समग्र समाचार सेवा
भोपाल, 11 जुलाई: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के कोलार इलाके में एक ज़मीन को लेकर शुरू हुआ विवाद अब गंभीर मोड़ ले चुका है। जहां एक ओर मुस्लिम समुदाय इसे वक़्फ़ संपत्ति के तहत क़ब्रिस्तान बता रहा है, वहीं दूसरी तरफ़ बीजेपी विधायक रामेश्वर शर्मा की मौजूदगी में यहां गोशाला निर्माण का भूमि पूजन कराए जाने से मामला और गरमा गया है। अब प्रशासन ने इस विवाद पर रोक लगाकर जांच समिति बना दी है, लेकिन जवाब आसान नहीं हैं।
मोहम्मद हनीफ़ ने बताई पूरी कहानी
कोलार क़ब्रिस्तान समिति के अध्यक्ष मोहम्मद हनीफ़ कहते हैं कि यह विवाद कोई नया नहीं है बल्कि करीब एक दशक पुराना है। उनका दावा है कि सरकारी रिकॉर्ड में यह जगह अकबरपुर क़ब्रिस्तान के नाम से दर्ज है। 2011 तक यहां अंतिम संस्कार होते रहे, लेकिन जब से इस पर बाउंड्री वॉल बनाने की कोशिश हुई, मामला फंसता चला गया। हनीफ़ के मुताबिक वक़्फ़ बोर्ड ने यह ज़मीन किराए पर दी थी, लेकिन बाद में वह किरायेदारी रद्द कर दी गई थी।
एसडीएम बोले जांच से होगा फैसला
कोलार के एसडीएम आदित्य जैन ने बताया कि फिलहाल इस ज़मीन पर किसी भी तरह का निर्माण कार्य रोक दिया गया है। प्रशासन ने राजस्व रिकॉर्ड और वक़्फ़ दस्तावेज़ों की जांच के लिए समिति बनाई है। एसडीएम के मुताबिक वक़्फ़ को भी अपना पक्ष समिति के सामने रखना होगा। हालांकि मुस्लिम पक्ष का आरोप है कि वक़्फ़ प्रतिनिधि को जांच में जगह नहीं दी गई है।
गोशाला समर्थकों की दलील
वहीं गोशाला निर्माण की पहल करने वाले अश्विनी श्रीवास्तव ने सफाई दी कि यह गोशाला सिर्फ चैरिटी के मकसद से बनाई जा रही थी। उन्होंने माना कि भूमि पूजन करवाना उनकी भूल थी और अब अगर सरकार मंजूरी देगी तभी निर्माण होगा। अश्विनी का दावा है कि पहले यह जगह श्मशान थी, जिसे बाद में नवाबी दौर में क़ब्रिस्तान बना दिया गया
इलाके में दबी जुबान से कबूल
विवादित ज़मीन के आसपास रहने वाले लोग भी दबे स्वर में मानते हैं कि यहां पहले क़ब्रिस्तान था। कई परिवार बताते हैं कि उनके पूर्वजों को यहां दफनाया गया। 75 साल के सत्तार ख़ान कहते हैं कि उनका पूरा परिवार इसी क़ब्रिस्तान में दफन है, लेकिन अब उनकी जगह भी विवादों में है।
राजनीतिक बवाल की आहट
फिलहाल मामला ज्यादा सियासी तूल नहीं पकड़ सका है लेकिन इलाके के लोग मानते हैं कि अगर प्रशासन ने जल्द समाधान नहीं निकाला तो यह मुद्दा चुनावी रंग भी पकड़ सकता है। सवाल यह है कि क्या वाकई सरकारी कागज़ क़ब्रिस्तान को बचा पाएंगे या किसी नई इमारत में बदल जाएंगे।
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