भारत के लिए जीएसटी सुधार :नीडो-खुशी हेतु नीडोनॉमिक्स पथ

-न्याय, सरलता और समावेशिता का कर मार्ग

प्रो. मदन मोहन गोयल, नीडोनॉमिक्स के प्रवर्तक एवं पूर्व कुलपति

भारतीय अर्थव्यवस्था पिछले एक दशक में महत्वपूर्ण परिवर्तन से गुज़री है। इनमें सबसे उल्लेखनीय सुधार वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का 1 जुलाई 2017 को क्रियान्वयन था, जिसने वैट, उत्पाद शुल्क और सेवा कर जैसी अनेक अप्रत्यक्ष कर व्यवस्थाओं को प्रतिस्थापित किया। 1 जुलाई को जीएसटी दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसका वादा था—एक समान कर प्रणाली, अधिक पारदर्शिता और व्यापार में सुगमता। लेकिन व्यवहार में यह व्यवस्था कई चुनौतियों से घिरी रही।

नीडोनॉमिक्स स्कूल ऑफ थॉट ( एनएसटी) के दृष्टिकोण से जीएसटी सुधार केवल वांछनीय ही नहीं, बल्कि आवश्यक हैं ताकि कर प्रणाली में न्याय, सरलता और सभी हितधारकों—विशेषकर मध्यम वर्ग—का कल्याण सुनिश्चित हो सके।

वर्तमान संदर्भ में जीएसटी सुधार

वित्त वर्ष 2025–26 के लिए प्रस्तावित जीएसटी ओवरहॉल विशेष महत्व रखता है। इसका उद्देश्य कर दरों को सरल बनाना, जटिलताओं को घटाना और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना है। आर्थिक आकलनों के अनुसार, सुव्यवस्थित जीएसटी सुधार भारत की जीडीपी वृद्धि में 0.6 प्रतिशत अंक तक की बढ़ोतरी कर सकते हैं। यह बढ़ोतरी वैश्विक व्यापार में अस्थिरताओं, विशेषकर टैरिफ टेररिज़्म ऑफ ट्रम्प (टीटीटी) जैसी चुनौतियों के प्रभाव को भी संतुलित कर सकती है।

यह उपलब्धि केवल आँकड़ों का मामला नहीं है, बल्कि इसका गहरा संबंध नीडो-कंज़म्प्शन (ज़रूरत-आधारित उपभोग) से है, खासकर भारत के विशाल मध्यम वर्ग के लिए।

जीएसटी और नीडोनॉमिक्स

नीडोनॉमिक्स इस बात पर बल देता है कि अर्थव्यवस्था को आवश्यकताओं के साथ संरेखित होना चाहिए, जिसमें वितरण में न्याय और उत्पादन में दक्षता सुनिश्चित हो। इस दृष्टि से जीएसटी को केवल राजस्व संग्रह का साधन नहीं, बल्कि ज़रूरत-आधारित कराधान का औज़ार माना जाना चाहिए, ताकि आवश्यक वस्तुएँ सस्ती हों और विलासिता पर उचित कर बोझ पड़े।

शुरुआत में जीएसटी को “वन नेशन, वन टैक्स” के रूप में प्रस्तुत किया गया था। सैद्धांतिक रूप से यह सरल, पूर्वानुमानित और न्यायपूर्ण होना चाहिए था। पर व्यवहार में यह बहु-दर संरचना (5%, 12%, 18%, 28%) में बदल गया, जिससे मूल सरलता और न्याय प्रभावित हुआ।

वर्तमान जीएसटी संरचना की खामियाँ

  1. ज़रूरी और विलासिता वस्तुओं का मनमाना वर्गीकरण

सीमेंट और नए टायरों को 28% कर दर में रखना उन्हें ‘विलासिता’ बताता है, जबकि सीमेंट आवास का आधार है और टायर परिवहन की अनिवार्यता। यह नीतियाँ सामाजिक तर्क से अधिक राजस्व दबाव पर आधारित हैं।

  1. राजस्व अधिकतमकरण बनाम कल्याण अधिकतमकरण

आज की जीएसटी व्यवस्था राजस्व अधिकतमकरण पर टिकी है। “हंस को निचोड़ना पर मारना नहीं” वाली कहावत लागू होती है। लेकिन नीडोनॉमिक्स बताता है कि कराधान केवल हंस को ज़िंदा रखने तक सीमित न हो, बल्कि उसे खुश रखना भी ज़रूरी है।

