वा रे पंकज तिरपाठी भिया,,ग़दर तो आपने मचा दिया !!

डॉ.प्रकाश हिन्दुस्तानी
डॉ.प्रकाश हिन्दुस्तानी

*डॉ.प्रकाश हिन्दुस्तानी

सलंग दो फ़िल्में देखीं। दोनों पुरानी फिल्मों की कड़ियाँ थीं। OMG 2 और ग़दर 2 . ग़दर 2001 में आई थी। OMG 2012 में। दोनों फिल्मों का जॉनर अलग है। दोनों को परिवार के साथ देखा जा सकता है। दोनों फिल्मों की अपनी खूबियां और कमियां हैं। मैंने दोनों फ़िल्में फेसबुक मित्रों के साथ देखी। फिल्म के बीच बीच में हम सम्पादकीय टिप्पणियां कर कर के दूसरे दर्शकों को बोर भी करते रहे। हमने टिकट खरीदकर फिल्म देखी थी, अत: हम पर किसी के बाप की कोई दबेलदारी नहीं है।
दोनों फिल्म बनाने वालों ने बाज़ार का ध्यान रखा है। अपनी मंशा के हिसाब से फार्मूला लगाया है। एक फिल्म देखते बखत ‘हर हर महादेव’ के नारे हॉल में लगे तो दूसरी फिल्म में ‘हिन्दुस्तान ज़िंदाबाद’ के। जिन लोगों ने वीकेंड पर महंगा टिकट खरीदा और उससे भी महंगा पॉपकॉर्न खाया, उन्हें यह अधिकार तो होना ही चाहिए। सवाल उस भावना का है जो कभी भी भड़क जाती है।
पहले OMG 2 का शो था, इसलिए हमने ‘पहले आवें तो पहले देखें’ का पालन किया।
फिल्म OMG : 2 नया विषय, मज़ेदार कहानी, कोर्ट सीन में पैसा वसूल
वा रे पंकज तिरपाठी भिया, आज से तुम कालीन भइया नईं, कांति मुदगल, उज्जैन के महाकाल पूजन सामग्री वाले ! ये ‘पिच्चर’ खिलाड़ी कुमार की नहीं, तुम्हारी। तुम्ही हो इसके पिता-माता, बंधु बांधव! सुरू में तो सच्ची मुच्ची के मालवी टेपे लगे, पण इस्टोरी के आगे बढ़ने के साथ ही जो अक्कलवाली बातें तुमने करी, के मैं तो तुम्हारा पंखा हो गया! वकील हो तो तुम जैसा, बापू हो तो तुम जैसा! मैकाले तक की धज्जियां बिखेर दीं यार तुमने तो! बाबा महाकाल की किरपा बनी रहे! जय महाकाल !!
ये वाली OMG पुरानी OMG (2012 वाली) एकदम अलग है। यह ‘ए’ सर्टिफिकेट प्राप्त फिल्म है जो उन लोगों के लिए बनाई गई है जो एडल्ट होने वाले हैं या नए-नए एडल्ट हुए हैं। फिल्म का विषय एक मायने में वैसा ही क्रांतिकारी है जैसा विक्की डोनर या पैड मैन फिल्म में था। सेक्स एजुकेशन की वकालत करती इस फिल्म में कोर्ट के बहुत सारे सीन हैं। वे सभी मज़ेदार हैं। कोर्ट की बहस में मज़ेदार तर्क हैं। एक पक्ष कहता है कि स्कूल में शिक्षा ढंग से नहीं मिलती, इसलिए स्कूल दोषी है। दूसरा बचाव पक्ष कहता है यह तो शिक्षा प्रणाली का दोष है, इसमें स्कूल का क्या दोष? पहला पक्ष कहता है कि अगर टाटा कंपनी का ट्रक किसी को टक्कर मार दे तो ड्राइवर पर केस करेंगे या रतन टाटा पर? बताओ?
मुझे यह फिल्म देखते समय दृश्यम फिल्म की याद आई, जिसमें हीरो अपनी बेटी को गैर इरादतन हत्या के आरोप से बचाने के लिए हर सीमा तक जाता है। उसका कहना है कि मैं अगर मेरे परिवार को नहीं बचाऊंगा तो कौन बचाएगा? इस फिल्म में हीरो अपने बेटे को एक प्रकरण में स्कूल से निकाले जाने के ख़िलाफ़ हर सीमा तक जाता है। दुकान छिन जाती है, घर छिन जाता है, पर बंदा है महाकाल का भगत ! महाकाल उसे राह दिखाते जाते हैं, बंदा चलता जाता है। अब महाकाल तो ठहरे महाकाल ! वे अपने हिसाब से ही काम करते हैं। वे मरे हुए हीरो को ज़िंदा कर देते हैं, पर हीरो के विरोधियों को अक्ल नहीं देते। वरना कहानी बीच में ही ख़त्म हो जाती।
