समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 1 जून। हिन्दी पत्रकारिता के साभने एक ओर अंग्रेजी के वर्चस्व की चुनौती है तो दूसरी तरफ पूंजी और राजनीतिक सत्ता के तले दबाए जा रहे लोकतंत्र की भी चुनौती है। इन दोंनों से निपटने के लिए हिंदी को ज्यादा जिम्मेदारी और मजबूती से खडे होना पड़ेगा। तभी उसका भविष्य बचा रह सकेगा। यह बात प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में हिन्दी पत्रकारिता की 196वीं जयंती के मौके पर आयोजित ‘हिन्दी पत्रकारिता: चुनौतियां और भविष्य एक विषय संगोष्ठी में उभर कर आई।
बैठक में मांग की गई की मीडिया संस्थाओं की स्वायतता व प्रेस की आजादी को बचाए रखने के लिए प्रेस कमीशन का त्तकाल गठन हो। पत्रकारों की मन्याता के मामले में बढ़ते सरकारी हस्तक्षेप पर चिंता जताई गई।
प्रोफेसर अभय कुमार दुबे ने कहा की प्रसार संख्या और दर्शक संख्या की बड़ी संख्या के बावजूद अंग्रेजी के अपने ही देश में आज भी हिंदी को वह हैसियत नहीं मिली जो मिलनी चाहीए। दूसरी बात यह है कि पत्रकारिता ने अपने को सरकारी प्रचार का माध्यम बना लिया है। वह बिना पूछे ही यह रटे जा रही है की भारत में अगले 25 साल तक अमृत काल चलने वाला है। लेकिन उसने कहीं भी यह बताने की कोशिस नहीं की यह अमृत काल क्या है। देशबंधु के संपादक और प्रेस कौंसिल के सदस्य जयशंकर गुप्ता ने कहा की पत्रकारों ने सवाल पूछना बंद कर दिया है और दलाली अपना ली है। छह महीने से प्रेस कौंसिल ऑफ इंडिया का अध्यक्ष नियुक्त नहीं किया गया लेकिन इस बारें में सरकार से कोई कुछ नहीं पूछ सकता क्योंकी प्रधानमंत्री 8 साल से प्रेस कांफ्रेस ही नहीं कर सके है।
वरिष्ठ पत्रकार प्रोफेसर रामशरण जोशी ने कहा की पचास साल पहले भी इसी क्लब में यह बहस हो रही थी की सरकार के लिए प्रतिबद्ध प्रेस होनी चाहिए या नहीं। तब तमाम बड़े संपादकों ने यहां इसका प्रतिरोध किया था। आज बिना बहस और प्रतिरोध के ही प्रेस प्रतिबद्ध हो गया है। यह सब पूंजी का खेल है। सरकार ने प्रेस आयोग की सिफारिशों को चुनिंदा तरीके से लागू किया और तब वह इस बारें में ध्यान ही नहीं देती क्योंकि उसकी कमान तो कारपोरेट के हाथ में है।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के वरिष्ठ पत्रकार शरद दत्त ने कहा की हिंदी पर अंग्रेजी को थोपने का परंपरा बहुत पुरानी है। आकाशवाणी और दूरदर्शन में अंग्रेजी की खबरें वालों को थमा दी जाती है। वे उन्हें की घिसी पिटी अभिव्यक्ति और शब्दावली में जनता तक समाचार पहुंचाते रहे हे। हिंदी समाज सतर्क तरीके से ही इसे तोड़ सकता है।
हिन्दी पत्रकारिता दिवस पर अपने आरंभिक सम्बोधन मे प्रेस क्लब आफ इंडिया के अध्यक्ष उमाकांत लखेड़ा ने कहा कि पत्रकारों को अपना काम करने से रोकने मे तरह तरह के हथकंडे इस्तेमाल किए जा रहे हैं, जिससे से प्रेस की आजादी पर भयावह संकट मंडरा रहा है। क्लब के सेक्रेटरी जनरल विनय कुमार ने कहा कि हिन्दी उर्दू और बाकी भारतीय भाषाओं की पत्रकारिता को और मजबूत बनाने के लिए विभिन्न तरह के कार्यकर्मों की नई परंपरा शुरूआत की और इस सिलसिले को जारी जारी रखेंगे। गोष्ठी का संचालन वरिष्ठ पत्रकार व कला समीक्षक रवींद्र त्रिपाठी ने किया। राजधानी दिल्ली में शाम को अचानक आए भंयकर तूफान और ओला वृष्टि के बावजूद गोष्ठी का सफलतापूर्वक आयोजन किया गया।
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