समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,4 अप्रैल। भारतीय संसदीय इतिहास में एक नई मिसाल कायम करते हुए, वक़्फ़ संशोधन बिल गुरुवार देर रात 2 बजकर 32 मिनट पर राज्यसभा से भी पारित हो गया। इससे पहले यह बिल लोकसभा से भी पास हो चुका था। राज्यसभा में बिल के पक्ष में 128 वोट पड़े जबकि विरोध में 95 सांसदों ने मतदान किया।
यह ऐतिहासिक क्षण न केवल विधायी प्रक्रिया के लिहाज से अहम रहा, बल्कि संसद की कार्यशैली और सदस्यों की प्रतिबद्धता की दृष्टि से भी एक मिसाल बन गया। गृह मंत्री अमित शाह और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरण रीजीजू ने बीते 24 घंटों में संसद की कार्यवाही में 28 घंटे से अधिक समय बिताया, जो इस बिल को लेकर सरकार की गंभीरता को दर्शाता है।
बिल को लेकर लोकसभा और राज्यसभा दोनों में गंभीर और उच्च स्तरीय बहस देखने को मिली। संसद की कार्यवाही शायद ही कभी इतनी देर रात तक चली हो — सुबह के तीन बजे तक। हर पक्ष के सांसदों ने अपनी बात को तार्किक ढंग से रखा, और इस दौरान कई ओजस्वी वक्ताओं ने अपने विचारों से सदन को प्रभावित किया।
संसदीय इतिहास में यह रात “परिश्रम की पराकाष्ठा” के रूप में दर्ज की जाएगी। सांसदों की यह संलग्नता लोकतंत्र के प्रति उनकी निष्ठा और कर्तव्यबोध को दर्शाती है।
हालांकि बिल की सामग्री और उसके प्रभाव को लेकर संसद में मतभेद रहे, लेकिन यह स्पष्ट था कि यह मुद्दा संवेदनशील और महत्त्वपूर्ण था। सरकार का दावा है कि संशोधन के जरिए वक़्फ़ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही लाई जाएगी, जबकि विपक्ष ने इसे अल्पसंख्यकों के अधिकारों के हनन के रूप में देखा।
यह रात न केवल एक बिल के पारित होने की गवाह बनी, बल्कि उस लोकतांत्रिक भावना की भी जो भारत के संसद को अद्वितीय बनाती है। चाहे सहमति रही हो या असहमति, संसद ने अपने कर्तव्य का निर्वहन पूरे समर्पण और संवेदनशीलता से किया — और यही लोकतंत्र की असली ताकत है।
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