निश्चित ही यह पंकज त्रिपाठी की सर्वश्रेष्ठ फिल्म है। फिल्म में उनका बोलचाल का अंदाज़ मालवी है। इंदौर के फिल्म पत्रकार पराग छापेकर ( लेखक पत्रकार रोमेश जोशी के दामाद, जो मुंबई में बस गए हैं) की भी भूमिका है और कहानीकार तेजेन्द्र शर्मा की बेटी आर्या शर्मा का रोल भी है। गोविन्द नामदेव, प्रवीण मल्होत्रा, अरुण गोविल भी अच्छी भूमिकाओं में हैं। अक्षय कुमार बीच बीच में प्रकट होते रहते हैं। पंकज त्रिपाठी को अब लोग कालीन भैया नहीं, बल्कि कांति मुद्गल के नाम से ही जानेंगे। तय है।
अगर आप महाकाल के भक्त हैं तो पुजारियों के न्यायालयीन विवादों के बावजूद फिल्म अच्छी लगेगी। पूरी ‘पिच्चर’ में गेल्येपने के कई सीन हैं, पर वे मनोरंजक हैं। विषय नया, फिल्म मनोरंजक है। पैसे वसूल हो जाते हैं। –
2001 से आगे नहीं बढ़ सकी ग़दर 2
ग़दर 2001 में आई थी। ब्लॉकबस्टर थी। केवल बाहुबली 2 ही उसका रेकार्ड तोड़ सकी है। ग़दर फिल्म के दस करोड़ से ज्यादा टिकट बिके थे। अब आबादी बढ़ गई है और सिनेमा टिकट भी महंगे हो गए हैं। आज के मान से यह फिल्म दो हजार करोड़ से ज्यादा का बिजनेस कर चुकी है। इसलिए इसकी अगली कड़ी का आना तो बनता ही था।
इस ग़दर में तीन प्रमुख कलाकार वही हैं। तारा सिंह ( सनी देओल), सकीना (अमीषा पटेल) और उत्कर्ष शर्मा (चरण जीत ‘जीते’ सिंह)। 22 साल में ‘जीते’ सिंह जवान हो गया है और निर्देशक का पुत्र है तो उसकी भूमिका तो बड़ी रखनी ही थी। वही भारत पाकिस्तान। पिछली फिल्म भारत पाक विभाजन की पृष्ठभूमि में थी। इस बार कहानी 1971 के पहले की है जब पाकिस्तान भारत पर हमले की साजिश रच रहा था।
फिल्म फ्लैशबैक और दो पुराने गानों का सहारा लेकर आगे बढ़ती है। पुरानी ग़दर में अमरीश पुरी थे, उनकी जगह मनीष वाधवा ने ली है और वे क्रूर पाकिस्तानी मेजर जनरल बने हैं। पिछली फिल्म में सनी देओल ने हैंडपंप उखाड़ा था, इसमें तोप का पहिया निकालकर घुमाया है। इंटरवल तो पति-पत्नी-बेटे का प्यार, तकरार, गाने में ही आ जाता है।
इसमें एक्शन शुरू होता है इंटरवल के बाद। तभी फिल्म में गति आती है। पिछली फिल्म में सनी देओल अपनी बीवी को लेने पाकिस्तान गए थे, इसमें बेटे को लेने जाते हैं और वहां बाप-बेटे ग़दर मचाते हैं। तोड़फोड़ करते हैं और पाकिस्तानी आर्मी से टकराते हैं। सनी के बेटे को वहां मुस्कान (सिमरन कौर) चाहने लगती है और पिता की मदद से पुत्र अंत में पाकिस्तानी दुल्हन ले ही आता है।
फिल्म में नयेपन की कमी है। संवादों में ताजगी नहीं है। यह एक्शन फिल्म है लेकिन इसमें पुरानी स्टाइल का ही एक्शन है, जो आजकल नहीं चलता। फिल्म में इमोशन है, देशप्रेम है, सांप्रदायिक सौहार्द्र की बातें भी हैं। पुराणी ग़दर पसंद करनेवालों को यह फिल्म पसंद आएगी।
 
-डॉ.प्रकाश हिन्दुस्तानी

वरिष्ठ पत्रकार,कई पुस्तकों के लेखक ,फिलहाल मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में रहते हैं.

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