गुस्ताखी माफ़ हरियाणा: जट अमृतसरीया तेरी माँ ने बोले हैं तीखे से बोल, देवेंद्र बबली के बिगड़े बोल
पवन कुमार बंसल।
संदीप के बाद लवली -किस किस का बचाव करोंगे मनोहर लाल जी। कही आपको यह डर तो नहीं सता रहा की पद के दुरुपयोग के किसी मामले में आंच आपके दामन पर भी आ सकती है।
खुदा जब हुस्न देता है तो नजाकत आ ही जाती है। राजनीतिक रुतबा किस प्रकार से आदमी का दिमाग खराब करता है है, राज्य के एक मंत्री का एक ताज़ा व्यवहार इसको परिलक्षित करता है।
हुआ यूं कि पंचायत मंत्री महोदय अपने तथाकथित “मधुर-मिलन समारोह” की कड़ी में फतेहबाद के एक गांव नाढोड़ी में गए। लेकिन “मधुर-मिलन समारोह” “विष-वमन समारोह” में बदल गया, जब गांव के वर्तमान सरपंच नरेंदर सिंह (जो अनुसूचित जाति से हैं) उस समारोह में नहीं पहुंचे। पहुंचते भी कैसे?
सरपंच के अनुसार कार्यक्रम हेतु उसे कोई औपचारिक न्यौता भी नहीं दिया गया था, अपितु मंत्री महोदय के भाई द्वारा पहले दिन शाम को टेलीफोन द्वारा मंत्री जी के गांव के मंदिर के पास आने की सूचना दी गई थी, लेकिन मंत्री महोदय समारोह हेतु किसी सार्वजनिक स्थान जैसे मंदिर या पंचायत घर की अपेक्षा एक वोट से नए नए पराजित प्रत्याशी के घर पहुंच गए, जो विजयी उम्मीदवार के घोर विरोधी हैं। अतः किसी प्रकार के झंझट से बचने के लिए सरपंच महोदय बीकानेर प्रस्थान कर गए।
बन्दर के हाथ में उस्तरा
मंत्री महोदय सरपंच की अनुपस्थिति से नाराज़ हो गए और सरपंच को “राइट टू रिकॉल” की सार्वजनिक धमकी दे डाली।
अब मंत्री महोदय को ये भी नहीं पता कि विधिनुसार आरंभिक एक वर्ष के पश्चात ही “राइट टू रिकॉल” की प्रक्रिया आरम्भ की जा सकती है। उसके लिए भी पहले 33% मतदाताओं को लिख कर देना होगा, जिस पर खंड विकास एवं पंचायत अधिकारी उचित माध्यम से शासन को एक प्रस्ताव भेजेगा। शासकीय अनुमोदन के पश्चात ही गांव में अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान हो सकता है, जिसमें 67% मतदाताओं का समर्थन आवश्यक है।
गांव बिश्नोई बाहुल्य है, जहां लोगों में स्पष्ट स्थानीय ध्रुवीकरण है। ऐसे में क्या मंत्री जी सरपंच के विरुद्ध 2/3 मतदान करवा सकते हैं? ऐसा तो संभव नहीं है,? लेकिन हां, अपने तथाकथित स्वाभिमान के चक्कर में सरपंच को किसी न किसी बहाने से निलंबित अवश्य करवा सकते हैं। तो फिर उस “राइट टू रिकॉल” की धमकी का क्या होगा?
आसपास के गांवों के सरपंचों ने मंत्री के इस व्यवहार के विरुद्ध उपायुक्त के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन भी दिया है।
क्या मंत्रीगण अपने पद की गरिमा भी नहीं समझते हैं। चुनाव में साल भर ही शेष बचा है। फिर उन्हीं मतदाताओं के आगे झोली पसारनी पड़ेगी।
नरेंदर सिंह ने ‘गुस्ताखी माफ़ को बताया की मंत्री ने उन्हें सार्वजानिक तौर पर अपमानित किया है। मंत्री के आदमी उन्हें डरा धमका कर बिना काम किये भुगतान करने के लिए दवाब बना रहे है। दुष्यंत ने फ़ोन नहीं उठाया.
गर तू ख़ुदा नहीं है तो इतना घमंड क्यों
हम उस को ये भी याद दिलाने में रह गए
कुछ और उन से हो न सका ‘अंजना’ तो फिर
वो मुझ को अपना रो’ब दिखाने में रह गए
-अंजना सिंह।
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