ज्ञानवापी मामला: हिंदू याचिकाकर्ताओं की हुई जीत, वाराणसी जिला कोर्ट ने खारिज की मुस्लिम पक्ष की अर्जी

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 12सितंबर। ज्ञानवापी केस में फैसला हिंदूओं के पक्ष में आया है. श्रंगार गौरी विवाद मामले में फैसला सुनाते हुए ज़िला जज एके विश्वेश की सिंगल बेंच ने कहा कि मामला सुनवाई योग्य है. उन्होंने मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज करते हुए कहा ज्ञानवापी में मिले सबूतों को आधार माना है. हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने कोर्ट के बाहर मीडिया से बात करते हुए कहा कि कोर्ट ने हमारी बहस को मान लिया है. मुस्लिम पक्ष के आवेदन को रद्द कर दिया है. उन्होंने बताया कि कोर्ट ने कहा है कि याचिका सुनवाई योग्य है. अब इस मामले की अगली सुनवाई 22 सितंबर को होगी. आज के फैसले से साफ हो गया कि यह मुकदमा कोर्ट में चलने योग्‍य है, हालांकि मुस्लिम पक्ष के पास अभी भी हाईकोर्ट और सु्प्रीम कोर्ट जाने का विकल्प खुला है. प्रतिवादी अंजुमन इंतजामिया मसाजिद पक्ष के वकील इन विकल्‍पों पर विचार कर रहे हैं.

हिंदू याचिकाकर्ता सोहनलाल आर्या ने भी फैसले पर खुशी जताते हुए कहा कि यह हिंदू पक्ष के लिए बहुत बड़ी जीत है. उन्होंने कहा कि यह ज्ञानवापी मंदिर की आधारशिला है. साथ ही उन्होंने लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की है. कोर्ट का फैसला आने के बाद से हिंदू पक्ष के लोगों ने हर-हर महादेव के नारे लगाए, साथ ही कोर्ट के बाहर ही हनुमान चालीसा भी पढ़ी गई.

ज्ञानवापी-श्रंगार गौरी मामले को लेकर मथुरा में भी खुशी का माहौल
वाराणसी के जिला कोर्ट में श्रृंगार गौरी मामले को लेकर आए फैसले की खुशी मथुरा में भी देखने को मिल रही है. श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले में याचिकाकर्ता दिनेश शर्मा ने इस फैसले का स्वागत किया है. उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी के आदेश के बाद मथुरा में भी 7/11 की कॉपी कोर्ट में पेश की जाएगी. बताते चलें कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले अखिल भारत हिन्दू महासभा के कोषाध्यक्ष दिनेश शर्मा ने याचिका लगाई हुई है. दिनेश शर्मा कोर्ट से शाही ईदगाह में लड्डू गोपाल के अभिषेक की इजाजत की मांग कर चुके हैं.

जाने-माने सुन्नी धर्मगुरु मौलाना खालिद राशिद फिरंगी महली ने कहा कि उनकी कानूनी टीम फैसले का अध्ययन करेगी और उसके अनुसार कार्रवाई करेगी. उन्होंने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि पूजा स्थल अधिनियम 1991 को दरकिनार किया जा रहा है और ऐसे मामले उठाए जा रहे हैं. उन्होंने कहा, “हम कानूनी रूप से यह मामला लड़ेंगे.” मई में सुप्रीम कोर्ट ने मामला वाराणसी के जिला न्यायाधीश की अदालत को सौंप दिया था और वहां से इसे निचली अदालत को भेज दिया गया था, जहां उस समय तक सुनवाई चल रही थी.

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि मामले की जटिलता और संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए वाराणसी में सिविल जज के समक्ष दीवानी मुकदमे की सुनवाई यूपी न्यायिक सेवा के एक वरिष्ठ और अनुभवी न्यायिक अधिकारी के समक्ष की जाएगी. मामले में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से एक महीना पहले, वाराणसी की सिविल कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां होने का दावा करने वाली हिंदू महिलाओं की याचिका के आधार पर ज्ञानवापी मस्जिद के फिल्मांकन का आदेश दिया था.

मस्जिद में फिल्मांकन की एक रिपोर्ट को सीलबंद लिफाफे में वाराणसी की अदालत में पेश किया गया था, लेकिन हिंदू याचिकाकर्ताओं ने विवादास्पद रूप से कुछ ही घंटों बाद विवरण जारी किया. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि मस्जिद परिसर के भीतर एक तालाब में एक ‘शिवलिंग’ मिला है, जिसका इस्तेमाल मुस्लिम नमाज से पहले ‘वुजू’ या शुद्धिकरण के लिए किया जाता है. उस वक्त मामले की सुनवाई कर रहे जज ने इस तालाब को सील करने का आदेश दिया था. सदियों पुरानी मस्जिद के अंदर इस फिल्मांकन को ज्ञानवापी मस्जिद समिति ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि फिल्मांकन 1991 के पूजा स्थल अधिनियम के खिलाफ है, जो 15 अगस्त, 1947 तक किसी भी पूजा स्थल की धार्मिक स्थिति को बनाए रखता है. मस्जिद समिति ने तर्क दिया था, “इस तरह की याचिकाओं और मस्जिदों को सील करने से सार्वजनिक शरारत और सांप्रदायिक विद्वेष पैदा होगा, जिसका देशभर की मस्जिदों पर असर पड़ेगा.” मस्जिद समिति ने ‘रखरखाव’ मामले में वाराणसी जिला न्यायाधीश की अदालत के समक्ष इसी तरह की दलीलें दीं, जबकि हिंदू याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने दावा किया कि कानून उनके मामले को रोकता नहीं है और वे अदालत में साबित कर सकते हैं कि मस्जिद परिसर वास्तव में एक मंदिर था.

 

Comments are closed.