राष्ट्रकवि स्वर्गीय रामधारी सिंह दिनकर की 115वीं जयंती के अवसर पर आयोजित अंतराष्ट्रीय सम्मेलन में राज्यपाल मणिपुर ने लिया हिस्सा

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 24सितंबर। भारत में हिन्दी जन-जन की भाषा है, हिन्दी विश्व की ऐसी अदभुद भाषा है जिसमें संवाद करने से लोगों के मन में आत्मीयता, सम्मान और सहजता का बोध होता है। बड़े, छोटे, समान आयु वालों के लिये अलग अलग संबोधन होता है जबकि अन्य भाषाओं में ऐसा बोध नहीं होता है।

उक्ताशय के विचार 20 सितम्बर 2023 को माननीय अनुसुईया उइके राज्यपाल मणिपुर द्वारा विज्ञान भवन नई दिल्ली में विश्व हिन्दी परिषद द्वारा राष्ट्रकवि स्वर्गीय रामधारी सिंह दिनकर की 115वीं जयंती के अवसर पर आयोजित अंतराष्ट्रीय सम्मेलन में मुख्य अतिथि की आसंदी से व्यक्त किये।

इस कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. स्वामी चिदानंद जी महाराज, परमार्थ निकेतन-ऋषिकेश ने की एवं सुधीर चौधरी वरिष्ठ पत्रकार आज तक, प्रो. सच्चिदानंद मिश्र, कुलपति, अजय सिंह पूर्व सांसद, विनय भारद्वाज एवं डॉ. बिपिन कुमार महासचिव विश्व हिन्दी परिषद, अरविन्द कुमार सिंह, पौत्र रामधारीसिंह जी दिनकर एवं बड़ी संख्या में हिन्दी के विद्वान, कवि, साहित्यकार जिसमें लंदन, मारीसस एवं देश के सभी प्रदेशों के गणमान्य व्यक्ति उपस्थि थे।

कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्जवलन एवं रामधारीसिंह दिनकर जी के छायाचित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर की गई। सम्मेलन को स्वामी चिदानंद जी, सुधीर चौधरी, अजय सिंह, अरविंद सिंह ने भी संबोधित किया।

राज्यपाल अनुसुईया उइके ने हिन्दी और हिन्दी साहित्य के विद्वानजनों को सम्मानित किया। साथ ही सेल एवं अन्य प्रतिष्ठानों जिन्होंने राजभाषा में अपने अपने संस्थानों में उत्कृष्ट सराहनीय कार्य किया है उन्हें भी सम्मानित किया गया।

राज्यपाल ने अपने संबोधन में विश्व हिन्दी परिषद के कार्यो का उल्लेख करते हुए परिषद के कार्यो की सराहना की। उन्होने आगे कहा कि दिनकर हिन्दी साहित्य के प्रमुख रचनाकारों में से एक थे। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से भारतीय समाज, संस्कृति, और दर्शन को एक स्वरूप दिया। यही कारण है कि हम उन्हें ‘राष्ट्रकवि’ की संज्ञा देते हैं।

राज्यपाल उइके द्वारा दिनकर जी का जीवन परिचय, उनकी साहित्यिक यात्रा, उन्हें प्राप्त पुरूस्कारों, उनकी रचनाओं का उल्लेख करते हुए उनके द्वारा हिन्दी साहित्य और समाज के जागरण के लिये किये गये कार्यो का स्मरण किया। राज्यपाल ने कहा कि हरिवंश राय बच्चन ने तत्कालीन समय में दिनकर जी को ज्ञानपीठ पुरूस्कार मिलने पर कहा था कि “दिनकर जी को एक नहीं, बल्कि गद्य, पद्य, भाषा और हिन्दी-सेवा के लिये अलग-अलग चार ज्ञानपीठ पुरस्कार दिये जाने चाहिये।”हिन्दी के प्रसिद्ध कवि व क्रान्ति-गीतों के अमर गायक रामधारी सिंह हिन्दी-साहित्य आकाश के दीप्तिमान् ‘दिनकर’ हैं। इन्होंने अपनी प्रतिभा की प्रखर किरणों से हिन्दी-साहित्य-गगन को आलोकित किया है।

राज्यपाल ने कहा कि हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के प्रयासों से अब हिन्दी संयुक्त राष्ट्रसंघ की भाषा बन गई है। आज के कम्प्यूटर के युग में अब कम्प्यूटर पर, बेबसाईटों में हिन्दी में सामग्री उपलब्ध हैं। भारत सरकार के मंत्रालयों में हिन्दी में पत्राचार हो रहा है। वहीं आज संसद में भी अधिकांश सांसद मंत्री हिन्दी में भाषण देते हुए देखे जा सकते हैं। हमारे प्रधानमंत्री जी विदेशों में भी बड़े-बडे़ मंचों पर हिन्दी में संबोधित कर इसे विश्वव्यापी बनाने का अथक प्रयास कर रहे हैं।

हिन्दी भाषा के संबंध में उन्होंने अपने विदेश यात्रा के अनुभव बताए एवं महिला आयोग में गरीब कम शिक्षित महिलाओं को जागरूक करने के लिये तत्कालीन समय में सारा लिटरेचर अंग्रेजी में उपलब्ध होने से होने वाली परेशानी से अवगत कराते हुए कहा कि मैंने सारा लिटरेचर कम शिक्षित महिलाओं के लिये उन्हें हिन्दी एवं उनकी स्थानीय भाषा में उपलब्ध कराने का प्रयास किया था।

अंत में मैं यही कहना चाहूंगी कि दिनकर जी के भाषणों और काव्यों में हमें एक सशक्त और समर्पित भारत के प्रति अपनी जिम्मेदारियों के आदान-प्रदान की प्रेरणा मिलती है। उनके जीवन और कृतियों का अध्ययन कर हम निश्चित रूप से एक बेहतर भविष्य की ओर अपने कदम बढ़ा सकते हैं। इसी कडी में उन्होंने अपने भाषण की शुरूआत मणिपुर की भाषा में किये जाने वाले प्रणाम शब्द थगतचरी से की तो सभागृह करतल ध्वनि से गूंज उठा। साथ ही उन्होंने मणिपुर की शांति और सदभाव के लिये प्रार्थना करने का अनुरोध किया।

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