िये, अब छोटे नगर व् बड़े ग्राम भी इस कुप्रथा से वंचित नहीं हैं। वैसे तो ईसाईयों का यह त्यौहार अहिंसक है। किन्तु आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यह प्रकृति का कितना ह्रास कर रहा है। प्रदूषण बढ़ाने में क्रिसमस का अहम् योगदान है। ब्रिटेन की एक रिपोर्ट के अनुसार, क्रिसमस पर हर वर्ष लगभग तीन मिलियन टन का सामान्य कचरा जमा होता है जो न केवल पृथ्वी पर बोझ है बल्कि पर्यावरण के लिए भी हानिकारक है। वहीं बचे हुए भोजन की मात्रा एक बिलियन रुपये मूल्य से अधिक की होती है जिसका अनुपात लगभग दो लाख तीस हजार टन होता है जिसे जाहिर है यहाँ-वहां ही फेंका जाता है। 80,000 टन के कपड़े, एक बिलियन क्रिसमस कार्ड्स, 700 मिलियन के गैर-जरूरी उपहार, एक लाख पच्चीस हजार टन का प्लास्टिक कचरा, 750 मिलियन बोटल्स, 500 मिलियन केन्स, 4,200 टन एलुमिनियम फॉयल इत्यादि कचरा यदि एक दिन के त्यौहार से जमा हो रहा है तो आप समझ सकते हैं कि एक समूह किस हद तक पृथ्वी का बोझ बनता जा रहा है? वेस्ट मैनेजमेंट कंपनी बिफा के एक अध्ययन के अनुसार, हर क्रिसमस पर ब्रिटेन में पैदा होने वाले कचरे की मात्रा 30 फीसद बढ़ जाती है। इसमें अनुमानित 3,65,000 किलोमीटर का अप्राप्य रैपिंग पेपर शामिल है जो भूमध्य रेखा के चारों ओर नौ बार लपेटने के लिए पर्याप्त है।

इस त्यौहार से जुड़ी एक बात इसे पर्यावरण के और अधिक घातक बनाती है। क्रिसमस ट्री और क्रिसमस कार्ड्स के नाम पर पूरी दुनिया में 8 मिलियन से अधिक पेड़ों को हर साल काटा जाता है। अब जरा सोचिये, ऐसे समय में जबकि दुनिया ग्लोबल वार्मिंग की चपेट में हैं और इसका तापमान हर साल बढ़ता ही जा रहा है; इतनी बड़ी संख्या में पेड़ों को काटना क्या अमानवीय कृत्य नहीं है? यह पूरी मानव जाति के स्वास्थ्य से खिलवाड़ नहीं है?
पूरे विश्व में एक क्रिसमस के दिन इसे मनाने वाले इतना भोजन खा लेते हैं जितना वे साल भर भी नहीं खाते। उपभोगवादी संस्कृति का पर्याय क्रिसमस कार्बन उत्सर्जन का भी मुख्य स्रोत बनता जा रहा है। प्लास्टिक वेस्ट के मामले में तो इस त्यौहार ने सभी पूर्व उदाहरण पीछे छोड़ दिए हैं। बच्चों के खिलौनों से लेकर इस विशेष दिन पहने जाने वाले वस्त्रों में भी प्लास्टिक का उपयोग हो रहा है। यहाँ तक कि बच्चों के खिलौनों में जहरीले प्लास्टिक को भी पाया गया है। प्लास्टिक का अधिकाँश माल चीन से आयातित होता है तो उसकी गुणवत्ता पर तो ऐसे ही प्रश्नचिन्ह लग जाता है। 2017 में यूरोपीय संघ ने लगभग 7.4 बिलियन यूरो के खिलौनों का आयात किया जबकि केवल 1.4 बिलियन यूरो का निर्यात किया। यूरोस्टेट के अनुसार इनमें से 86 प्रतिशत खिलौने चीन से आए थे जिसमें एक बड़ी संख्या में खतरनाक रासायनिक पदार्थ पाये गए थे।

वहीं असली और नकली क्रिसमस ट्री की बड़ी बहस के बीच यह बात भी सामने आती हैं कि दोनों ही प्रकार पर्यावरण को बड़ी मात्रा में हानि पहुंचा रहे हैं। नकली क्रिसमस ट्री को नष्ट करने से कार्बन उत्सर्जन चरम पर होता है (इसमें मौजूद खतरनाक रासायनिक पदार्थों के कारण) जो पूरे साल किये गए पर्यावरण शुद्धि के प्रयासों पर पानी फेर देता है। जबकि असली क्रिसमस ट्री से बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई को बढ़ावा मिलता है जो जीवनरक्षक ऑक्सीजन की कमी करता है। इसके अलावा क्रिसमस पर मांसाहार को बढ़ावा मिलता है जो जैव विविधता में बड़ा अंतर पैदा करता है। उदाहरण के लिए, एक किलोग्राम बीफ या भेड़ के बच्चे का प्रोटीन 643 किलोग्राम से 749 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड उत्पन्न कर सकता है। इसे ऐसे समझें जैसे कोई यात्री लंदन से न्यूयॉर्क जाते समय जितनी कार्बन उत्सर्जन करता है उतना ही एक किलोग्राम मांस से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन होता है। मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन में पाया गया कि एक औसत टर्की क्रिसमस डिनर में कार्बन फुटप्रिंट 20 किलोग्राम CO2 होता है। कुल मिलाकर ईसाईयों का पर्व क्रिसमस पृथ्वी को कचरे के ढेर में तब्दील कर रहा है और तमाम वैश्विक चेतावनियों से बाद भी यह समूह इस बात को समझना ही नहीं चाहता। ताज्जुब तो इस बात से होता है कि वर्तमान परिवेश में कई हिन्दू परिवार भी इस विदेशी त्यौहार को मनाना अपनी दिनचर्या समझते हैं। बदलती और दिन पर दिन काली होती जा रही दुनिया की स्थिति को देखते हुये यह सामूहिक जवाबदेही बनती है कि क्रिसमस के इस स्याह पक्ष पर चर्चा हो और जरूरत पड़े तो इसके खिलाफ कड़े वैश्विक कानून बनें ताकि हमारी सुन्दर दुनिया सुन्दर बनी रहे।

(जिया मंजरी, स्वतंत्र स्तम्भकार एवं समाजसेवी)

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