’तेरी चाहतों का इस कदर असर है, तेरे सिवा कोई और नहीं जहां तक ये सहर है
ज़िद है कि तेरे लिए फलक से चांद तोड़ लाऊं, जमीं से आसमां का जो ये सफर है’
कहां तो तय था कि 22 अगस्त को राहुल गांधी बतौर अध्यक्ष कांग्रेस पार्टी की कमान संभाल लेंगे, गांधी परिवार के वफादारों ने इस बात की पुख्ता व्यवस्था की हुई थी कि कैसे पार्टी की संवैधानिक मान्यताओं की परिपाटी पर चलते हुए राहुल को पार्टी का निर्विरोध अध्यक्ष निर्वाचित करवा लिया जाएगा। विरोध के बागी स्वरों को पहले ही सोनिया गांधी ने पार्टी के विभिन्न फोरम पर ‘एडजस्ट‘ करना शुरू कर दिया है। पर अभी-अभी गुजरात और हिमाचल की विधानसभा चुनावों को लेकर पार्टी के लिए एक एजेंसी ने जो जनमत सर्वेक्षण करवाए हैं उसके नतीजों ने गांधी परिवार की मंशाओं को झकझोर दिया है। इस जनमत सर्वेक्षण के प्रारंभिक रुझानों में कांग्रेस इन दोनों प्रदेशों में बेतरह पिछड़ती नज़र आ रही है। सूत्र बताते हैं कि इस बात का सबसे पहले सोनिया गांधी ने संज्ञान लिया है, वह नहीं चाहती कि राहुल अगस्त में पार्टी की कमान संभाले और दिसंबर माह में हो रहे चुनावों की हार का ठीकरा उनके मत्थे फोड़ दिया जाए, सो सोनिया का आग्रह है कि राहुल कर्नाटक चुनाव से पहले पार्टी की बागडोर संभालें, कर्नाटक में पार्टी को उम्मीद है कि कांग्रेस भाजपा से बेहतर प्रदर्शन करेगी, सो इसका श्रेय राहुल के उत्साही नेतृत्व को दिया जा सकेगा। दूसरी ओर प्रियंका गांधी हैं, जिनकी सोच है कि दिसंबर के विधानसभा चुनावों में तमाम पोस्टर से लेकर परचमों तक राहुल होंगे, कांग्रेस की सोच, उनकी नीतियों और रैलियों के केंद्र में राहुल ही होंगे, सो राहुल चाहे पार्टी के अध्यक्ष हों या ना हों इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, हार-जीत का सेहरा उन्हें ही लेना होगा, तो फिर अध्यक्ष बन कर क्यों न इस चुनौती को स्वीकार किया जाए। प्रियंका ने पार्टी फोरम पर भी जोर देकर कहा है कि कांग्रेस को अध्यक्षीय चुनाव नहीं टालने चाहिए, इस बारे में अंतिम कॉल राहुल को ही लेना है।
अपने तीन सीएम बदल सकती है भाजपा
जीत की आंधियों पर सवार भगवा उम्मीदों ने इस जश्न के माहौल में भी अपने होशो-हवास नहीं खोए हैं। 2024 के आगामी आम चुनावों को केंद्र में रख कर भाजपा में गहन विमर्श मंथन के दौर अभी से जारी है। विश्वस्त सूत्रों की मानें तो पिछले कुछ दिनों में पार्टी की टॉप लीडरशिप की कई दौर की बैठकें हो चुकी हैं। इन हाई प्रोफाइल बैठकों में पीएम मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और संगठन महामंत्री बीएल संतोष ने हिस्सा लिया। इस बैठक में तय हुआ है कि ’भाजपा शासित मुख्यमंत्रियों की बकायदा रिपोर्ट कार्ड को मद्देनजर रखते उनके भविष्य के बारे में फैसला लिया जाएगा।’ यह भी संकेत मिले हैं कि आने वाले दिनों में कम से कम तीन भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को बदला जा सकता है। हालांकि इस बारे में कोई आधिकारिक खुलासा नहीं हुआ है पर सूत्र बताते हैं कि मध्य प्रदेश, हिमाचल और कर्नाटक के मुख्यमंत्रियों पर हाईकमान की यह तलवार लटक रही है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को एक बार फिर से अभयदान मिल सकता है। भाजपा नेतृत्व इस बात का पक्षधर बताया जा रहा है कि ऐसे सीएम बनाए जाने चाहिए जो अपने दम पर चुनाव में जीत दिलवा सकें। सूत्र बताते हैं कि इस हाई प्रोफाइल मीटिंग में उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी और केशव प्रसाद मौर्य के चुनावी हार की भी गंभीर समीक्षा हुई, बैठक में यह निष्कर्ष निकाला गया कि धामी के पास अपने को साबित करने के लिए बहुत कम समय था, जबकि मौर्य को बतौर उप मुख्यमंत्री पूरे पांच साल मिले थे, फिर भी वे चुनाव हार गए। ‘मोदी मैजिक’ से भले ही यूपी और उत्तराखंड में भाजपा की वापसी हो गई हो पर पार्टी की सीटें कम हो गई। 2024 के चुनाव में इस सबक को ठीक से कंठस्थ करने का संकल्प लिया गया है।
