ज्ञान भारतम अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में बोले पीएम मोदी – पांडुलिपियां भारत की सभ्यता का अमूल्य खजाना डेटलाइन:

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 13 सितंबर: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को विज्ञान भवन में आयोजित ज्ञान भारतम अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में शिरकत की। इस तीन दिवसीय सम्मेलन का आयोजन केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय द्वारा किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य भारत की प्राचीन पांडुलिपि धरोहर को पुनर्जीवित करना और उसे वैश्विक ज्ञान-विनिमय के केंद्र में स्थापित करना है। प्रधानमंत्री मोदी के साथ संस्कृति और पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भी मौजूद रहे।

इस सम्मेलन का विषय है – ‘Reclaiming India’s Knowledge Legacy through Manuscript Heritage’ (भारत की ज्ञान परंपरा को पांडुलिपि धरोहर के माध्यम से पुनः प्राप्त करना)। इसमें नीति-निर्माताओं, विद्वानों, संरक्षकों और तकनीकी विशेषज्ञों की भागीदारी हो रही है।

भारत की पांडुलिपियां – ज्ञान और संस्कृति की जीवंत धरोहर

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि यह केवल सरकारी आयोजन नहीं है बल्कि भारतीय संस्कृति, साहित्य और चेतना की घोषणा है। उन्होंने कहा कि भारत की ज्ञान परंपरा इसलिए आज भी समृद्ध है क्योंकि यह चार स्तंभों – संरक्षण, नवाचार, संवर्धन और अनुकूलन पर आधारित है।

उन्होंने कहा –
वेद भारतीय संस्कृति की नींव माने जाते हैं और इन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी बिना किसी त्रुटि के संरक्षित किया गया। हमने आयुर्वेद, वास्तुशास्त्र, ज्योतिष और धातुकर्म में निरंतर नवाचार किया और हर पीढ़ी ने इस ज्ञान में कुछ नया जोड़ा। समय के साथ हमने आत्ममंथन भी किया और बदलावों के अनुसार खुद को ढाला।

80 भाषाओं में संरक्षित है ज्ञान का सागर

प्रधानमंत्री ने बताया कि प्राचीन पांडुलिपियां करीब 80 भाषाओं में उपलब्ध हैं और यह भारत की ‘एकता में विविधता’ का जीवंत उदाहरण हैं। इनमें संस्कृत, प्राकृत, असमिया, बांग्ला, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मराठी सहित कई भाषाएं शामिल हैं।

उन्होंने विशेष रूप से गिलगिट पांडुलिपि का उल्लेख किया, जो कश्मीर के प्रामाणिक इतिहास को दर्शाती है। मोदी ने कहा कि यह पांडुलिपियां केवल भारत ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण मानव सभ्यता की प्रगति यात्रा को दर्शाती हैं — दर्शन, विज्ञान, चिकित्सा, कला, खगोल विज्ञान और वास्तुकला सभी इसमें परिलक्षित हैं।

भारत – ज्ञान का वैश्विक खजाना

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आधुनिक ज्ञान की नींव भी भारत के योगदान पर आधारित है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि गणित से लेकर कंप्यूटर विज्ञान तक में भारत के शून्य की खोज ने क्रांति लाई।

उन्होंने कहा –
हर देश अपनी ऐतिहासिक धरोहर को सभ्यता का प्रतीक मानता है। भारत के पास पांडुलिपियों का जो विशाल संग्रह है, वह हमारे लिए गर्व का विषय है। यह अमूल्य सभ्यतागत खजाना पूरी मानवता के लिए ज्ञान का स्रोत है।

संस्कृति मंत्रालय ने साझा की प्रदर्शनी की झलकियां

संस्कृति मंत्रालय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर बताया कि इस प्रदर्शनी में पहली बार कौटिल्य का अर्थशास्त्र, रामायण (सुंदरकांड) और दुर्लभ गिलगिट पांडुलिपि जैसी अमूल्य धरोहरों को एक साथ प्रदर्शित किया जा रहा है। यह भारतीय ज्ञान परंपरा की झलक देने वाला अनूठा प्रयास है।
ज्ञान भारतम सम्मेलन न केवल पांडुलिपियों के संरक्षण और संवर्धन का प्रयास है बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक पहचान और वैश्विक नेतृत्व क्षमता का भी संदेश देता है। प्रधानमंत्री मोदी की इस पहल से उम्मीद है कि भारतीय ज्ञान परंपरा को विश्व पटल पर नई पहचान और सम्मान मिलेगा।

 

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