राज्यपाल आरिफ खान का बयान सेक्युलरिज्म संविधान में क्यों जरूरी

समग्र समाचार सेवा
पटना,11 जुलाई: बिहार में एक खास वैचारिक मंच पर राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने संविधान में दर्ज सेक्युलरिज्म शब्द को लेकर अपनी बेबाक राय रखी। उन्होंने साफ कहा कि सेक्युलरिज्म कोई बाहरी विचारधारा नहीं है, बल्कि यह भारत की हजारों साल पुरानी संस्कृति में पहले से ही मौजूद है। उन्होंने कहा कि इसे संविधान से हटाने या जोड़ने से ज्यादा जरूरी है इसे सही संदर्भ में समझना।

नेहरू के विचार का हवाला

आरिफ मोहम्मद खान ने अपने संबोधन में पंडित जवाहरलाल नेहरू के 1962 के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि नेहरू ने खुद कहा था कि भारत ने सेक्युलरिज्म को बाहर से नहीं लिया बल्कि यहां की सोच शुरू से ही ऐसी रही है। राज्यपाल ने कहा कि हमारे समाज में धर्म का मतलब रिलीजन नहीं बल्कि जीवन पद्धति और कर्तव्यों से जुड़ा है

समाजवाद शब्द हटाने पर जवाब

संविधान से समाजवाद शब्द हटाने की मांग पर भी राज्यपाल ने अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि हजारों साल पुरानी सभ्यता वाले लोग किसी बाहर के शब्द को अपनाकर अपनी समस्या का समाधान नहीं मानते। उन्होंने कहा कि पश्चिमी देशों में चर्च और स्टेट को अलग करने की सोच से सेक्युलरिज्म की थ्योरी निकली, लेकिन भारत में कभी यह संकट था ही नहीं। यहां धर्म को लेकर आजादी और सहिष्णुता पहले से ही संस्कृति का हिस्सा रही है

धर्म और पंथ में फर्क

आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि भारत में धर्म को हमेशा पंथ के रूप में देखा गया है। यहां हर व्यक्ति को अपनी आस्था के अनुसार जीने की आजादी मिली है। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति में ब्रह्मचारी आश्रम और गृहस्थ आश्रम जैसे रास्ते हैं, जहां धर्म का मतलब केवल पूजा-पाठ नहीं बल्कि जीवन के हर पहलू से जुड़ा है।

राज्यपाल ने कहा कि पश्चिम में धर्म को मोक्ष पाने का जरिया माना गया, जबकि भारत में पंथ के जरिए हर किसी को रास्ता चुनने की आजादी दी गई है। इसलिए सेक्युलरिज्म कोई इंपोर्टेड थ्योरी नहीं है, बल्कि भारतीय समाज की आत्मा में रचा-बसा विचार है।

 

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