वंशवाद के खिलाफ मुखर होता संघ
इस 19 मई को संघ के थिंक टैंक में शुमार होने वाले रामभाऊ म्हालगी प्रबोधिनी ने नई दिल्ली के नेहरू मेमोरियल सभागार में एक सेमिनार का आयोजन किया, जिसका विषय था कि ’वंशवाद से निकले राजनैतिक दल लोकतांत्रिक शासन के लिए कैसे खतरा है’, सेमिनार का उद्घाटन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने किया, इसकी अध्यक्षता महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने की, सेमिनार की अवधारणा भाजपा के राज्यसभा सांसद और इस प्रबोधिनी के उपाध्यक्ष विनय सहस्त्रबुद्दे की थी। इस कार्यक्रम में सबसे हैरतअंगेज उपस्थिति तो केंद्रीय इस्पात मंत्री और जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह की रही, जिनकी राज्यसभा की सदस्यता भाजपा से उनकी नजदीकियों की वजह से खतरे में पड़ गई है, नीतीश उनके इस बदले स्वांग को पचा नहीं पा रहे। पर इस सेमिनार में उस वक्त हंगामा बरप गया जब पोस्ट लंच सेशन में बोलने के लिए जेएनयू के दक्षिणपंथी विचारक डॉ. आनंद रंगनाथन बोलने को आमंत्रित किया गया। आनंद रंगनाथन को अपने उद्बोधन में उस ‘रेग्युलेटरी फ्रेमवर्क’ की बात करनी थी जो वंशवादी पार्टियों पर नकेल कस सके। जेएनयू के इस यंग प्रोफेसर की विद्वता का सब लोहा मानते हैं और वे संघ के एक प्रमुख थिंक टैंक में शुमार होते हैं, ये दिल्ली के प्रतिष्ठित सेंट स्टीफेंस कॉलेज से पढ़े-लिखे हैं और जेएनयू में ‘मोल्युकुलर मेडिसिन’ पढ़ाते हैं। ये तीन किताबें भी लिख चुके हैं। जब प्रोफेसर साहब ने बोलना षुरू किया तो वंशवाद पर अन्य राजनैतिक दलों के साथ उन्होंने भाजपा पर भी हल्ला बोल दिया। उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि आज भी भाजपा के 43 से ज्यादा सांसद और सवा सौ से ज्यादा विधायक वंशवाद की राजनीति की उपज है। प्रोफेसर साहब अपनी रौ में बोलते गए और सभागार में सन्नाटा छा गया, बाद में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से प्रोफेसर रंगनाथन के इस धुआंधार भाशण के वीडियो डिलीट कर दिए गए, बस अब उस उद्बोधन की स्मृति शेष है।
मंत्री जी को इंटरव्यू देना महंगा पड़ा
पिछले दिनों केंद्रीय विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने एक अंतरराष्ट्रीय साप्ताहिक पत्रिका को अपना लंबा इंटरव्यू दिया, जो भारत की विदेश नीति खास कर क्वाड और यूक्रेन मुद्दे को लेकर था। कहते हैं जैसे यह इंटरव्यू पीएमओ की संज्ञान में आया, उन्हें तलब कर कहा गया कि ’भले ही आप विदेश मंत्री हों पर भारत की आधिकारिक विदेशी नीति पर बोलने या इंटरव्यू देने से पहले आपको पीएमओ की मंजूरी लेनी चाहिए थी, क्योंकि यह पीएम का विशेषाधिकार है।’ विदेश मंत्री को हिदायत दी गई कि वे फौरन अपना इंटरव्यू छपने से पहले उसे कैंसिल करें। हैरान मंत्री ने फौरन उस साप्ताहिक पत्रिका के इंडिया हेड से बात की, पर पत्रिका वह इंटरव्यू रोकने के लिए तैयार नहीं हुई। तो फिर न्यूयॉर्क स्थित काउंसलेट जनरल को आगे आना पड़ा वे भागे-भागे पत्रिका के दफ्तर में पहुंचे और उसके एडिटर इन चीफ से मान मुनौव्वल की। बड़ी मुश्किल से उन्होंने पत्रिका के प्रधान संपादक को इस इंटरव्यू के प्रकाशित होने से रोकने के लिए मनाया। फिर नाराज़ संपादक ने कहा वे भले ही इंटरव्यू रोक रहे हैं, पर कोई उन्हें यह ट्वीट करने से नहीं रोके कि इस मामले में भारत और चीन की नीतियों में कोई फर्क नहीं है।
क्या चौटाला परिवार एक होगा?
