गुस्ताखी माफ़ हरियाणा- पवन कुमार बंसल ।
धारूहेड़ा फैक्ट्री ऐक्सिडेंट। मजदूरों की जान गई और सरकार ने भी एस डी एम से जांच करवा पल्ला झाड़ लिया l एस डी एम कोई एक्सपर्ट है l सारे मामले पर हमारे माननीय सहयोगी डॉक्टर रणबीर सिंह फोगाट की आंख खोलने वाली विस्तृत रिपोर्ट l १४ मरे, ४० गंभीर घायल धारूहेड़ा इंडस्ट्रियल एक्सीडेंट, १७ मार्च, २०२४ जरूरत है इस दुर्घटना की एक ‘सिटीजन्स रिपोर्ट’ की ।
हरयाणा के जिला रेवाड़ी के धारूहेड़ा इंडस्ट्रियल ज़ोन में शनिवार, १६ मार्च, २०२४ के दिन एक बायलर में भयंकर विस्फोट हुआ था। कुछ लोगों का कहना है की यह विस्फोट ऑटो पार्ट्स बनाने वाली इस फैक्ट्री के डस्ट-कलेक्टर में हुआ जो ब्लॉक हो गया था। बायलर ऑफ़ डस्ट कलेक्टर की बनावट और इसके सेफ्टी स्टैंडर्ड्स में भिन्नता होती है। इसलिए सही बात ख़बरों से मालूम नहीं हुयी। मीडिया में जो खबरें आयी थी इसका सार यह कि: ‘धारुहेड़ा, रेवाड़ी में हाल ही में एक ऑटो पार्ट्स कारख़ाने में एक बॉयलर विस्फोट हुआ, जिससे लगभग 40 कामकाजी श्रमिक घायल हुए, जिनमें से कुछ के गंभीर रूप से जलने और चोट लगने की बात मालूम हुयी है।
वीडियो में घायलों की हालत कुछ ऐसी ही दिखाई दी, जिनके अंग जल गए थे और उन्हें वार्ड में ले जा रहे थे। यह कारख़ाना ‘लाइफलॉंग प्राइवेट लिमिटेड’ का है और यह विशेष रूप से ऑटो पार्ट्स बनाता है जिसमें विस्फोट हुआ था। जब १७ :५० बजे बॉयलर में आग लग गई, जो धूल-प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए उपयोग होने वाले डस्ट कलेक्टर यूनिट में फैल गई।
इस घातक घटना के बाद जब धुंआ और धूल का गुब्बार उठा तो कई अग्निशामक और एम्बुलेंस तुरंत कारख़ाने पहुँच गए और बचाव की कोशिश की। नागरिक चिकित्सक सुरेंद्र यादव के अनुसार, घायलों में से लगभग 15 को रेवाड़ी के सर शादी लाल ट्रॉमा सेंटर में भर्ती किया गया। एक गंभीर घायल कामकाजी को PGIMS, रोहतक में रेफ़र किया गया। कई अन्य लोग रेवाड़ी के सिविल हॉस्पिटल और शहर की निजी सुविधाओं में भर्ती हुए। कुछ लोग गुड़गांव लाए गए। यादव ने कहा, “यह एक दुखद औद्योगिक दुर्घटना है।”
मालूम हुआ है अभी तक इस दुर्घटना की वजह से १४ लोग दम तोड़ चुके हैं। शॉप एंड एस्टाब्लिश्मेंट एक्ट के अंतर्गत बाज़ार तो छोड़िये रिहायशी इलाकों तक में इंडस्ट्रियल वर्कशॉप्स की संख्या हरयाणा में २ लाख होगी। यहाँ भी तो इंडस्ट्रियल सेफ्टी मैय्यर्स की जरूरत है, लेकिन इन्हें आमतौर से इग्नोर किया जाता है।
हरयाणा में जो फैक्ट्रीज लगी हैं वे बहुत बड़े साइज़ की तो नहीं हैं लेकिन यहां कोल फायर्ड पॉवर प्लांट्स यमुनानगर, फरीदाबाद, पानीपत, हिसार और जिला झज्जर में लगाए गए। पानीपत में नेशनल फ़र्टिलाइज़र्स लिमिटेड का बड़ा पॉवर प्लांट हैं। अनेक शुगर मिल्स भी हैं और छोटी फैक्ट्रीज की संख्या तो हज़ारों में है। इंडस्ट्रियल सेफ्टी और वर्कर्स हेल्थ एंड वेलफेयर से जुड़ी हुयी इनकी इंस्पेक्शन रिपोर्ट्स हमेशा ‘डॉक्टर्ड’ होती हैं। प्राइवेट फैक्ट्री मालिक अधिकतर अपनी मर्जी से रिपोर्ट तैयार करवाते हैं और ऐसा इसलिए होता है ये लोग सरकारी अमले को खुश रखते हैं। इससे सबसा बड़ा नुकसान फैक्ट्री मजदूरों और माध्यम और निचले स्तर पर काम करने वाले इंडस्ट्रियल वर्कर्स का होता है।
