गुस्ताखी माफ़ हरियाणा: हरियाणा पुलिस का राजनीतिकरण

पवन कुमार बंसल
पवन कुमार बंसल

पवन कुमार बंसल।

गुस्ताखी माफ़ हरियाणा: हरियाणा पुलिस का राजनीतिकरण

विज के दरबार और हरियाणा पुलिस की साख -पार्ट वन।

बांध के घुंघरू सियासत ही नचाती है हमें और हम नाचते रहते है तवायफ की तरह।
हकूमत के इशारों पर हमारे ठुमके -ये बताते है कि हम भी रजामंद यहाँ।

हरियाणा के होम मिनिस्टर अनिल विज के दरबारों जिनमे ज्यादा शिकायते पुलिस के बारे आती है वाली पोस्ट पर पाठको ने काफी टिपणिया की है और हरियाणा पुलिस की साख और कार्यप्रणाली बारे काफी सूचनाएं और इसके सुधार के लिए सुझाव भेजे है।

लेखक खुद भी हरियाणा पुलिस की वर्किंग से अच्छी तरह वाकिफ है। अपने पेंतालिस वर्ष के पत्रकारिता के कर्रिएर के दौरान कांस्टेबल से लेकिन पुलिस महानिदेशक तक के अफसरों से सम्बन्ध रहे। लेखक इन दिनों इनसाइड स्टोरी ऑफ़ हरियाणा पुलिस नामक किताब भी लिख रहा है।

हमारी न तो विज और नहीं हरियाणा पुलिस से दोस्ती है और न दुश्मनी। हमारा उद्देश्य तो जनहित से जुड़े इस मुद्दे पर बहस शुरू करवा कर पुलिस की ऐसी छवि बनानी है जिसमे वो नेताओं के बजाये अपनी वर्दी और जनता के प्रति समर्पित हो। कुछ पाठको ने कहा की पुलिस का राजनीतिकरण हो गया हैऔर बताया कि यह रोग पुराना है।

चौबीस घंटे की ड्यूटी और कम वेतन के कारण पुलिस कर्मचारी तेजी से अपराधियों से रिश्वत पर निर्भर होते गए, जिससे तीन तत्वों- अपराधियों, राजनेताओं और पुलिस के बीच अंततः एक गहरा गठजोड़ हो गया, जो निरंतर फल-फूल रहा है।

पुलिस बल का पूरी तरह से राजनीतिकरण भी हो गया है। कनिष्ठ पुलिस अधिकारियों की नियुक्ति या स्थानांतरण राजनीतिक आकाओं द्वारा तय किए जाने लगे हैं। जो अच्छे पुलिस कर्मी तो हैं लेकिन लावारिस हैं, वे महत्वहीन पदों पर ही लगाए जाते हैं।

राजपत्रित पर्यवेक्षण अधिकारी जहां नख-दंत विहीन हो गए हैं, वहीं जिला पुलिस अधीक्षक आपराधिक मामलों में भी ठीक जांच करवाने, उचित मामलों में अपने अधीनस्थ अधिकारियों का बचाव करने, सेवा संबंधी उचित समस्याओं का हल करने अथवा ऐसी किसी इच्छा का प्रदर्शन करने में भी असमर्थ/ असक्षम होते जा रहे हैं।

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