डॉ गोपालदासनीरज’ जी की पुण्यतिथि: ‘पद्मश्री’ व ‘पद्मभूषण’ से दो बार सम्मानित मशहूर हिंदी साहित्यकार को नमन..
आर के सिन्हा।
‘पद्मश्री’ व ‘पद्मभूषण’ से दो बार सम्मानित मशहूर हिंदी साहित्यकार यशकाय शेष गीत सम्राट डॉ गोपालदासनीरज’ जी की पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ ! गोपालदास सक्सेना ‘नीरज’ का जन्म 4 जनवरी 1925 को उ.प्र. के इटावा जिले के ब्लॉक महेवा के निकट पुरावली गाँव में बाबू ब्रजकिशोर सक्सेना के यहाँ हुआ था।
उन्होंने 1942 में एटा से हाई स्कूल परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की, टाइपिस्ट की नौकरी करने के साथ ही वर्ष 1949 में इण्टरमीडिएट, 1951 में स्नातक और 1953 में प्रथम श्रेणी में हिन्दी साहित्य से स्नातकोत्तर किया।
मेरठ कॉलेज ,मेरठ में हिन्दी प्रवक्ता के पद पर भी उन्होंने कुछ समय तक अध्यापन कार्य भी किया। बाद वे अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में हिन्दी विभाग के प्राध्यापक नियुक्त हुए। कवि सम्मेलनों में अपार लोकप्रियता के कारण उन्हें फिल्म जगत ने गीतकार के रूप में “#नईउमरकीनईफसल “ के गीत लिखने का निमन्त्रण दिया गया जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। “कारवाँ गुज़र गया ग़ुबार देखते रहे” जैसी कालजयी गीत के रचयिता पद्मभूषण गोपालदास नीरज को प्राकृतवादी गीतों का रचयिता माना जाता रहा है। लेकिन जितना नीरज को मैंने जाना और पचासों कवि सम्मेलनों में सुना, उनके साथ सैकड़ों शामें गुज़ारीं, मैं तो उन्हें “सौन्दर्य और आध्यात्म” का अद्भुत गीतकार और शायर ही कहूँगा।
एक ओर तो उन्होंने लिखा कि “आज भी जिसके लिए होती हैं पागल कलियाँ, कुछ तो बात है, “नीरज” के गुनगुनाने में” या फिर शोख़ियों में घोला जाये, थोड़ा सा शबाब, उसमें फिर मिलाई जाये थोड़ी सी शराब, होगा नशा जो तैयार वो प्यार है”, वहीं नीरज ने यह भी लिखा कि “ऐसा भी मज़हब कोई चलाया जाये, जिसमें इन्सान को इन्सान बनाया जाए। आज बहती है यहाँ गंगा में भी, झेलम में भी, कोई तो बतालाये, कि कहाँ जाके नहाया जाए।”
दादा जब भी दिल्ली आते या अलीगढ़ वापस लौटते, मेरे नोएडा घर पर कुछ देर जरूर रुकते।
कभी देर हो जाती तो रात को वहीं सो भी जाते। वर्ष 2018 में 4 जनवरी को जब मैं उनके जनकपुरी, अलीगढ़ आवास पर जन्मदिन की बधाई देने गया तो कहा, “दादा, आप सड़क मार्ग से दौरे कम किया करो, बहुत थकान होती है। अभी आपकी शताब्दी मनानी है।” हमलोग भोजन की टेबल पर बैठे थे, वे ठठाकर हंस पड़े। मैनें कहा, “हँसें क्यों? “उन्होंने कहा, “तुम्हारी बात पर हँसी आ गई। यह मेरे बस में है या तुम्हारे बस में?” तब मुझे अचानक याद आया कि दादा तो स्वयं एक महान ज्योतिषी भी हैं।
उनकी गणना इतनी मज़बूत थी कि कभी ग़लत नहीं हुई। उन्होंने अनेक दोहे भी लिखे हैं। उनका एक दोहा है,”तन से भारी साँस है, इसे समझ लो ख़ूब।
मुर्दा जल में तैरता, ज़िन्दा जाता डूब।” वे बराबर एक शेर पढ़ा करते थे,”जो कुछ भी लुटा रहे हो तुम यहाँ, वही तो तुम्हारे साथ जायेगा। जो कुछ भी छुपाकर रखा है, तिजोरी में, वह तो किसी काम नहीं आयेगा।” या फिर उनका यह मशहूर शेर, “आख़िरी सफ़र के इंतज़ाम के लिए, जेब भी कफ़न में एक लगानी चाहिए।” मैंने पूछा, “दादा, ये कफ़न में जेब क्या है? कफ़न तो सिला नहीं जाता।”
दादा, बीड़ी पी रहे थे। हँसकर बोले, “सिन्हा, जो कुछ भी ग़रीबों के लिए अच्छा कर रहे हो, वही तुम्हारे कफ़न का जेब है।” इसपर उनका एक और शेर याद आ गया,”गर तूने कभी किसी के ऑंसू पोंछें होंगें, यक़ीनन उस वक़्त तू खुदा के क़रीब होगा।” बातें तो बहुत हैं ! दशकों का साथ, चंद मिनटों में कैसे समेटा जाए।
दादा कहते थे, “जितना कम सामान रहेगा, सफ़र उतना आसान रहेगा, जितनी भारी होगी गठरी, मुश्किल में इंसान रहेगा।” सावन में नीरज दादा की गुनगुनाहट कानों में यूँ ही गूँजती रही है, “अबके इस सावन में शरारत ये मेरे साथ हुई, मेरा घर छोड़के सारे शहर में बरसात हुई।” फ़िराक़, फ़ैज़, बच्चन, निराला, महादेवी, पंत, दिनकर और नेपाली जैसी महान हस्तियों के साथ, उनके सामने भी जब भी नीरज दादा ने तरन्नुम से गाया तो सभी फीके पड़ गये। बाद में तो यह परिपाटी सी बन गई कि कवि सम्मेलनों में नीरज सबसे अंत में बुलाये जायेंगे।
कारण स्पष्ट था। इस शताब्दी के महान संत कवि को आज उनकी पुण्यतिथि पर सादर नमन एवं भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ !
~ आर के सिन्हा (जन सेवक, वरिष्ठ पत्रकार/स्तम्भकार, संस्थापक सदस्य भाजपा ,पुवॅ सांसद)
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