गुस्ताखी माफ़ हरियाणा: जब ओ पी जिंदल ने कहा तुझे पैसे की क्या चिंता थी वो तो मेरी बेटी है।

पवन कुमार बंसल।

गुस्ताखी माफ़ हरियाणा: जब ओ पी जिंदल ने कहा तुझे पैसे की क्या चिंता थी वो तो मेरी बेटी है।

दो दशक पहले लेखक रोहतक में जनसत्ता अखबार का रिपोर्टर था।घर पर नेताओं का आना जाना लगा रहता क्योंकि पत्रकारों को उन्ही से खुराक यानी खबर मिलती है । एक बार संयोग से भूपिंदर हुडा और ओ पी जिंदल दोनो एक साथ आ गए। असेम्बली चुनाव नजदीक थे ।तब हुडा भजन लाल को चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस का बहुमत आने पर चीफ़ मिनिस्टर की दौड़ से बाहर करने के लिए अपनी गोटियां फिट कर रहे थे।इधर जिंदल का भजन लाल से छतिस का आंकड़ा था क्योंकि भजन लाल नें चीफ़ मिनिस्टर रहते जिंदल के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवा दिया था दुश्मन का दुश्मन दोस्त वाली बात दोनो भजन लाल से निपटने की रणनीति बना रहे थे और अपन को एक्सक्लूसिव खबर मिलने की उम्मीद।उड़ते उड़ते पता लगा कि दोनों ने भजन लाल को चीफ़ मिनिस्टर की रेस से बाहर करने के लिए दिल ओर हाथ मिला लिए।आप हैरान होंगे की इसके लिए जिंदल ने कुबेर का खजाना खोलने का आश्वासन दिया। शायद हुडा ने तब एक करोड़ भी नहीं देखे होंगे जब जिंदल ने ऑपरेशन भजन लाल पर दो दो करोड़ फूंकने का वायदा किया।

जब हुडा चले गए तो मैंने जिन्दल साहिब से कहा की मैने अपनी बेटी का दाखिला विद्या देवी जिंदल स्कूल हिसार मे करवाना है ।थोड़ी देर बाद जब जिंदल चलने लगे तो मुझसे बोले गाड़ी मे बैठ हिसार चल ।मैने पूछा तो बोले पहले स्कूल देखेगा ओर पसंद आया तभी बेटी का दाखिला करवाएगा।मैने कहा वहा तो दाखिले के लिए शिफारिश लगती है ।खैर मुझे हिसार ले गए और स्कूल दिखाया और वहा किसी की ड्यूटी लगाई की बंसल साहिब की बेटी का दाखिला करना है ।मैने फार्म भी मंगवाया लेकिन दाखिला नहीं करवाया क्योंकि पहले से ही बेटा बाहर पड़ रहा था और दोनों का बाहर के स्कूल का खर्चा पॉकेट में नहीं था।कुछ दिन बाद जिंदल मुंबई से वापिस आए और मुझे फोन किया की क्या स्कूल पसंद नहीं आया।मैने कहा की स्कूल तो बढ़िया लेकिन उसका खर्चा मै नहीं दे सकता।अब जिंदल साहिब ने जो कहा दिल बाग बाग हो गया ।बोले इतनी बेइजती करने से तो अच्छा तो चार जूते मार ले।तुझे पैसे की क्या चिंता वो तो मेरी बेटी है।जिंदल साहिब कहते थे की जो भी मुझे मिलता है मेरी कंपनी के प्रमोटर कोटा के शेयर मांगता है और मे दे देता हू।तूने आज तक शेयर नहीं मांगे।

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