  1. मध्यम वर्ग पर बोझ

गरीब वर्ग सीमित उपभोग करता है, इसलिए उस पर सीधा प्रभाव कम है। सबसे अधिक असर मध्यम वर्ग पर पड़ता है, जो व्यापक उपभोग करता है। यही वह वर्ग है जहाँ नीडो-कंज़म्प्शन का सिद्धांत सबसे महत्वपूर्ण है।

सुधार की आवश्यकता :  एनएसटी का नुस्ख़ा

प्रस्तावित सुधार 12% और 28% की दरें हटाकर अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं को केवल दो वर्गों में बाँटने की बात करते हैं—5% (आवश्यक) और 18% (विलासिता)।

  1. 12% और 28% स्लैब की समाप्ति

इससे वर्गीकरण की भ्रमित स्थिति दूर होगी और अनावश्यक भार कम होगा।

  1. दोस्तरीय संरचना
    • 5% आवश्यक वस्तुओं पर (जैसे साबुन, डिटर्जेंट, खाद्य सामग्री, स्वास्थ्य उत्पाद)
    • 18% विलासिता वस्तुओं पर (जिन्हें अधिक भुगतान क्षमता वाले लोग उपयोग करते हैं)
  2. अनुपालन और सरलता को प्रोत्साहन

दो-दर प्रणाली से मुक़दमेबाज़ी, विवाद और अनुपालन लागत कम होगी। यह NST के उस दृष्टिकोण से मेल खाता है जो आर्थिक जीवन में घर्षण कम करने पर बल देता है।

आर्थिक और सामाजिक लाभ

  1. जीडीपी वृद्धि में योगदान

सस्ती आवश्यकताएँ उपभोग माँग बढ़ाएँगी, जिससे उत्पादन, निवेश और रोज़गार को बढ़ावा मिलेगा।

  1. सामाजिक न्याय को बढ़ावा

विलासिता पर अधिक और आवश्यकताओं पर कम कर लगाना कर प्रणाली को न्यायपूर्ण बनाएगा।

  1. मध्यम वर्ग की सशक्तिकरण

उपभोग टोकरी सस्ती होने से उनकी क्रय शक्ति बढ़ेगी और खर्च का सद्गुण चक्र बनेगा।

  1. शासन पर विश्वास में वृद्धि

पारदर्शिता और सरलता नागरिकों व व्यापारियों में विश्वास बहाल करेगी।

नीडोनॉमिक्स और कराधान का भविष्य

जीएसटी सुधार केवल तकनीकी समायोजन नहीं हैं, बल्कि इन्हें नीडोनॉमिक्स दर्शन से जोड़ना होगा। राजस्व की अंधी दौड़ के बजाय कराधान को ज़रूरतों और संसाधनों में संतुलन लाना चाहिए।

एनएसटी ऐसी कर प्रणाली की कल्पना करता है जो:

  • आवश्यकताओं और विलासिता का यथार्थ आधार पर भेद करे।
  • ज़िम्मेदार उपभोग (नीडोकंज़म्प्शन) को बढ़ावा दे।
  • हर परिवार को आवश्यक वस्तुएँ सुलभ कराए।
  • नागरिकों के दैनिक बोझ को कम करके आर्थिक ख़ुशहाली लाए।

निष्कर्ष

वर्ष 2025–26 के जीएसटी सुधार केवल वित्तीय समायोजन नहीं, बल्कि नीडोनॉमिक्स स्कूल ऑफ थॉट की पूर्ति की दिशा में एक बड़ा क़दम हैं। 12% और 28% की दरें समाप्त कर 5% और 18% पर आधारित संरचना अपनाने से न्याय, सरलता और समावेशिता सुनिश्चित होगी। यह मध्यम वर्ग को मज़बूत करेगा, अनुपालन बढ़ाएगा और जीडीपी वृद्धि में योगदान देगा। नीडोनॉमिक्स की दृष्टि में कराधान केवल राजस्व का विषय नहीं, बल्कि ज़िम्मेदारी का प्रश्न है। खुश हंस ही अधिक सुनहरे अंडे देता है। इसलिए भारतीय अर्थव्यवस्था को जीवंत और मानवीय बनाए रखने के लिए जीएसटी सुधारों को आवश्यकताओं को प्राथमिकता देनी होगी, न्याय को मनमानी पर वरीयता देनी होगी और कल्याण को केवल राजस्व अधिकतमकरण पर तरजीह देनी होगी। तभी भारत 2047 तक विकसित भारत की उस परिकल्पना की ओर बढ़ सकेगा, जहाँ विकास सामाजिक न्याय और मानवीय गरिमा के साथ संतुलित होगा।

 

 

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