फैक्ट्रीज में जब भी कोई छोटी-बड़ी दुर्घटना होती है, सरकार जांच के नाम पर लीपा-पोती करती है और अधिकतर यह सिफारिश करती है कि दुर्घटना में विभिन्न स्तर की घायलावस्था वाले व्यक्तियों और अपंग होने और मरने वाले व्यक्तियों के लिए मुआवजा दिलवाया जाए।
इनके इंश्युरेंस और रेगुलर हेल्थ चेक-अप, और इंडस्ट्रियल-सेफ्टी ऑडिट के बारे में कभी कुछ नहीं पता चलता, ऑक्यूपेशनल हेल्थ की बात तो किसी फैक्ट्री मालिक को मालूम भी नहीं और न ही यह कि भारत सरकार के स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग के अंतर्गत अहमदाबाद में पिछले ५० से भी अधिक वर्षों से नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ ऑक्यूपेशनल हेल्थ नाम का एक संस्थान इंडस्ट्रियल सेफ्टी और इंडस्ट्रियल हेल्थ में शोधरत है।
यह अफ़सोस की बात है कि देश में माध्यम और छोटे दर्जे का विशाल इंडस्ट्रियल बेस होने के बावजूद इंडस्ट्रियल सेफ्टी के मामले में इन यूनिट्स का रिकार्ड्स बहुत खराब ही नहीं बल्कि ‘डिज़ास्ट्रस’ अर्थात बड़ी विपत्ति वाला है।
तात्कालिक तौर से यह कहा जा सकता है कि (१) मीडिया रिपोर्ट्स से यह साफ़ नहीं है कि ब्लास्ट फैक्ट्री के किस पार्ट में -बायलर या डस्ट कलेक्टर, में हुआ। (२) रेवाड़ी के डी।एम। ने अपने अधीनस्थ सब-डिवीज़नल ऑफिसर के जरिये दुर्घटना की जांच रिपोर्ट तैयार करवाई और ‘ऊपर’ भेज दी अर्थात हरयाणा सरकार के लेबर डिपार्टमेंट के सचिव और फाइनेंसियल कमिश्नर को। इस रिपोर्ट ऑफ़ मीडिया के साथ शेयर नहीं किया गया।
यह भी मालूम नहीं की इस रिपोर्ट के तकनीकी पहलुओं को किसने ड्राफ्ट किया है। अगर टेक्निकल इंस्पेक्शन के साथ फॉरेंसिक जांच भी नहीं की गयी और फैक्ट्री के दुर्घटनाग्रस्त हिस्से को सील नहीं किया गया तो हो सकता है बाद में एविडेंस न मिले।
हालांकि मुख्यमंत्री नायब सैनी ने उक्त दुर्घटना में प्रत्येक मृतक के लिए उसके परिवार के निकटतम सम्बन्धी को ५ लाख रुपए और कम और अधिक घायलों में से चोट की गंभीरता के हिसाब से ५० हज़ार से लेकर २ लाख तक रुपए की धनराशि तात्कालिक सहायता के तौर से देने की घोषणा की है लेकिन जैसा किसदा होता आया, इसे एक आकस्मिक दुर्घटना मान कर न कि मशीनरी की देख-रेख में लापरवाही मानकर रफा-दफा कर दिया जायेगा।
कहते हैं न की पैसा सबकी जुबान बंद कर देता है, इसलिए फैक्ट्री मालिक पर कैसी कानूनी कार्रवाई होगी यह हमें कभी मालूम नहीं होगा क्योंकि मीडिया भी शायद इस घटना का फॉलो अप न लिखे।