आय से अधिक संपत्ति मामले में हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला को सजा सुनाए जाने से करीब यह एक सप्ताह पहले की बात है। कहते हैं चौटाला ने अपने पूरे परिवार को बुलाया और उनसे कहा कि ’अगर वाकई उन्हें अपने गृह राज्य में कांग्रेस-बीजेपी से लड़ना है तो परिवार को एक होना होगा।’ चौटाला ने कहा उनके पास अब ज्यादा समय नहीं है, वे अपनी आंखों के आगे अपने परिवार को एक होता देखना चाहते हैं और उनकी सोच है कि चौधरी देवीलाल की पार्टी और उनके चुनाव चिन्ह पर ही सब मिल कर लड़ें। सूत्र बताते हैं कि चौटाला ने इस मीटिंग में शामिल होने के लिए अपने छोटे भाई और राज्य के बिजली व जेल मंत्री रणजीत सिंह चौटाला को भी बुलाया था, पर वे नहीं आए। जबकि कहा जाता है कि ओम प्रकाश चौटाला से समझौता कर ही उन्होंने इस दफे के चुनाव में बतौर निर्दलीय जीत हासिल की थी और खट्टर सरकार में दो अहम मंत्रालय भी पा गए। पर रणजीत सिंह ने बैठक में न आकर अपने बड़े भाई को यह संकेत दे दिया कि वे निर्दलीय ही ठीक हैं। पर इस मीटिंग में भी पारिवारिक तनाव बिखर कर सामने आने लगा, जब जजपा के महासचिव दिग्विजय सिंह चौटाला ने अपने दादा से कहा ’उन्हें इस बात से खुशी मिलेगी कि उनका परिवार एक हो जाए, पर वे यह भी स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि परिवार की इस नवगठित पार्टी के अध्यक्ष या तो वे होंगे या उनके पिता अजय सिंह चौटाला।’ जब परिवार की इस एकजुटता की कवायद की खबर प्रदेश के मुख्यमंत्री खट्टर को लगी तो ओम प्रकाश चौटाला पर कानूनी शिकंजा और कस दिया गया। वहीं चौटाला परिवार को लगता है कि बड़े चौटाला को फिर से जेल भेजने से प्रदेश के जाटों की सहानुभूति चौटाला परिवार से मुखातिब होगी जिसका नुकसान आखिरकार भाजपा को उठाना पड़ सकता है।
जयंत को ऐसे मिली राज्यसभा
अखिलेश यादव ने सपा की ओर से राज्यसभा की तीसरी सीट के लिए अपनी पत्नी डिंपल यादव का नाम लगभग फाइनल कर दिया था, और वे इस आशय की औपचारिक घोषणा करने ही वाले थे कि डिंपल यादव के फोन पर जयंत की पत्नी चारू सिंह का फोन आ धमका, चारू ने डिंपल से लगभग चिरौरी करने के अंदाज में कहा-’आपका कद बहुत बड़ा है, आप तो आजमगढ़ से लोकसभा का चुनाव भी जीत जाएंगी, पर प्लीज आप जयंत के बारे में सोचे जो पिछले आठ वर्षों से लगभग राजनैतिक निर्वासन की पीड़ा झेल रहे हैं, आपका यह अहसान हमेशा हमारे ऊपर रहेगा।’ डिंपल ने यह बात अखिलेश को बताई, अखिलेश ने डिंपल से कहा वे जयंत से कहें कि वे मुझसे बात करें। अखिलेश पिछले तीन बार से जयंत का फोन नहीं ले रहे थे। फिर अगली सुबह जयंत का फोन अखिलेश के मोबाइल पर आया, जयंत ने भी अखिलेश से वही बातें दुहराई जो उनकी पत्नी पहले ही डिंपल से कह चुकी थीं। इसके बाद अखिलेश ने राज्यसभा के लिए जयंत की उम्मीदवारी की घोषणा कर दी। पर इसके बाद कहते हैं जयंत ने अखिलेश के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को फोन करके कहा-’वैसे तो मुझे भाजपा और कांग्रेस दोनों ही राज्यसभा देने को तैयार थे, पर मैं भाई साहब (अखिलेश) को छोड़ना नहीं चाहता था।’ धर्मेंद्र ने जब यह बात अखिलेश को बताई तो वे बस एक ठंडी आह भर कर रह गए।
…और अंत में
केंद्रीय इस्पात मंत्री आरसीपी सिंह जब अमित शाह से मिले तो भाजपा उन्हें अपने कोटे की सीट से राज्यसभा भेजने को तैयार हो गई, इस बारे में बात करने के लिए धर्मेंद्र प्रधान पटना पहुंचे और उन्होंने शाह की बात नीतीश से कराई, नीतीश एक बदली भावभंगिमा के साथ शाह से बात कर रहे थे, नीतीश ने कहा-’आपको हमारे पूर्व पार्टी अध्यक्ष में इतनी दिलचस्पी क्यों हैं?’ शाह माजरा समझ गए, उन्होंने आरसीपी से कह दिया है कि ’पहले वे नीतीश को तैयार करें फिर भाजपा आगे बढ़ेगी, बिलावजह वह बिहार में अपनी सरकार गिराना नहीं चाहते।’ आरसीपी की सांस सांसत में है, वही भाजपा ने एक बार फिर से नीतीश को उप राष्ट्रपति पद का ऑफर दे दिया है। (एनटीआई-gossipguru.in)
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