ज्योत्स्ना रतूड़ी
भारत की आन हूँ मैं भारत की शान हूँ मैं
हिंदी भाषा देश की मैं सबसे महान हूँ ।
भाल पर देश के मैं सौभाग्य प्रतीक जान,
जैसे बोले कोई एक नारी का सम्मान हूँ।
संस्कृत से उपजी हूँ सरल सटीक जान
बोले हर वासी इसे देश का मैं प्रान हूँ।
ज्ञानी की भी भाषा हूँ मैं आम की भी भाषा मान
सारा देश है मुझमें मैं ही हिंदुस्तान हूँ ।
अ से लेकर ज्ञ तक मुझे ही वर्णमाला जान,
अक्षर शब्द मैं ही हूँ गुणों की मैं खान हूँ।
लघु कोमा रस छंद पाठ सार गान जान
लोकोक्ति मुहावरे भी मैं ही उपमान हूँ।
बढ़े सभी आगे जन नाम सम्मान जान,
मिले पारितोषिक भी मैं ही कीर्तिमान हूं।
भाषा एक न्यारी हूँ मैं गौरव मुझे ही जान,
रहे अखंड भारत मैं ही अभिमान हूँ।
ज्योत्स्ना रतूड़ी, ज्योति उत्तरकाशी, टिहरी उत्तराखंड
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