एक फैक्ट्री में मशीनरी की इंस्टालेशन सही तरीके से हो, मशीनरी गुणवत्ता वाली और सर्टिफाइड पार्ट्स वाली हो, इंस्टालेशन के बाद चालू रहने पर इसकी सेहत की नियमित जांच का रिकॉर्ड रखा जाय, वर्कर्स सेफ्टी गियर इस्तेमाल हो रहा या नहीं और यह किस गुणवत्ता का है इसका रिकॉर्ड होना चाहिए, काम की जगह पर धुल, तापक्रम और नमी कितनी है इसका मापन दिन में कई बार होता है या नहीं, यह देखने के लिए इसका भी रिकॉर्ड रखा जाना चाहिए।
वर्कर्स का हेल्थ एंड न्यूट्रीशन प्रोफाइल कैसा है इसका रिकॉर्ड रखा जाना चाहिए। यह सब कभी नहीं किया जाता है। इसलिए इसका रिकॉर्ड कहाँ से मिलेगा? इंडस्ट्रियल सेफ्टी की जांच करने वाला महकमा कैसे काम करता है, प्रदूषण नियंत्रण करने वाला कैसे करता है, यह क्या किसी से छिपा है।
फैक्ट्रीज, इल्लीगल कमाई का सबसे बड़ा जरिया हैं और, सुना गया है कि हरयाणा में फैक्ट्रीज से सैंकड़ों करोड़ रुपये का कलेक्शन हर साल होता है! जैसे कि शराब के ठेकेदारों से, खदान और खनन के ठेकेदारों से, कंस्ट्रक्शन और एस्टेट वालों से और फार्मास्यूटिकल डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क से। फैक्ट्रीज एंड इंडस्ट्रियल सेफ्टी का हमारा स्तर, खासतौर से छोटे और मध्यम उद्योगों के कुछ वर्गों के लिए, अभी तक सन १८९० के इंगलैंड वाला है।
भारत में कानूनों की कमी नहीं जो कि सर्वश्रेष्ठ तो नहीं हैं, लेकिन फिलहाल ठीक हैं। इनमें से सन १९४८ के फैक्ट्रीज एक्ट से लेकर २८ सितम्बर सन २०२० से लागू हुए ‘द ऑक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशन्स कोड २०२० (एक्ट ३७ ऑफ़ २०२०), भारत सरकार के अलावा हरयाणा के लेबर विभाग द्वारा जारी स्टैण्डर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर्स और भारत बायलर एक्ट, 1923 भी उपलब्ध है।
लेकिन बात वही है न फैक्ट्री मालिक, न सरकार और न ही लेबर यूनियन्स को इनके अनुसार काम करने की परवाह है। मेरा अनुमान है कि इस मामले में नेग्नलिगेंस दिखाकर एक क्रिमिनल केस कभी फाइल नहीं किया जायेगा। नतीजा है फैक्ट्रीज में नियमित रूप से होने वाली दुर्घटनाएं जिनसे कोई सबक नहीं सीखा जाता।
उक्त एक्ट सिर्फ उपलब्ध ही हैं और इनके पन्ने दुर्घटना होने के बाद खोले जाते हैं ताकि जांच अधिकारी इनके क्लॉज़ और आर्टिकल को अपनी ‘जांच रिपोर्ट’ में कोट कर पायें। मेरे हिसाब से ऐसी हर दुर्घटना (इंडस्ट्रियल एक्सीडेंट) न केवल एक टेक्निकल एंड साइंटिफिक रिपोर्ट तैयार की जानी जानी चाहिए बल्कि प्रांतीय सरकार के लेबर डिपार्टमेंट को यह रिपोर्ट अपनी ऑफिसियल वेबसाइट पर अपलोड भी करनी चाहिए।
इंडस्ट्रियल एक्सीडेंट्स के प्रति कैज़ुएल रवैय्या न रखने की बात सुप्रीम कोर्ट ने बहत पहले भोपाल में यूनियन कार्बाइड के प्लांट से मिक गैस के रिसाव के बारे में सुनवाई के बाद फैसले में कही थी। इस दुर्घटना में ३ हज़ार मनुष्यों और सैंकड़ों पशुओं की मौत और करीब २५ हजार लोगों को आँख और फेफड़े में इंजरी हुयी थी।
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